मैं घर पर यज्ञ करवा रहा हूं। पूजा भी बैठा रखी है। तीन विद्वान यज्ञ में लगे हैं तो तीन पूजा में। पहले तीन को-वै यज्ञ कर रहे हैं। मोहल्ले के कुछ तोतले बच्चे को-वै (कोरोना वैक्सीन) को ठीक से बोल नहीं पाते हैं, इसलिए पड़ोसियों को बता आए कि हम कउवा यज्ञ करवा रहे हैं। उत्सुकतावश दो-तीन लोग देखने भी आ गए कि कउवा यज्ञ आखिर किस बला को टालने के लिए होता है। मैंने उनको समझाया कि काले कौवे से इसका कोई लेना-देना नहीं है। यज्ञ कोरोना महामारी से अपने और परिवार को बचाने के लिए करवा रहा हूं। और जो पूजा बैठी है उसमें विद्वान पंडित कोरोना निरोधक कवच का जाप कर रहे हैं। महामारी ने फिर से सिर उठा लिया है और उससे बचने के लिए मुझे ये सबसे कारगर उपाय लगते हैं।
मेरी बात सुन कर लोगों की आंखें आश्चर्य से फट गईं। यह आप क्या कह रहे हैं? कोरोना का उपाय तो वैक्सीन है। जाइए, किसी अस्पताल में और टीका लगवा आइए। कौन से शास्त्र में कोरोना यज्ञ या पूजा के बारे में लिखा है? उन्होंने कहा। हां मैं जानता हूं कि कोरोना के बारे में शास्त्र, वेद और पुराण कुछ नहीं कहते, पर भाई हमारी बीमारियों को पूजने की पुरानी परंपरा रही है। शीतला माता के मंदिर कभी आप लोग गए हैं? पर यह कोरोना है, चेचक नहीं है… एक ने परिवाद किया। उस समय चेचक थी, आज कोरोना है… दोनों बीमरियां ही तो हैं, अगर हम शीतला माता पूज सकते हैं और उनके आशीर्वाद से घातक बीमारी से बच सकते हैं, तो कोरोना मैया की पूजा से वही लाभ क्यों नहीं उठा सकते हैं?
और हां, मुझे अचानक याद आया, मैंने एक ज्योतिषी को भी मासिक वेतन पर रख लिया है। वह ग्रहों को पढ़ कर मुझे रोज बता देता है कि आज कितने बजे से कितने बजे के बीच ऐसी दशा बन रही है, जिसमें मुझे कोरोना होने की संभावना है। मेरा काम उसने बेहद आसान कर दिया है। जितने समय कोरोना काल होता है, मैं घर से नहीं निकलता हूं, बार-बार साबुन से हाथ धोता हूं और अकेले होने पर भी मास्क लगाए रहता हूं। यज्ञ, पूजा और ज्योतिष कोरोना प्रतिरोधक हैं, इनकी अलग-अलग डोज हैं, जिन्हें मैं लेता रहता हूं। मुझे कोरोना टीके की क्या जरूरत है?
मेरे पड़ोसी हतप्रभ थे। मतलब, एक की जुबान लड़खड़ाई, आप टीका नहीं लगवाएंगे? नहीं, मैंने गर्व से सिर ऊंचा कर के उत्तर दिया, मैं हवन करूंगा। यह वह उपाय है, जिसमें कोई सुई नहीं लगती, ‘आफ्टर इफेक्ट’ नहीं होता है। सोए सूते काम हो जाता है। और यह उतना ही प्रभावी है, जितना कि टीका है।
वो कैसे? एक फिर उचका। उसके फोन पर वाट्सऐप्प खुला हुआ था। वह शायद कउवा पूजा और यज्ञ की विशेष जानकारी अपने मुहल्ले के ग्रुप में एकदम लाइव डाल रहा था। देखो भाई, जब पिछले साल कोरोना का आगमन हुआ था, तो हमने उसको भूत समझ थाली-कनस्तर बजा कर भगाने की कोशिश की थी। वह नहीं भागा। फिर बताया गया कि जब सूई आ जाएगी तो कोरोना गायब हो जाएगा। सूई आ गई, तो कहा गया कि एक नहीं, दो लगानी पड़ेगी। दूसरी अठाईस दिन बाद लगेगी और वह भी तभी कारगर होगी, जब कुछ और दिन गुजर जाएंगे। अब यह कहा जा रहा है कि सूई पूरी तरह से कारगर नहीं है- अस्सी फीसद या कुछ ऐसे ही फीसद है- यानी सौ फीसद वाली बात भूल जाओ। उसको लगवाने के बाद अगर प्रकोप हो गया, तो भैया तुम्हारी किस्मत खराब है। हां, सांत्वना यह दी गई है कि अगर कोरोना हो गया तो उतना भीषण नहीं होगा, जितना होना चाहिए था। अब आप ही बताओ, हमको सूई आने पर निजात मिली कि हुज्जत? किसी को पता है कि सूई का कितना फायदा है?
पर बताते हैं, बचाव तो है ही, दूसरा मोहल्ले वाला बोला। क्यों नहीं होगा, मैंने कहा, टीकाकरण पहले भी प्रभावी रहा है, न जाने कितनी जानें इसने बचाई है। विज्ञान से कोई इनकार नहीं कर सकता और न करना ही चाहिए। विज्ञान हमारी सबसे बड़ी ढाल है। पर मैं आज वाली सूई की बात कर रहा हूं। जो बताया जा रहा है वह वैसे ही है जैसे मेरा ज्योतिषी है- पचास फीसद तो वह हमेशा ठीक होता है। टीके वालों की तरह वह भी बताता है कि ग्रह खराब हैं, उपवास करें या फिर पूजा कराएं- मास्क लगाएं, दो गज की दूरी, हाथ धोएं आदि। हम करते हैं, क्योंकि बताया गया है। फिर भी अगर कुछ गलत हो जाता है, ठीक वैसे जैसे दोनों सूई लगवाने के बाद, तो डॉक्टर और ज्योतिषी एक ही बात कहते हैं- होना तो नहीं चाहिए था, आपकी किस्मत का कहर है, जो हो गया। तो, सौ फीसद सूई भी नहीं है और न ही ज्योतिष।
मगर इसका मतलब यह तो नहीं कि हम सूई छोड़ कर हवन और ज्योतिष में लग जाएं? उसने फिर पूछा। देखो भाई, मैंने अक्ल के अंधों को समझाया, हम लोग मुसीबत के समय में चालीसा पढ़ते हैं कि नहीं? अपने बचाव के लिए मंत्रों का जाप करते हैं न? उनके प्रभाव से अक्सर हम पूरी तरह से तो नहीं बच जाते हैं, पर दुष्परिणाम कम तो हो जाते हैं?
इसी तरह सूई जरूर लगवाओ। हवन करो, पूजा भी, और ग्रहों पर नजर रखो। क्या प्रामाणिकता है इसकी? एक और ने पूछा, कितने लोगों पर इसका टेस्ट हुआ है? इन सब का फील्ड ट्रायल चल रहा, प्रयोगशाला में ट्रायल की जरूरत को दरकिनार करके सीधे फील्ड ट्रायल हो रहा है। दवा कंपनियां सूई की कर रही हैं और मैं यज्ञ वगैरह की। दोनों से कुछ को फायद होगा, कुछ को नहीं। हम दोनों सिर्फ उन्हीं को ढूंढेंगे, जिनको फायदा हुआ है। हम दोनों को अपना बाजार बनाए रखना है। और अगर फायदा कम नजर आता है तो हम कर्मों की दुहाई देंगे, क्योंकि किसी को नहीं मालूम है कि दवा काम करती है या दुआ। वैसे अपनी सुई पर शनि की दृष्टि ठीक नहीं पड़ रही है। दवा को दुआ की बेहद जरूरत है। मैं उसके लिए हवन करवाने जा रहा हूं।