पिछले साल के अंतिम दिनों में ऐसा लगा था कि इतना बुरा साल शायद ही रहा होगा। कोई नहीं कह सकता था उस समय कि आने वाला साल उससे भी बुरा होगा देश के लिए। ये वो दिन थे जब ऐसा लगा था कि भारत ने कोविड को हरा दिया है। धनवान, विकसित देशों के मुकाबले भारत का हाल इतना बेहतर था कि प्रधानमंत्री ने 2021 के शुरुआती दिनों में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में घोषित कर दिया, सीना तान कर, कि इस महामारी को कैसे काबू में लाया जा सकता है, उसकी चमकती मिसाल भारत ही है। इतना विश्वास था मोदी को अपनी इस बात पर कि इस घोषणा के फौरन बाद निकल पड़े थे पश्चिम बंगाल को जीतने।

बंगाल को फतह करने में लगे हुए थे कि एक भयानक तूफान की तरह आई कोविड की दूसरी लहर। तब जाकर मालूम पड़ा कि मोदी सरकार के पास न टीके काफी थे, न इलाज के साधन। लेकिन बला टलने के आसार दिखते ही प्रधानमंत्री फिर प्रकट हुए सीना ताने हुए और फिर से एलान किया कि हम इस महामारी को हरा चुके हैं। लेकिन अब एक ऐसी पिक्चर की तरह, जो देखी हुई हो, अब लौट कर आए हैं वही बुरे दिन। एक नया रूप धारण करके लौट आया है कोविड और प्रधानमंत्री का ध्यान लगा हुआ है उत्तर प्रदेश को जीतने में।

हर दूसरे दिन दिखते हैं उस राज्य में, कभी मंदिरों में पूजा करते हुए, तो कभी बड़ी-बड़ी योजनाओं की नींव रखते हुए। इतने में ओमीक्रान फैलता जा रहा है बेकाबू होकर जैसे याद दिलाना चाहता है हमें कि 2021 भारत के लिए कितना बुरा साल रहा है। कोई एक अच्छी चीज अगर रही है, तो सिर्फ यह कि किसान उन तीन ‘काले कानूनों’ की वापसी के बाद लौट गए हैं अपने घरों को। इसके अलावा कोई उपलब्धि नहीं रही है मोदी सरकार की। मोदी भक्तों ने खूब हल्ला मचाया था, जब सौ करोड़ टीके दिए गए थे, लेकिन बिना इस बात को समझे कि अभी तक मुश्किल से साठ प्रतिशत भारतीयों को दोनों टीके लगे हैं और बूस्टर लगाने की नौबत आन पड़ी है।

नतीजा यह कि जहां अर्थव्यवस्था की रफ्तार में धीरे-धीरे तेजी आने लगी थी, अब फिर से मंदी के बादल दिखने लगे हैं क्षितिज पर। रही बात राजनीतिक उपलब्धियों की, तो यहां भी परिवर्तन सिर्फ यह आया है कि कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी इतने हावी हो गए हैं कि हरिद्वार में धर्म संसद बुला कर एलान किया हाल में भगवापोश साधु-संतों ने कि मुसलमानों के कत्लेआम के लिए तैयारी करनी पड़ेगी हिंदू देशभक्तों को। अभी तक इन संतों को पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया है, इसलिए कि संदेश सबको गया है कि नफरत को रजनीति में घोलने का आदेश ऊपर से आया है।

इतना स्पष्ट है यह संदेश कि क्रिसमस के दिन गिरिजाघरों पर हमले किए हिंदुत्व के वीर सिपाहियों ने और ईसा मसीह की मूर्ति तोड़ कर उनका सिर अंबाला के एक गिरिजाघर के बाहर फेंका गया। आगरा में सेंटा क्लाज का पुतला जलाया गया और कर्नाटक में भाजपा के युवा राजनेता तेजस्वी सूर्या ने मुसलमानों और ईसाइयों को कहा कि उनकी घर वापसी होनी चाहिए सनातन धर्म में।

यह वक्तव्य शायद दिल्ली में बैठे आला राजनेताओं को भी ज्यादती लगी, तो अगले दिन वापस लिया गया। तब तक संदेश जो जाना था चला गया। ऊपर से कर्नाटक की विधानसभा में पारित हो गया है एक ऐसा कानून, जो धर्म परिवर्तन को जुर्म मानता है। कहने को तो सिर्फ जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए ऐसे कानून बन रहे हैं भाजपा शासित राज्यों में, लेकिन स्पष्ट नहीं है कि जबर्दस्ती कौन तय करेगा।

हिसाब अगर लगाया जाता है 2021 में मोदी सरकार की सफलताओं और विफलताओं का तो सफलताओं की सूची में सबसे ऊपर रहेगा, यही कि भारत का जो उदारवादी चेहरा था, वह अब बदल गया है। अब हमारी गिनती पाकिस्तान जैसे देशों में होती है, जहां अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का नागरिक माना जाता है। इसको उपलब्धि कहना गलत होगा, इसलिए कि भारत के संविधान में जो धार्मिक अधिकार दिए गए हैं उनको कुचले जाने का काम शुरू हो गया है। लेकिन जाहिर है, होना अनिवार्य है हिंदू राष्ट्र की नीव रखने के लिए। परिणाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखने लगा है। दुनिया की मीडिया में भारत की चर्चा जब होती है आजकल, तो अक्सर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार को लेकर।

मोदी के सबसे बड़े चेले योगी आदित्यनाथ अक्सर कहा करते हैं कि उनके राज में उत्तर प्रदेश में एक भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है। शायद ऐसा कह कर इस बात को भुलाना चाहते हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कि उनके राज में जितनी नफरत घुल गई है राजनीति में, उसके परिणाम भविष्य में दंगों से भी भयानक हो सकते हैं। उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी 2018 के आंकड़ों के मुताबिक चार करोड़ उनतालीस लाख अट्ठासी हजार पांच सौ इकसठ थी, यानी 19.3 प्रतिश्त। इतने सारे लोगों को अगर लगने लगे कि उनको दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया गया है उनके अपने प्रदेश में, तो नुकसान कितना होगा, उसका हिसाब लगाना कठिन है।

योगी सरकार ने ऐसी बातों को छिपाने के लिए बेहिसाब पैसे खर्चे हैं इस साल, लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं, जिनको बड़े-बड़े इश्तहारों से मिटाया नहीं जा सकता है। कौन भूल सकता है गंगाजी में बहती वे लाशें? कौन भूल सकता है कि योगी के राज में पत्रकार और आलोचक गिरफ्तार किए जाते हैं ऐसे कानूनों के तहत, जो आतंकवादियों के लिए बने थे? भव्य मंदिर जितने भी बनाए जाएं अयोध्या और काशी में, कुछ ऐसी चीजें हैं जो भुलाई नहीं जा सकती हैं। आखिर में यही कहा जा सकता है 2021 के बारे में कि बुरे दिन ज्यादा देखे हैं हमने और अच्छे बहुत कम।