कुछ महीने पहले ‘धन्यवाद मोदी’ के बड़े-बड़े पोस्टर जब दिल्ली की हर दूसरी गली में लगे थे, तो उनका संदेश एक ही था : टीकाकरण का श्रेय प्रधानमंत्री को ही मिलना चाहिए। संदेश स्पष्ट करने के लिए मोदी की तस्वीर दिखी टीकाकरण के प्रमाणपत्रों पर। ये वे दिन थे जब कोविड की दूसरी लहर का कहर थोड़ा कम होने लगा था, लेकिन टीकाकरण की प्रक्रिया शुरू होते ही मालूम पड़ा दुनिया को कि मोदी सरकार ने टीकाकरण को इतनी कम अहमियत दी थी कि आर्डर दिए ही नहीं गए थे टीकों के उस समय, जब कई देशों ने दिए थे बावजूद इसके कि टीके बने नहीं थे।
मोदी सरकार इतनी बौखला गई थी अपनी लापरवाही से उस समय कि टीकाकरण की जिम्मेवारी राज्य सरकारों पर थोप दी गई, यह कहते हुए कि मुख्यमंत्री जहां से भी खरीद सकते हैं खरीदने की कोशिश करें। इस घोषणा के कुछ ही दिन बाद साबित हुआ कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में खरीदने का काम सिर्फ भारत सरकार कर सकती है।
सो, मोदी ने इस कार्य को अपने हाथों में वापस ले लिया, ऐसे जैसे भारत वासियों पर अहसान कर रहे हों। अपनी गलती छिपाने के लिए घोषणा की कि मुफ्त टीकों का सबसे बड़ा अभियान भारत में चल रहा है, जिसके लिए हमको मोदी को धन्यवाद कहना होगा। यानी वही ‘मोदी है तो मुमकिन है’ वाले नारे में जान फूंकने की कोशिश हुई, ताकि जनता भूल जाए कि कोविड की दूसरी लहर जब चरम पर थी, तो आक्सीजन और अस्पतालों में बिस्तरों और दवाइयों की गंभीर कमी थी। इन चीजों के अभाव से मरे थे कई लोग, बीमारी से नहीं। दंडित किसी आला अफसर को नहीं किया गया इन गलतियों के लिए, सिर्फ स्वास्थ्य मंत्री को अपनी नौकरी खोनी पड़ी।
नतीजा यह कि मोदी के उसी वैक्सिनेशन टास्क फोर्स (टीकाकरण समिति) में आज भी हैं वही आला अधिकारी, जिनकी लापरवाही के कारण टीकों की खरीदारी समय पर नहीं हुई थी। आज क्या वही आला अफसर फिर से वही गलती कर रहे हैं? पिछले सप्ताह अदार पूनावाला की बातें सुन कर तो ऐसा ही लगा। पूनावाला ने खुल कर कहा कि उनके सीरम इंस्टीट्यूट में अगले हफ्ते से टीकों का निर्माण आधा करने की नौबत आ गई है, क्योंकि भारत सरकार की तरफ से उनको कोई नया आर्डर नहीं मिला है और दुनिया के बाजारों में जो उनकी जगह थी, उसको ले लिया है विदेशी कंपनियों ने, क्योंकि उन्होंने भारत सरकार को प्राथमिकता दी थी जब टीकों का देश में गंभीर अभाव था।
पूनावाला के शब्दों में, ‘हम फिलहाल पच्चीस करोड़ टीके बना रहे हैं हर महीने, लेकिन भारत सरकार के कोई नए आर्डर नहीं आए हैं और पिछले आठ महीनों में विदेशी बाजारों में जो हमारी जगह थी, वह अन्य कंपनियों ने ले ली है। हमारे पास अभी पचास करोड़ टीकों का भंडार पड़ा हुआ है, जो बेकार जाएगा अगर अगले नौ महीनों में उसको इस्तेमाल नहीं किया गया।’
समझना मुश्किल है कि भारत सरकार टीकों के इस भंडार को खरीद क्यों नहीं रही है। जिस दिन हमने सौ करोड़ टीके दिए थे, प्रधानमंत्री के इशारे पर खूब जश्न मनाया गया था, लेकिन इस बात को भूल कर कि अभी तक हमारी आबादी का आधा हिस्सा भी दोनों टीके नहीं ले पाया है। टीकों के अभाव की वजह से भारत सरकार ने दोनों टीकों के बीच का समय लंबा रखा था, लेकिन वैसे भी जश्न मनाने की कोई बात नहीं होनी चाहिए, इसलिए कि अब पूरी दुनिया में साबित हो गया है कि दो टीकों का असर सिर्फ नौ महीने तक रहता है।
यानी बूस्टर देने होंगे उन लोगों को, जिनकी उमर पैंतालीस से ज्यादा है और उन लोगों को भी, जो अस्पतालों में काम करते हैं और उन अधिकारियों, सफाई कर्मचारियों और पुलिस वालों को, जो हमारे शहरों और कस्बों में पहरेदारी देते हैं। इनको सबसे ज्यादा खतरा रहता है बीमार होने का।
तो, भारत सरकार सोच क्या रही है? इतनी देर क्यों कर रही है सीरम इंस्टीट्यूट को आर्डर देने में? पैसों की कमी तो होनी नहीं चाहिए, क्योंकि बजट में टीकों के लिए अलग कोष रखा गया था और ऊपर से ‘पीएम केयर्स’ नाम का अलग कोष बनाया गया है, जिसमें हर बड़ी निजी और सरकारी कंपनी को पैसे दान में डालने का आदेश ऊपर से आया है। पैसों की कमी नहीं है, तो क्या हम कह सकते हैं कि भारत सरकार के आला अधिकारी दुबारा वही गलती कर रहे हैं, जो उन्होंने पिछली बार की थी और जिसके लिए उनको अभी तक दंडित नहीं किया गया है?
कारण जो भी हो, अगर भारत सरकार जल्दी हरकत में नहीं आती, तो पूरी संभावना है कि जिस डरावने दौर से हम गुजरे थे कोविड की दूसरी लहर में, वह डरावना दौर फिर से आ सकता है। इस बार गलती छिपाने के लिए ‘धन्यवाद मोदी’ के पोस्टर काम नहीं आएंगे, क्योंकि इस बार हम अच्छी तरह देख सकते हैं कि लापरवाही कौन कर रहा है। धन्यवाद अगर किसी को कहना चाहिए आज, तो अदार पूनावाला को, जिसने जिम्मेवारी और धैर्य दिखाते हुए खतरे की घंटी हमारे लिए अभी से बजानी शुरू कर दी है।
वैसे भी सीरम इंस्टीट्यूट को पूरे देश को धन्यवाद कहना चाहिए। यह कंपनी न होती, तो कौन जाने क्या हाल होता देश का। माना कि जिस कोविशील्ड टीके को यह देसी कंपनी बना रही है, उसको विदेशों में तैयार किया गया था और आज कई देशों में उसको ऐस्ट्रा-जेनिका के नाम से बेचा जाता है। लेकिन फिर भी कम से कम भारत में एक टीका तो बना है, जिस पर हम भरोसा कर सकते हैं। सो, धन्यवाद सीरम इंस्टीट्यूट।