लंबे केश, उलझी हुई दाढ़ी, माथे पर चंदन का तिलक और जोगिया वस्त्र धारण किए जब दरवाजे पर एक अजनबी को खड़े देखा, तो बिना कुछ सोचे-समझे मैंने उसको झुक कर प्रणाम कर दिया था। अयुष्मान भव, उन्होंने भारी आवाज में आशीर्वाद दिया और फिर धड़धड़ा कर घर में घुस गए थे। उनकी इस तरह की एंट्री से मैं सकपका गया था। स्वामी जी, स्वामी जी, कहता हुआ मैं उनके पीछे दौड़ा था। वह अकेले भी नहीं थे। उनके पीछे-पीछे नायलॉन की झीनी महंगी साड़ी पहने दो महिलाएं और तीन-चार हृष्ट-पुष्ट चेले थे।
स्वामी जी सीधे ड्राइंग रूम में रखे बड़े सोफे पर जाकर बैठ गए थे। उनके अगल-बगल महिलाएं विराजमान हो गई थीं। युवा चेले उनके पीछे छाती पर हाथ बांध कर पहरेदारों की तरह खड़े हो गए थे। मैं चुपचाप सामने वाले सोफे पर बैठ गया था। कुछ समझ नहीं आ रहा था।
पहचाना? स्वामी जी ने मुस्करा कर पूछा था।
नहीं।
कपड़े पहचान लेते हो, पर आदमी को पहचानने में दिक्कत होती है तुमको! उन्होंने जोर से ठहाका लगाया था। तुम्हारी बुद्धि का यह दोष सबसे बड़ा है, बच्चे। तुम्हें सिर्फ कपड़े दीखते हैं, उनको देख कर नतमस्तक हो जाते हो या फिर नजर फेर लेते हो। कपड़ों में लिपटा हुआ आदमी तुमको कभी नहीं दिखा है। हमारी तुम्हरी पहचान बेहद सतही है, बच्चे।
उनका उलाहना सुन कर मैं कुछ शर्मिंदा हो गया था, पर मेरा दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। कौन हो सकता है यह व्यक्ति, जो इतने हौसले से मेरे घर में घुस आया। महिला ने तभी अपने झोले से चांदी का गिलास निकाला और थरमस में से स्वामी जी को दो घूंट संतरे का रस दे दिया। स्वामी जी उसको एक बार में गटक गए थे। इनको भी पिलाओ, उन्होंने शिष्या को आदेश दिया। शिष्या ने कुछ रस फिर से गिलास में डाला और मुझे थमा दिया। पियो, बच्चा। अमृत चख लो।
गिलास होठों पर लगाते ही मुझे उसमें से अलग-सी महक आई थी। स्वामी जी ने फिर ठहाका लगाया था। हां हां वही है, जो तुम समझ रहे हो… तुम्हारा प्रिय पेय। खास तुम्हारे लिए मिलवा कर लाया हूं। सूत जाओ।
जैसे ही उन्होंने ‘सूत जाओ’ कहा, मेरे दिमाग की घंटी बज गई थी। अरे तुम! मेरे मुंह से यकायक निकला था। वह हंसने लगा था। कपड़ों का सब खेल है भाई, उसने कहा, कपड़े हमारी पहचान हैं। अगर तुम मुझे जीन्स में देखते तो फौरन पहचान जाते, क्योंकि तब मेरी पहचान जीन्स से जुड़ी हुई थी। तुम हाय कहते, पर जब तुमने जोगिया वस्त्र देखे तो नतमस्तक हो गए। वैसे अगर शक्ल से पहचान भी लेते तब भी जोगिया के आगे अपने आप झुक जाते। कपड़े व्यवहार में अंतर ले आते हैं।
सही कह रहे हो। पर ये बताओ कि तुम वही उद्दंड प्राणी हो या फिर बदल गए हो? साधु वेश की लाज तुमने सुरक्षित रखी है क्या?
शिष्या ने झोले में हाथ डाला और फौरन स्वामी जी को एक सिगार थमा दिया। दूसरी ने कहीं से लाइटर निकाला और पूरी श्रद्धा से स्वामी जी की डंडी सुलगा दी। प्रिय दोस्त, स्वामी जी ने धुएं के छल्ले छोड़ते हुए कहा, हमारे पूर्वज कहा करते थे कि जिस तरह हम कपड़े बदलते हैं उसी तरह आत्मा शरीर बदलती है। आत्मा कभी मरती नहीं है। वह अजर अमर है। पानी न उसको भिगो सकता है और न ही अग्नि उसे जला सकती है। मैं आत्मा हूं। जैसा था वैसा ही रहूंगा, कपड़े आते-जाते रहेंगे।
हां, इन पांच मिनटों में तुम्हारी हरकतें देख कर मैं समझ गया हूं कि तुम पीपल के पेड़ पर उलटा लटकी हुई पुरानी वाली अजर अमर आत्मा हो। तुम कभी नहीं सुधरोगे। पर यह तो बताओ श्रद्धेय महामहिम, कि यह कौन-सी लीला है।
सुख अर्जित करने वाली लीला, उसने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा- यार, तुम तो जानते हो कि लोग मुझे कभी नहीं समझ पाए थे। मैं अपने में मस्त रहना चाहता था, पर कभी नौकरी आड़े आ जाती थी तो कभी बीवी। दो बार तो मुझे तुम्हारे सामने नौकरी से निकाला गया था, क्योंकि जिम्मेदारी निभाने से मुझे चिढ़ थी। मुझे अपने लिए बिना जिम्मेदारी वाला सुख चाहिए था और साथ में कुछ सम्मान। बस, मैंने कपड़े बदल लिए। अब जो चाहता हूं, करता हूं। जब मूड आता है, कुछ ज्ञान बांट देता हूं- अमूमन अंग्रेजी में। अंग्रेजी में आदर ज्यादा होता है।
हां गुरु जी। तुम तो हमारे लिए हमेशा से ही शेक्सपियर रहे हो। कहो, इतने साल बाद कैसे आना हुआ?
शहर में था तो आ गया। कोर्ट में केस लगा हुआ है। जमीन-जायदाद का मसला है। गांव में गंगा किनारे अच्छी जमीन है, जिसे पहले दबाने की कोशिश की थी, पर जीन्स छाप साधारण आदमी की कौन सुनता है? हथिया नहीं पाया था। सो, मैंने सोचा एक पंथ दो काज हो जाएंगे अगर मैं अपने कपड़े बदल लूं। स्टेज पर एक्टिंग करनी बंद कर दी और स्वामी के कैरेक्टर में उतर गया। यह चोला मेरे लिए एक कलाकार की कॉस्टयूम की तरह है। पहने हूं, क्योंकि पिक्चर अभी बाकी है दोस्त।
जमीन मिल जाएगी फिर क्या होगा? तुम रईस हो जाओगे ?
हां, वैसे मैं आजकल भी गरीब नहीं हूं। अच्छा चढ़ावा आ जाता है। ये लोग, उसने अपने चेलों की तरफ इशारा किया, कोई भक्त थोड़े ही हैं। मुलाजिम हैं। मैं इनको पालता हूं, क्योंकि आडंबर के बिना वस्त्रों की साख या के्रडिबिलिटी नहीं बन पाती है। लोग नुमाइश चाहते हैं। चढ़ावा रंग-रोगन पर आता है। अखाड़े की जमीनी हकीकत है। निर्वाण को कौन पूछता है? निर्वाण के पीछे सब दीवाने हैं। जो हमारा केस देख रहे हैं कोर्ट में, वे जज साहब भी हमारी नॉलेज और विजडम से बहुत इंप्रेस्ड हैं। मैंने उनको कह दिया है कि जब जमीन मिल जाएगी, तो उस पर मैं इंटरनेशनल गोशाला खोलूंगा। हर देश की गाएं उसमें रखी जाएंगी, इंटरनेशनल सेमिनार होेंगे, विदेश यात्राएं होंगी वगैरह।
मैं उसकी बात सुन कर हंसने लगा था। यार, तुम तो अव्वल दर्जे के फ्रॉड निकले। यह प्रतिभा तुममें अब तक कहां छिपी हुई थी?
स्वामी जी ने एक और लंबा सुट्टा मारा और सिगार शिष्या को थमा दिया।
दोस्त, तुम्हारा रिश्तेदार जमीन वाले केस में दूसरी पार्टी की तरफ से वकील है। मुझे उससे मिलवा दो। मैं उसको समझा दूंगा कि अगर वह केस मुस्तैदी से न लड़े तो फायदे में रहेगा। गोशाले का ट्रस्टी बना दूंगा- उसे भी और तुम्हें भी।
हम लोगों को सब कुछ बना डालोगे, तो तुम क्या करोगे? मैंने मुस्करा कर पूछा था।
न्यू एज गुरु बन जाऊंगा। दाढ़ी और बाल थोड़ा ट्रिम करा कर नई पोषक अपना लूंगा। लोकल में वोकल बहुत हो चुका हूं, ग्लोबल बन जाऊंगा। पावर विदाउट रिस्पांसबिलिटी का पूरा सुख उठाऊंगा।
और गोसेवा ?
वो तुम करो। निर्वाण प्राप्त करो। मेरे बताए हुए धर्म के चौकीदार बन जाओ, सीटी बजाते हुए घूमो। मुझे तो सिर्फ अपनी सेवा करवाने से मतलब है। बहुत से संत धर्म का काम बहुत अच्छी तरह से कर रहे हैं। उनका सुख उनको मुबारक हो। आज जोगिया पहने हूं, कल हरा पहन लूंगा। मुझे तो यार बस जीने दो, भरपूर जीने दो।