किसी भी वित्तमंत्री के लिए बजट का दिन उसके जन्मदिन से कहीं ज्यादा बड़ा और अहमियत वाला होता है। देश के लिए बजट बनाना एक यादगार और मील का पत्थर जैसा काम होता है। समय के साथ बजट के कुछ प्रस्तावों में संशोधन भी होंगे, आलोचना होने पर एक दो प्रस्ताव वापस भी लिए जा सकते हैं। कुछ अव्यावहारिक, अतार्किक प्रस्तावों को बिना किसी कार्रवाई के खत्म होने के लिए छोड़ दिया जाएगा।
बनाना और मिटाना
हालांकि 2019-20 का बजट अपने में अद्वितीय है। मुझे हाल में कोई ऐसा बजट याद नहीं आता, जब किसी वित्तमंत्री ने बजट तैयार करने के बाद पूरे होशो-हवास में उसे पलट दिया हो। बजट भाषण के दौरान प्रमुखता से रखे गए प्रस्तावों की मैंने एक सूची बनाई है। बजट बाद चर्चा में इन प्रस्तावों की खूबियों का एलान किया गया था। इनमें से हर एक को पलट दिया गया या वापस ले लिया गया। 1 फरवरी, 2019 से 23 सितंबर, 2019 के बीच 2019-20 का बजट संदिग्ध खातों के व्यर्थ विवरण की तरह सिमट कर रह गया।
उन बजट प्रस्तावों की सूची जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया
क्रम सं. जुलाई, 2019 के बजट में प्रस्ताव स्थिति
1- एफपीआइ और घरेलू निवेशकों पर यह प्रस्ताव 23 अगस्त को लंबी और कम अवधि वाले कैपिटल वापस ले लिया गया। गेन पर सरचार्ज।
यह प्रस्ताव 23 अगस्त को वापस ले लिया गया।
‘पूंजी बाजार में निवेश को बढ़ावा देने के लिए इक्विटी शेयरों / यूनिटों, जो धारा 111 ए और 112 ए में निर्दिष्ट हैं, के हस्तातंरण से होने वाले लंबी और छोटी अवधि के पूंजीगत लाभ पर वित्त (क्रमांक 2) विधेयक, 2019 के जरिए लगाए गए अधिभार की वृद्धि को वापस लेने का फैसला किया गया है।’ – निर्मला सीतारमण, 23 अगस्त, 2019 को संवाददाता सम्मेलन में।
2- ओवरसीज सॉवरेन बांड जारी करना।
‘सरकार विदेशी बाजारों से विदेशी मुद्रा में उधारी जुटाने के कार्यक्रम के तहत उधारी का एक हिस्सा जुटाना शुरू करेगी। इससे घरेलू बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों के लिए मांग बनेगी और अच्छा असर पड़ेगा।’ – पैरा 103, बजट भाषण, 5 जुलाई, 2019
कोई फैसला नहीं, लेकिन इसे लगभग छोड़ ही दिया है
‘किसी भी बाजार में जाने से पहले उन्हें बहुत ही सावधानी पूर्वक सुधार करने और विचार-विमर्श करने की जरूरत है। इसके लिए उचित तरीका निकालने के लिए अभी काम चल रहा है और इसकी खूबियों-खामियों की जांच की जा रही है। यह एक लंबी चलने वाली प्रक्रिया है और यह जारी रहेगी। इस साल के लिए मौजूदा सारी उधारियां रुपए के गुणक में बांड में हैं।’ – सचिव, आर्थिक मामले, अतनु चक्रवर्ती, 23 सितंबर 2019
3- कारपोरेट कर में कटौती
‘जहां तक कारपोरेट कर का सवाल है, हम इसकी दरों में चरणों में इसमें कमी जारी रखेंगे। इस वक्त पच्चीस फीसद की निम्न दर उन कंपनियों पर लागू होगी, जिनका कारोबार ढाई सौ करोड़ रुपए सालाना तक है। मैं इस दायरे को बढ़ा कर उन कंपनियों को भी इसमें शामिल करती हूं, जिनका सालाना कारोबार चार सौ करोड़ रुपए है। इसमें 99.3 फीसद कंपनियां आ जाएंगी। इस कर दर से अब सिर्फ 0.7 फीसद कंपनियां ही बाहर रह जाएंगी।’ – पैरा 110 , बजट भाषण, 5 जुलाई, 2019
23 सितंबर, 2019 को अध्यादेश के जरिए इसे बदल दिया गया
सारी घरेलू कंपनियों को 22 फीसद की दर से कारपोरेट कर देना होगा (सेस और सरचार्ज मिला कर यह प्रभावी दर 25.17 फीसद बैठती है।) इसके लिए इन कंपनियों के साथ शर्त यह है कि उन्हें अब और कोई कर रियायत नहीं दी जाएगी। इसके अलावा इन कंपनियों पर न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) भी नहीं लगेगा। कोई भी नई घरेलू कंपनी जो एक अक्तूबर, 2019 के बाद बनाई गई है, उसे पंद्रह फीसद की दर से कारपोरेट कर देना पड़ेगा, जो प्रभावी रूप से 17.01 फीसद बैठेगा। – 23 सितंबर , 2019
4- एजेंल टैक्स
23 अगस्त, 2019 को वापस ले लिया गया
‘इसमें वाणिज्य मंत्रालय के तहत पंजीकृत स्टार्टंप पर आयकर कानून की धारा 56 (2)(सात बी) लागू नहीं होगी।’ – निर्मला सीतारमण, 23 अगस्त 2019 को संवाददाता सम्मेलन में।
5- कंपनियों द्वारा किए गए सीएसआर के उल्लंघन का अपराधिकरण (31 जुलाई, 2019 को कंपनी कानून 2013 में संशोधन द्वारा)
23 अगस्त, 2019 को वापस ले लिया गया
‘वह हर संदेह, जो बाहर बना हुआ था, उसे मैं आज दूर कर देना चाहूंगी। मुकदमे के रास्ते पर चलने का सरकार का कोई इरादा नहीं है। कारपोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी को नागरिक मामलों की तरह ही लिया जाएगा, न कि आपराधिक मामलों की तरह।’ – निर्मला सीतारमण, 23 अगस्त 2019 को संवाददाता सम्मेलन में।
6- नई इंटरनल कंबंशन इंजन (आइसीई) वाली कारों के लिए पंजीकरण शुल्क छह सौ रुपए से बढ़ा कर पांच हजार रुपए किया जाता है। आइसीई कारों के पंजीकरण के नवीनीकरण का शुल्क पंद्रह हजार रुपए प्रस्तावित किया जाता है (26 जुलाई, 2019 को प्रस्तावित)
23 अगस्त 2019 को वापस ले लिया गया
नए वाहनों के लिए पंजीकरण शुल्क 2020 तक टाल दिया गया है- निर्मला सीतारमण, 23 अगस्त 2019 को संवाददाता सम्मेलन में।
परेशानियों का पुलिंदा
दुर्भाग्य से, वित्तमंत्री ने बजट में जो लुभावनी घोषणाएं की थीं, उन्हें वापस लेने भर से उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। ज्यादातर ढांचागत और कुछ चक्रीय समस्याएं भी अर्थव्यवस्था की तबाही का कारण बनी हैं, अर्थव्यवस्था डूब गई, आंकड़े बुरी तरह गड़बड़ा गए, बड़ी-बड़ी डींगें भी ज्यादा राजस्व नहीं जुटा पार्इं या खर्च को काबू में रख पार्इं, और इनका नतीजा महालेखाकार नियंत्रक के यहां से हर महीने जारी होने आंकड़ों में स्पष्ट नजर आया है।
आखिरी बार अक्तूबर 2019 में ये आंकड़े आए थे, जो बता रहे हैं कि शुद्ध राजस्व प्राप्ति बजट अनुमान के मुकाबले मुश्किल से 41.4 फीसद भी नहीं रही, कुल प्राप्तियां 44.9 फीसद रहीं, वित्तीय घाटा 102.4 फीसद रहा और राजस्व घाटा 112.5 फीसद। वित्त मंत्री के पास अब और खर्चा करने या उधार लेने का कोई रास्ता नहीं बचा है।
धन डालने का भ्रम
फिर भी 5 जुलाई, 2019 से, वित्तमंत्री ने भारी-भरकम रकम देने का एलान किया है, जो कई क्षेत्रों में डाली जाएगी, जैसे सरकारी क्षेत्र के बैंकों (सत्तर हजार करोड़), रियल एस्टेट (पच्चीस हजार करोड़), एनबीएफसी और एचएफसी (बीस हजार करोड़), आइडीबीआइ बैंक (चार हजार पांच सौ सत्तावन करोड़ रुपए) और पंजाब नेशनल बैंक (सोलह हजार करोड़ रुपए)।
जैसा कि डा. अरविंद सुब्रमण्यन और जोश फेलमेन का आकलन है कि अर्थव्यवस्था आइसीयू की ओर जाती दिख रही है, वित्तमंत्री को सिर्फ हरा ही हरा नजर आ रहा है!