राज्यसभा में बजट पर अपने विचार रखते हुए मैंने कहा कि ‘अगर जीडीपी की सांकेतिक वृद्धि दर बारह फीसद रहती है तो हर छह साल में हमारी अर्थव्यवस्था का आकार दोगुना होता चला जाएगा। यदि सांकेतिक वृद्धि दर ग्यारह फीसद रहती है तो यह हर सात साल में दोगुनी हो जाएगी।’ मैंने वित्त मंत्री से अपील की कि 2024-25 में पांच खरब अमेरिकी डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य पर ठहर नहीं जाएं, बल्कि यह भी बताया कि उसके बाद छह या सात साल में अर्थव्यवस्था का आकार दस खरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा और फिर अगले छह या सात साल में यह बीस खरब अमेरिकी डलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगी।
मेरा इरादा पांच खरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की खिल्ली उड़ाना नहीं था। यह एक उचित लक्ष्य है (और जब हम इसे हासिल कर चुके होंगे तब हम खुश होंगे), लेकिन यह असाधारण लक्ष्य नहीं है। मैं ऐसा क्यों कहता हूं?
आसान-सा गणित
पिछले दस सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था की सांकेतिक वृद्धि औसत रूप से बारह फीसद रही है। कृपया ध्यान दें कि यह सांकेतिक वृद्धि है। अगर आप अपना गणित लगाते हैं और हर साल के लिए एक सौ को ग्यारह या बारह प्रतिशत से गुणा करते हैं तो आपके समक्ष यह सारणी बनी हुई होगी-
अमेरिकी डॉलर में गणना के लिए यह जरूरी है कि विनिमय दर तर्कसंगत रूप से स्थायी बनी रहे। यदि रुपए-डॉलर की विनिमय दर सत्तर-पचहत्तर रुपए प्रति डॉलर बनी रहती है तो अर्थव्यवस्था जो 2018-19 में 2.75 खरब अमेरिकी डॉलर की रही थी, 2024-25 में पांच खरब अमेरिकी डॉलर की हो जाएगी। दरअसल, आर्थिक सर्वे में यह मान कर चला गया है कि जब 2024-25 तक जीडीपी का आकार पांच खरब अमेरिकी डॉलर तक होगा तब तक डॉलर के मुकाबले रुपए का पचहत्तर रुपए तक अवमूल्यन हो सकता है। लेकिन वहीं क्यों रुकें?
1991 में भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 325 अरब अमेरिकी डॉलर का था जो 2003-04 में इसकी दोगुनी हो गई, और 2008-09 में फिर दोगुनी हो गई और सितंबर 2017 में यह दो गुनी होकर 2.12 खरब अमेरिकी डॉलर की हो गई। भविष्य में भी जीडीपी हर छह या सात साल में दोगुनी हो जाएगी। हरेक उपलब्धि संतुष्टि का कारण होगी लेकिन यह कोई असाधारण उपलब्धि नहीं होगी।
अहम सवाल
ज्यादा महत्त्वपूर्ण सवाल तो ये हैं-
1- हम सांकेतिक वृद्धि को ग्यारह या बारह फीसद से चौदह फीसद तक कैसे ले जाएं ( जब भारत दोहरे अंकों वाली दस फीसद की जीडीपी वृद्धि दर हासिल करेगा)?
2-औसत भारतीय की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की दर क्या होगी?
3- क्या दस फीसद बेहद गरीबों और दस फीसद बेहद अमीरों के बीच असमानता बढ़ेगी या कम होगी?
हमें इन सवालों के जवाबों की जरूरत है और हमें उन नीतियों की जरूरत है जो धीमी सांकेतिक वृद्धि, प्रति व्यक्ति आय में धीमी वृद्धि और बढ़ती असमानता के कारणों का उपाय बताएं।
दुर्भाग्य से वित्त मंत्री ने वृहद-आर्थिकी की समीक्षा और अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत का आकलन करने से कन्नी काट ली।
इन सवालों के कुछ जवाब तो 2018-19 के आर्थिक सर्वे में मिल सकते हैं। मुख्य आर्थिक सलाहकार के अनुसार, ऊंची वृद्धि के लिए ज्यादा निजी निवेश सबसे जरूरी है। कुछ दिन पहले उन्होंने दोहराया था कि निवेश के लिए सिर्फ घरेलू संसाधन ही पर्याप्त नहीं होंगे और इसलिए विदेशी निवेश महत्त्वपूर्ण है।
संसाधनों की तलाश
घरेलू संसाधनों की कमी के बारे में मुख्य आर्थिक सलाहकार ने जो वाजिव कारण बताए हैं, वे चिंता पैदा करने वाले हैं।
सरकारी / सार्वजनिक निवेश सिर्फ कर राजस्वों और सार्वजनिक क्षेत्र की अधिशेष से ही किया जा सकता है। इनमें से कर राजस्वों की स्थिति काफी खराब है। खासतौर से 2018-19 का साल तो बहुत ही निराशाजनक रहा है। फिर भी, सरकार 2019-20 के लिए कर राजस्वों का भारी-भरकम लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। स्पष्टरूप से, मुख्य आर्थिक सलाहकार सरकार की उम्मीदों से सहमत नहीं है।
नीचे दी गई सारणी मुख्य आर्थिक सलाहकार की चिंताओं की पुष्टि करती है-
(रुपए करोड़ में, वृद्धि दर प्रतिशत में)
यदि सरकार काकर राजस्व का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता है तो सरकार का कुल राजस्व पूंजीगत खर्च की तरह ही भारी दबाव में आ जाएगा, जैसा कि 2018-19 में हुआ था जब सरकार को 1,67,455 करोड़ रुपए का कर राजस्व ‘घाटा’ उठाना पड़ा और पूंजीगत खर्च पर असर पड़ा।
मुख्य आर्थिक सलाहकार सही हैं। व्यापक निवेश के अभाव में 2019-20 में जीडीपी वृद्धि दर करीब सात फीसद रहेगी। इसीलिए मुद्रास्फीति को समायोजित कर जो जीडीपी वृद्धि दर सात या आठ फीसद बताई गई है, उसे लेकर सरकारी दस्तावेजों में अस्पष्टता है!