मेरी छोटी बहन महरौली में रहती है। पिछले सप्ताह सुबह-सवेरे उसका फोन आया और डरी हुई आवाज में उसने कहा, ‘बुलडोजर हमारी साथ वाली इमारत को गिरा चुके हैं और कहते हैं कि अगली बारी हमारी है’। मैंने जब उससे पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है तो उसने कहा कि एक महीना पहले महरौली में जगह-जगह स्थानीय अफसरों ने नोटिस चिपकाए थे उन इमारतों पर जो उनकी सूची में अवैध थे, तो उसने सोचा कि क्योंकि उनकी इमारत अवैध नहीं थी, तो उसको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं थी। ‘हमने जब ये फ्लैट खरीदा तो जिस बंदे से हमने खरीदा था, उसने हमको सारे दस्तावेज दिखाए इस इमारत के जायज होने के। न दिखाए होते तो हम कभी न खरीदते। फिर जब हम यहां रहने लगे तो हम हर साल कर अदा करते रहे। इमारत जायज नहीं होती तो टैक्स क्यों ले रही थी नगरपालिका?’

सवाल महत्त्वपूर्ण है, लेकिन यही सवाल है जो पूछा नहीं जा रहा है ऊंची आवाज में। सवाल और भी हैं। अगर महरौली में इतना अवैध निर्माण हुआ है तो क्या दिल्ली सरकार और नगर पालिकाओं के सारे अधिकारी सोए हुए थे? क्यों नहीं इतना ज्यादा अवैध निर्माण होने से पहले इन्होंने कार्रवाई शुरू की? क्या इन अधिकारियों को दंडित किया जाएगा? उनकी लापरवाही की वजह से जो इतने लोग बेघर किए जा रहे हैं, क्या इसकी कोई जवाबदेही मांगेगा? महरौली में क्यों अचानक दिखने लगी हैं इतनी सारी अवैध इमारतें?

इस अंतिम सवाल को मेरी बहन ने जब उन लोगों से पूछा जो बुलडोजर लेकर आए थे उसके घर को गिराने तो उन्होंने जवाब दिया कि जी-20 के सम्मेलन के लिए तैयारी ये हो रही है कि कुतुब मीनार तक एक ‘कारिडोर’ बनाया जाए, ताकि कुतुब को देखने आराम से विदेशी मेहमान आ सकें। मालूम नहीं, यह सच है कि नहीं, लेकिन महरौली में जो लोग उजाड़े जा रहे हैं, उनको संदेह है कि इस बात में सच्चाई है। इसलिए कि अचानक बुलडोजर भिजवाए जाने का उनको कोई दूसरा कारण नजर नहीं आता।

फिलहाल बुलडोजरों को रोक दिया है अदालत ने, लेकिन फिर कब चलेंगे, कोई नहीं जानता। मेरी बहन अभी तक तनाव में रह रही है, इसलिए कि अफवाह यह भी है कि उसका फ्लैट अगर तोड़ा गया तो मुआवजा नहीं मिलने वाला इस बहाने कि इमारत सरकारी जमीन पर बनाई गई है। उसने अपनी बचत के सारे पैसे इस घर को खरीदने और सजाने में खर्च किए हैं।

जिस दिन मेरी बहन का फोन आया था, उस दिन कानपुर देहात के मढ़ोली गांव से खबर आई प्रमिला नाम की महिला और उसकी बेटी नेहा की, अपने कच्चे घर में जिंदा जल जाने की। उनके परिजनों के मुताबिक, उनकी मृत्यु हुई थी जब बुलडोजर चलने वाला था उनके घर पर और उनके इस कच्चे घर में आग लग गई थी। स्थानीय अफसरों ने उनकी मौत को आत्महत्या बताया है, लेकिन समझा नहीं पाए हैं कि ये मां-बेटी क्यों अचानक ख़ुदकुशी करने को तैयार हुए। उत्तर प्रदेश सरकार कम से कम उनके परिजनों को मुआवजा देने को राजी हुई है जो अक्सर नहीं होता है इस प्रदेश में, जहां योगी आदित्यनाथ ने यह नीति शुरू की थी।

पहली बार बुलडोजर चले थे उन लोगों पर, जिन्होंने ने नागरिकता कानून में संशोधन लाए जाने का विरोध सड़कों पर निकल कर किया था 2019 में। योगी आदित्यनाथ ने उस समय कहा था कि बुलडोजर सिर्फ उन पर चलेंगे जो सरकारी संपत्ति का नुकसान करेंगे, लेकिन सवाल यह है कि उनको दंडित करने के लिए क्या उनके परिवार को भी सजा मिलनी चाहिए? योगी की नकल अन्य भाजपाई मुख्यमंत्रियों ने की है और मध्य प्रदेश के गृहमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया है कि जो लोग पथराव करते पाए जाएंगे हिंदू धार्मिक जुलूसों पर, उनके घर पत्थर के ढेर में तब्दील किए जाएंगे। यानी कानून प्रणाली को अनदेखा करके स्थानीय अधिकारी न्यायाधीश ख़ुद बने हुए हैं। इस जंगलराज की बहुत आलोचना हुई है, लेकिन बुलडोजर नीति अब कई प्रदेशों में चलने लगी है।

जो लोग इस ‘जंगल राज’ का विरोध करते हैं, उन पर देशद्रोह का आरोप लगता है, क्योंकि आज के दौर में सरकार का विरोध करना देश के साथ गद्दारी करने के बराबर माना जाता है। लेकिन क्या वक्त नहीं आ गया है शासकों को याद दिलाने का कि कानून को अपने हाथ में लेना अगर आम लोगों के लिए अपराध है तो हमारे शासकों के लिए भी यह अपराध माना जाना चाहिए?

रही बात मेरी बहन की तो मैंने भारत सरकार के एक आला मंत्री के पास उसकी बात रखी और उन्होंने काफी शराफत दिखा कर उसका नाम लिखा। उस खसरे का नंबर दर्ज किया, जहां उसकी इमारत हैं, यह कहते हुए कि उसकी मदद के लिए कोई उसे फोन करेगा। ऐसा नहीं हुआ और अब मामला अदालत तक पहुंच गया है। आगे क्या होगा, नहीं पता, लेकिन मैं इतना जानती हूं कि मेरी बहन को इतनी तकलीफ हुई हैं कि उसको बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।

अपनी तरफ से इतना कहना चाहूंगी कि मैंने इस बुलडोजर नीति का शुरू से विरोध किया है और अब ज्यादा करूंगी। किसी का घर तोड़ना, चाहे कारण कोई भी हो, सही नहीं ठहराया जा सकता है। इसलिए कि उस घर में होती हैं किसी के पैसे के अलावा उसकी सारी ख्वाहिशें। बुलडोजर के नीचे सिर्फ घर नहीं, खंडहर और बर्बाद हो जाता है लोगों का सारा जीवन। बुलडोजर चलने के कारण जो भी हों, इस नीति को किसी भी सभ्य देश में सही नहीं ठहराया जा सकता है। बंद करो ये बुलडोजर नीति। ये सरासर गलत है।