रामजी की कृपा है कि चुनाव आया और हुजूर आप हमारे दरवाजे पर आए। अधेड़ उम्र के ग्रामीण ने जमीन पर उकड़ंू बैठते हुए निरीह भाव से कहा। आप सरकार हो, आपको सब कुछ पता है… पूरे प्रदेश का हाल आपके पास है। हम का बताई? मैं और मेरा एक सहयोगी चुनाव देखने के लिए निकले थे और प्रतापगढ़ के एक गांव में चले गए थे। लंबी गाड़ी आती देख गांव में हलचल मच गई थी और कुछ लोग नीम के नीचे बने चबूतरे पर जमा हो रहे थे।

मेरे सहयोगी कार से पहले उतरे थे और उन्होंने अपनी शैली में गांव के लोगों से कहा था कि ‘सर’ उनसे बातचीत करने आए हैं। ‘सर’ का मतलब उन्होंने बड़ा सरकारी अफसर होने से लगा लिया था। मुझे उनके मन का भाव बाद में पता चला। मैं पत्रकार की तरह उनसे बात करता रहा और वे मुझे कोई अफसर समझ कर जवाब देते रहे थे।

उकड़ू बैठे व्यक्ति को मैंने अपने पास चबूतरे पर बैठने को कहा था। पर वह नहीं माना, प्रधान जी को पता चलेगा कि हम आपकी बराबरी में बैठ गए थे, तो वो हमार चमड़ी उतार देंगे। हम यहीं ठीक हैं। मैंने उसका हाथ पकड़ कर उठा दिया। आप बैठने नहीं दे रहे हो, सो हम खड़े हो जाते हैं, पर चबूतरे पर नहीं बैठेंगे।

ठीक है, खड़े-खड़े ही बात कर लेते हैं। मैंने बीच का फार्मूला निकाला था। तभी भीड़ चीरता हुआ एक नौजवान आगे आ गया। वह अपने साथ एक खटिया ले कर आया था। बाऊ, उसने अधेड़ व्यक्ति से कहा, साहब ठीक तो कह रहे हैं। तुम खटिया पर बैठो, उनको चबूतरे पर बैठने दो। हम उस पर चद्दर बिछाए देत हैं।

कुछ हुज्जत के बाद वह व्यक्ति हमारी बात मान गया और खाट पर बैठ तो गया, पर संकोच उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था। आपका नाम क्या है? मैंने पूछा। राम अवतार, उसने कहा। और तुम्हारा? मैंने नौजवान से पूछा। राम खिलावन, उसने तपाक से उत्तर दिया। अरे, अजब संजोग है… तुम दोनों का नाम राम से जुड़ा है। हमने मुस्करा कर कहा।

रामजी के आलावा और कौन है हमरा साहब। वो ही तो पालनहार हैं… बाकी सब तो यंू ही हैं…
राम खिलावन ने बाऊ की बात संभाल ली। साहब, हमारे गांव में अधिकतर लोगों के नाम राम से जुड़े हैं… औरतन का नाम भी जानकी और सीता है। मेरी मां कौशल्या है। अच्छा, यह कैसे? मैंने उत्सुकता से पूछा।

राम अवतार ने सिर हिलाया, पता नहीं साहब… बस चला आ रहा है पीढ़ी-दर-पीढ़ी… सबको बहुत सुहाता है।
मुझे उसका सरल, निश्छल भाव अच्छा लग रहा था। अयोध्या गए हो कभी? मैंने पूछा। नहीं साहब, राम अवतार ने सिर हिला दिया। तुम्हें पता है कि वहां भव्य राम मंदिर बन रहा है? हां, पता है साहब। बक्से (टेलीविजन) पर आता रहता है।
वहां जाने का मन है?

राम अवतार ने अपनी आंखें जमीन से उठाई और पहली बार मेरी तरफ सीधे देखा, वहां क्या है? राम तो यहीं हैं। और सांड़ पीछा छोड़ें तो कुछ और सोचें… वह कुछ आगे भी बोलना चाहता था, पर रुक गया।
पर राम खिलावन से नहीं रहा गया- सर, साफ कहेंगे, चाहें आप हमको उठवा (गिरफ्तार) लीजिए या फिर राशन-पानी बंद कर दीजिए। अब बहुत हो गया है… यह छूटल पशु हम सबकी जिंदगी नरक कर दीस है…. चारों तरफ घूम रहे हैं… फसल लगती है और वो चर कर चले जाते हैं… खेत एक मिनट नहीं छोड़ सकते हैं… पांच साल हो गए हैं और कितना झेलें, बताइए?

अपनी बात कहते-कहते वह दो कदम आगे बढ़ आया था। अचानक उसे अपनी गुस्ताखी का खयाल आया और वह पीछे हट गया। पर गुस्सा नहीं पी पाया था। उसके चेहरे पर वह साफ झलक रहा था।
सर, हमरे लिए यह चुनाव सांड़ चुनाव है…
सांड़ चुनाव! हम लोग हंसने लगे।

जी सर, आपको हम पर हंसी आ रही है, पर हम सही कह रहे हैं। आप हमरा दर्द नहीं जान सकते हैं।
नहीं ऐसा नहीं है, मैंने उसे आश्वस्त किया, हम आपका दर्द जानने ही आए हैं। सरकार… राम खिलावन ने टोक दिया, सब सांड़ हैं। हमारी मेहनत चर रहे हैं। छुट्टा घूम रहे हैं सरकारी सांड़… कुछ खेत में हैं, कुछ पंचायत में, तहसील में और विधानसभा में भी। हमारा खेत खाते हैं और सींग भी मारते हैं…

चुप कर खिलावन, राम अवतार उठ खड़े हुए, क्या बकबका रहा है… बहुत बोलता है तू।
हमको चुप करा रहे हो बाऊ और खुद सुबह से शाम तक बड़बड़ात हो।
चुप कर और नाश्ते का इंतजाम देख। रोज रोज साहब हमरे दुआरे थोड़े ही आते हैं।
खिलावन ने एक और लड़के को फरमान सुना दिया, जा मां से कह दे कि चाय नाश्ता फौरन बना दे। वह लड़का एक अधपक्के मकान की तरफ दौड़ पड़ा।

यह गांव… हमने बात फिर से शुरू की, पर उसने बीच में ही लपक ली ।
आप कौन जाति कितनी है, जानना चाहते हैं न? सर, ब्रह्मणों का गांव है, अस्सी प्रतिशत हम लोग हैं, दस ठाकुर हैं और बाकी निचली जाति के हैं।
नहीं, मैं जाति नहीं पूछ रहा था…

खिलावन ने सिर खुजाया। पर साहब, आप क्यों नहीं पूछ रहे हैं? सरकारी लोग, राजनीति वाले सबसे पहले जाति पूछते हैं। जाति पर तो सरकार टिकी है। आपका महकमा जाति पर चलता है। हमारे दारोगा जी तीन साल से यहां अपनी जाति के बल पर मूंछ ऐंठ रहे हैं। चुनाव जाति पर लड़ा जा रहा है। जाति जाने बिना आपका काम कैसे चलेगा?

भाई, तुमको शायद कुछ गलतफहमी हो गई है। हम सरकारी अफसर नहीं हैं। हम पत्रकार हैं।
पत्रकार भी तो जाति पूछ कर अपना लिखते हैं। और क्योंकि आप पत्रकार हैं तो आपको बता दें, गांव में दो दर्जन से ज्यादा मुसलमान परिवार भी है। रामजी के गांव में हम सब ठीक हैं। वो भी सांड़ के खिलाफ वोट देंगे, क्योंकि हमारा दर्द उनका दर्द है। अगर हम उजड़ गए तो वो कैसे बसे रहेंगे? हमारे खेत का औजार वो बनाते हैं साहब। उनके बिना हमारी खेती वीरान हो जाएगी और जब खेत नहीं रहा, तो उनके औजार किस काम के होंगे?

हां… ठीक कह रहे हो।
सर, उसने कहा, मुफ्त का राशन आप रख लो, हमें सिर्फ सरकारी सांड़ों से छुटकारा दिला दो। रामराज्य में अगर यह आतंक चलता रहेगा तो हमारे लिए अयोध्या का क्या मतलब है?