लो मैं फिर आ गया! वह शरारत भरी मुस्कान बिखेरते हुए मेरे पास आ बैठा।
आ गया? मैंने आश्चर्य से पूछा, पर तुम गए कब थे?
अरे, आपको पता नहीं चला मैं कब गया था?
नहीं। मैंने स्वीकार किया और उत्सुकता से पूछा, तुम कहां गए थे?
अपनी दुनिया में, उसने चहक कर कहा।
तुम्हारी और मेरी दुनिया अलग-अलग है क्या?
हां। मेरी दुनिया जवान है, उसने तपाक से कहा।
मैं कुछ बोलने जा रहा था, पर चुप हो गया। वह समझ गया।
मेरा मतलब यही था कि आप बुड्ढे हो गए हैं, उसने खिसिया कर सफाई दी।
हां, बुड्ढे नहीं, पर जवान तो जरूर नहीं रहे हैं। उम्र जीवन का अकाट्य सत्य है। उसे कोई झुठला नहीं सकता है। वैसे, तुमने कैसे जाना कि हमारी दुनिया तुम्हारी दुनिया से अलग है? और, कैसे अलग है?
आपको अपनी दुनिया की हदें दिखने लगी हैं। कुछ हदों तक तो आप हो भी आए हैं, उसने हंस कर कहा।
हम्म्म, उसकी बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया।
उसने बात आगे बढ़ाई। पर मुझे अपनी हदों का कोई एहसास नहीं है। मेरा आसमान असीम है, मेरी धरती क्षितिज के आगे से बाहें फैलाए मुझे बुला रही है। मैं उत्साहित हूं, जवान हूं, मेरी दुनिया में अनुभवों की हदबंदी नहीं है।
मैं दो पल उसको ताकता रहा। सच कह रहा था। हम दोनों अलग-अलग दुनिया में थे, जो घूम-फिर कर कभी एक-दूसरे की छाया में तो आ जाती थी, पर थे अलहदा।
सहसा मेरे चेहरे पर मुस्कराहट उभर आई। मैंने शरारत से कहा, जिसको तुम अपनी दुनिया कह रहे हो, वह कल तक हमारी दुनिया थी। हम उस दुनिया को अच्छी तरह से जानते हैं।
बिल्कुल, उसने खिलखिला कर कहा, पर वह आपका बीता कल था और आज का आज मेरा है। आप मेरे आज में कैसे आ सकते हैं?
नहीं आ सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे तुम मेरे कल में नहीं थे।
हां, सही कहा आपने, उसने संजीदगी से कहा, पर आपने मेरी बात सिद्ध कर दी कि मेरी दुनिया आपसे अलग है।
दुनिया एक ही है, मैंने फौरन जवाब दिया, काल अलग है।
वह बोला, समय में संदर्भ निहित है। समय दुनिया की वस्तु को संदर्भ में तराशता है। काल के गुजरते ही संदर्भ बदल जाता है और उसमें अपने आप ही नयापन आ जाता है।
पर, मैंने टोका, बदलाव से गुजरने को अनुभव कहते हैं। एक पीढ़ी अपना अनुभव दूसरी पीढ़ी को दान कर जाती है। वह उसकी शुरुआती पूंजी बन जाती है, जिसके सहारे अगली पुश्त अपनी पहली र्इंट रखती है।
आपकी पीढ़ी ने क्या दिया?
तुम बताओ, मैंने पलट कर सवाल उछाला।
वह सोच में पड़ गया। कुछ देर बाद उसने भोले से मुंह से पूछा, क्या दिया?
दोगलापन, मैंने तपाक से कहा।
मेरा जवाब सुन कर वह हड़बड़ा गया। इतने स्पष्ट उतर से उसे झटका लगा था। मुझे उसकी प्रतिक्रिया अच्छी लगी।
पर आप तो सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़े हैं, उसके लिए संघर्ष किया है। लोकतांत्रिक मानवीय मूल्यों के हामी रहे हैं। हम जिस खुली हवा में सांस ले रहे हैं, वह आप लोगों की ही तो देन है। फिर आप दोगला अपने को क्यों कह रहे हैं?
मैंने एक लंबी सांस भरी। दिल भारी हो गया।
हम दोगले हैं।
ऐसा मत कहिए, उसने याचना की, मैं आपके पैरों के सहारे खड़ा हूं। यह कह कर मेरे पैर मत काटिए। मैं अपने क्षितिज तक दौड़ कर कैसे जाऊंगा? अपनी संभावनाओं तक कैसे पहुंचूंगा?
मुझसे क्या मतलब है इन बातों का? मैंने रूखे स्वर में कहा। तुम्हारी दुनिया अलग है, अपने आप जियो उसमें। हां, मैं एक बात और बताने से चूक गया था- हम दोगले तो हैं ही, साथ में खुदगर्ज भी हैं। और चूंकि खुदगर्ज हैं, इसलिए कायर होना लाजमी है।
मैं आपकी बात समझ नहीं पा रहा हूं, वह हतप्रभ था।
साफ कहता हूं, अच्छी तरह से समझ लो कि मेरी दुनिया दोगली, खुदगर्ज और कायर है। हमने समयानुसार संघर्ष किए- सत्य, अहिंसा, लोकतंत्र आदि के लिए- पर इनमें से किसी एक के लिए भी कटिबद्ध नहीं हैं और न थे। वक्त के मिजाज से हां में हां मिला कर काम चलाते हैं। जब जीत गए तो अपने को सूरमा कहने लगते हैं और अगर किसी ने अच्छी तरह से धमका दिया, तो तुरंत निरीह याचक बन जाते हैं। जयजयकार करने वालों की भीड़ हम फौरन बन जाते हैं। मेरे संसार में झूठ, कपट और हिंसा का साम्राज्य है।
आपने तो मुझे हिला दिया है। उसका चेहरा लटक गया था।
मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा। हमारी पीढ़ी ने जो दिया वह बहुत भारी पड़ रहा है न?
जी, मैं अपने में खोजने लगा था कि कही मैं भी दोगला और कायर तो नहीं हूं। विरासत का अंश मुझमें तो नहीं आ गया है?
जरूर अंश आया होगा, मैंने उसे आश्वस्त किया, उसने मेरे हाथ के नीचे से अपना कंधा खिसका लिया।
पर तुम तो कह रहे थे कि हमारी दुनियाएं अलग हैं? अगर ऐसा है तो तुमको घबराने की क्या जरूरत है। जवानी वो शै है, जो अपना रास्ता खुद बनाती है। वह आगे-पीछे नहीं देखती है।
हां, पर मुझे अब ऐसा लग रहा है कि आपने मेरी हदबंधी कर दी है। मैं जिन चीजों को लेकर अभी तक पूरी तरह से आश्वस्त था, अब नहीं हूं। आपको जो कुछ मिला था, उसको आपने बेच खाया है। शायद अपनी खुदगर्जी का पेट भरने के लिए आपने ऐसा किया है।
हां, मैंने गंभीरता से कहा, और आज भी कर रहे हैं। अपना बेशकीमती सामान कुछ कौड़ियों में बेच रहे हैं।
मैं क्या करूं, वह आतुर हो उठा था।
संघर्ष करो मेरे खिलाफ। अपनी दुनिया को मेरी दुनिया से टकरा दो। मेरे सारे नियम तोड़ दो। एक तरफ चिरौरी और दूसरी तरफ आदर्शवादिता के मेरे दोगलेपन को आग लगा दो। अगर काल संदर्भ देता है तो व्यक्ति उस संदर्भ का बानक है। तुम नया संदर्भ बनो।
वह अचानक उठ खड़ा हुआ।
जाओ, मैंने उससे हौसले से कहा, जब लौट के आओगे तो मुझे यहां बैठा नहीं पाओगे। मेरे अनुभव दाधीच की हड्डियों की तरह तुम्हारे काम आ चुके होंगे और तुम धनुषधारी बन कर अपनी उन्मुक्तता की रक्षा कर चुके होगे। मुझसे अपने को बचा चुके होगे।