राष्ट्रीय आय को लेकर केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने 31 अगस्त, 2021 को अनुमानों का एलान किया था। उसमें जीडीपी का आंकड़ा वास्तव में ध्यान आकर्षित करने वाला था- 20.1 फीसद। उम्मीद थी कि इन आंकड़ों और सरकार के खेल से हम लोग बहकावे में आ जाएंगे।
कुछ भक्तों को छोड़ कर मीडिया और लोगों की तारीफ करनी चाहिए कि उन्होंने इन आंकड़ों के झांसे में आने से इनकार कर दिया और जल्द ही सच्चाई को जान लिया। सच्चाई यह थी कि 2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर (20.1 फीसद) महज एक सांख्यिकीय भ्रम थी, क्योंकि आधार अप्रत्याशित रूप से 2020-21 की पहली तिमाही के मुकाबले कम था। यह तो वह था, जिसे कुछ महीने पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की प्रमुख अर्थशास्त्री डॉ. गीता गोपीनाथ ने गणितीय वृद्धि करार दिया था।
लोग जो हासिल कर सकते हैं
फिर भी हमें 20.1 फीसद वृद्धि का स्वागत करना चाहिए, क्योंकि इससे यह पता चलता है कि असंवेदनशील और बेपरवाह सरकार के बावजूद एक देश और इसके लोग क्या हासिल कर सकते हैं। पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2021) के शुरुआती हफ्तों में जब महामारी की दूसरी लहर चल रही थी, तब राज्य सरकारों ने अर्थव्यवस्था को बंद किए बिना संकट का सामना कर लिया।
मोदी सरकार आक्सीजन की आपूर्ति और आबंटन के प्रबंधन में बुरी तरह नाकाम रही, कई हफ्तों तक आक्सीजन की भारी कमी बड़ी संख्या में लोगों की मौत का कारण बनी (एक मौत का आंकड़ा दर्ज किया गया और कम से कम दस छोड़ दिए गए)।
20.1 फीसद की वृदि दर लोगों के निजी खपत खर्च की वजह से देखने को मिली है। वस्तुओं और सेवाओं पर लोगों ने अपना पैसा खर्च किया। पहली तिमाही में यह 17,83,611 करोड़ रुपए था और पिछले साल की पहली तिमाही जब देश कोरोना की पहली लहर की चपेट में था, के मुकाबले इसमें जोरदार वृद्धि दर्ज हुई।
सही पैमाना
एक और अंतिम खर्च है। यह सरकार का है। कल्पना कीजिए कि अगर सरकार के खर्च की रफ्तार ‘निजी अंतिम खपत खर्च’ के बराबर होती तो क्या नतीजे होते। पिछले साल पहली तिमाही में सरकार का खर्च चार लाख बयालीस हजार छह सौ अठारह करोड़ रुपए था, जो इस बार पहली तिमाही में गिर कर चार लाख इक्कीस हजार चार सौ इकहत्तर करोड़ रुपए रह गया।
न ही सरकार ने निर्यात बढ़ाने के लिए असरदार कदम उठाए, जो वृद्धि के चार इंजनों में से एक है। सकल निर्यात भी, जो पिछले साल की पहली तिमाही में चौंतीस हजार इकहत्तर करोड़ रुपए था, इस साल की पहली तिमाही में गिर कर ऋणात्मक बासठ हजार चौरासी करोड़ रुपए पर आ गया है। हालांकि 20.1 फीसद की वृद्धि दर गणितीय तो है, पर इसके लिए धन्यवाद के पात्र लोग हैं, सरकार नहीं।
खर्च के मामले में साहस दिखाने में सरकार नाकाम रही है, और अगर पैसे की कमी थी तो इसमें उधार लेकर खर्च करने का साहस होना चाहिए था। इसे निचले तबके के बीस-पच्चीस फीसद परिवारों को नगदी देनी चाहिए, उस पैसे से निजी अंतिम खपत खर्च को तेजी से बढ़ाया जा सकेगा। बढ़ाए गए सरकारी खर्च और निजी खपत खर्च में वृद्धि को एक साथ मिला दिया जाए तो वृद्धि दर पच्चीस फीसद के ऊपर निकल जाएगी और इस प्रकार यह पिछले साल की 24.4 फीसद गिरावट के समान आ जाएगी।
वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही के आंकड़े अर्थव्यवस्था की गंभीर कमजोरियों को भी उजागर करते हैं। सही पैमाना 2020-21 (महामारी वर्ष) नहीं है, बल्कि 2019-20 (महामारी पूर्व का वर्ष) है। उस साल सालाना उत्पादन निस्संदेह सामान्य था, फिर भी बढ़ता हुआ नहीं। क्या हम अब भी उसी स्तर पर हैं? जवाब है- नहीं।
इन प्रमुख आंकड़ों पर गौर करें-
अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र अभी तक उत्पादन में 2019-20 का स्तर हासिल नहीं कर सके हैं। सबसे बदतर स्थिति तो यह है कि इन क्षेत्रों में उत्पादन 2018-19 के स्तर से भी नीचे बना हुआ है। सिर्फ कृषि क्षेत्र है, जो बेहतर नतीजे दे रहा है।
आंकड़े एक और नतीजे को रेखांकित करते हैं, जिसे पर्यवेक्षकों, सर्वे और सीएमआई की रिपोर्टें उजागर करती रही हैं, लेकिन सरकार ने इस पर जोरदार एतराज किया है, और यह है- रोजगार खत्म होना।
अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट (कुप्रबंधन की वजह से) के कारण 2019-20 में लाखों नौकरियां गईं। 2020-21 में महामारी के दौरान और रोजगार चले गए। जिन लोगों का रोजगार गया, उन्हें 2021-22 में फिर से काम नहीं मिला। यह भी याद रखें कि अनौपचारिक क्षेत्र और एमएसएमई में ही सबसे ज्यादा रोजगार है, जिस पर वर्तमान स्थिति में सीएसओ के अनुमान में गौर नहीं किया गया।
अनजान और डरपोक
वी-आकार के सुधार की मुख्य आर्थिक सलाहकार की बातें तकलीफदेह हैं। जब तिमाही वृद्धि दर 5.1 फीसद गिर कर शून्य से 24.4 फीसद नीचे आती है, तो वह अंग्रेजी के अक्षर ‘वी’ को बाईं ओर के झुकाव के रूप में दर्शाएगी और कोई भी थोड़ी-सी भी वृद्धि ‘वी’ को दाईं तरफ झुकाव के रूप में दर्शाएगी।
अगर मामूली वृद्धि भी तिमाही दर में बनी रहती है तो दाईं ओर का रुझान बढ़ेगा, पर बहुत धीरे-धीरे। यह बहुत आसान काम है। असल सवाल तो यह है कि हम जीडीपी का पूर्व स्तर कब हासिल करेंगे, जो 2019-20 में था?
सुधार तेज करने के लिए सरकार काफी कुछ कर सकती है, लेकिन जैसा कि अक्सर मैं कहता रहा हूं, यह अनजान और डरपोक है। एक सितंबर को एक अखबार के संपादकीय का शीर्षक देख कर मैं वाकई आश्चर्य में था, जिसमें लिखा था- ‘सरकार उधार लेकर खर्च करे’। मैं इस सलाह का समर्थन करता हूं। अर्थव्यवस्था को तेजी से दुरुस्त करने का यही रास्ता है।