अदालत के गलत हवाले से कहे गए वाक्य पर अदालत के आगे राहुल ने खेद जताया। लेकिन राहुल को राहत नहीं दी गई। अदालत ने कह दिया कि फिर से हलफनामा दें। इस पर कई चैनल प्रतियोगिता में आमने-सामने रहे। एक कहता कि राहुल संकट में! दूसरा कहता कि राहुल परेशानी में! इसके आगे बहसें खड़ी थीं। लेकिन इसमें बहसें क्या करेंगी? करना तो अदालत को है और अदालत ने कह दिया कि फिर से साफ-साफ लिख कर दो! तब काहे की बहस? लेकिन कुछ एंकरों को ‘राहुल फोबिया’ है। वे जब तक राहुल को ठोक न लें, तब तक उनको चैन नहीं पड़ता दिखता। कई एंकरों में कंपटीशन-सा दिखता है कि कौन किस तरह से राहुल को शर्मिंदा करता है, उनकी शेम शेम करता-कराता है और सीधे माफी मंगवाता है।
एक बार फिर राहुल की नागरिकता पर सवाल उठाए जाने लगे। और इस बार नागरिकता का सवाल किसी छोटे-मोटे ने नहीं उठाया, बल्कि सुब्रह्मण्यम स्वामी ने उठाया कि राहुल की नागरिकता स्पष्ट हो! ज्यों ही नागरिकता पर सवाल उठा, त्यों ही सब चैनल ‘बिजी’ हो गए। एक चैनल पर कांग्रेसी प्रवक्ता ने साफ कर दिया कि पहले भी यह मुद्दा उठाया गया था और सर्वाेच्च अदालत ने उसका फैसला भी कर दिया था कि वे भारत के नागरिक हैं।
लेकिन सवाल तो सवाल है। और वह भी राहुल की नागरिकता का सवाल! आप उठा भर दें और पूरे दिन आनंद लें। चैनल सवाल लपक लेंगे और पहले से ही उत्तरित सवाल को फिर से दिन भर धुनते हुए पूछते रहेंगे कि राहुल जी आप किस देश के नागरिक हैं? ताकि राहुल की नागरिकता को लेकर फिर से संदेह का जाल बुन दिया जाय!
एक दिन जब कोई बड़ा मुद्दा न मिला, तो एक न्यायप्रिय एंकर आयोग के ही पीछे पड़ गया। कहने लगा कि चुनाव आयोग में महीने पुरानी ढेर सारी शिकायतें पड़ीं हैं, लेकिन आयोग विचार ही नहीं करता!
यारो! ये क्या बात हुई? इस देश में चुनाव करवाना हंसी ठठ्ठा है क्या? हर आदमी दूसरे की शिकायत करने को तैयार रहता है। किस-किस से निपटें?
और भई! हमें तो अपने सभी नेता, वक्ता, प्रवक्ता और अधिवक्ता ‘आदर्श’ नजर आते हैं। वे जानते हैं कि जब तक जोरदार ‘बाइट’ का प्रहार न करें, कोई सुनता ही नहीं। चैनलों को चटपटी बाइट न दें तो खबर कैसे बने? और खबर न बने तो चुनाव कैसे जीतें?
पहले तो एंकर ही कुरेद-कुरेद कर कुछ न कुछ कड़वा-तीखा कहलवा लेते हैं, फिर हाय हाय करते-कराते हैं, फिर दूसरे आ जुटते हैं और पूरे दिन हाय हाय करते-कराते रहते हैं। इस सब में बताइए आयोग करे तो क्या करे?
बुरका बंद किया श्रीलंका ने और पे्ररणा मिली शिवसेना को और ‘सामना’ को। उसने फौरन लाइन दी कि इधर भी बुरका बैन जरूरी!
इंडिया टुडे पर एक भाजपा प्रवक्ता ने बताया कि भाजपा इस मांग से सहमत नहीं। शाम तक उद्धव ठाकरे ने भी ‘सामना’ की लाइन से शिवसेना को अलग कर लिया। लेकिन इससे क्या? बात निकली तो दूर तक गई ही। पहले ओवैसी जी उवाचे कि बुरका बैन तो घूंघट बैन क्यों नहीं? उधर जावेद अख्तर बोले कि बुरका बैन करें तो घूंघट बैन भी करें।
यानी न बुरका बैन करो न घूंघट बैन करो! इसे कहते हैं : ‘कपंटीटिव सेक्युलरवाद!’
इस बीच एक एंकर से बातचीत में प्रियंका बोल उठीं कि हम वोट काटने के लिए लड़ रहे हैं।… ये क्या कह उठीं प्रियंका जी! कल तक कहती थीं कि हम जीतने के लिए लड़ रहे हैं। अचानक यह क्या उलटा-पुलटा कह बैठीं? चुनाव के सबसे निर्णायक दौर में क्या कभी ऐसी बातें भी बोली जाती हैं? अगले दिन गलती को ठीक किया, लेकिन बात तो निकल चुकी थी।
भाजपा ने तुरंत ताल ठोकी कि ऐसा कह कर कांगे्रस ने हार स्वीकार कर ली है। चुनाव के आखिरी चरणों में ऐसा बढ़िया सेल्फ गोल सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है!
बस एक ही सुंदर और प्रसन्न क्षण तब बनता दिखा, जब चैनलों में खबर ब्रेक हुई कि यूएन द्वारा मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय टेररिस्ट घोषित कर दिया गया है। अपने कई एंकर इसे सुन अपना सीना ऐसे फुलाए रहे, मानो उनके ही पुण्य प्रयत्नों से ऐसा हुआ हो।
खुशी के ऐसे मौके पर भी विघ्नसंतोषी न माने। कांग्रेस ने कहा कि अच्छी बात है, लेकिन इतने से क्या होता है? आजाद बोले कि सरकार को मांग करनी चाहिए कि हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों को भारत को सौंपा जाए!
भाजपा के प्रवक्ता इस मुद्दे पर अपने फार्म में दिखे कि देखी हमारी सरकार और हमारे नेता की ताकत कि ऐसा हो पाया कि चीन तक ढीला हो गया। यह है अपना पव्वा!
विघ्नसंतोषी कांग्रेस के प्रवक्ता फिर भी न माने। कहने लगे कि इसके लिए चौदह से उन्नीस तक इंतजार क्यों किया? यह पहले भी हो सकता था, अभी ये क्यों हुआ?
हमारी नजर में ऐसी आलोचना हारी हुई आलोचना होती है, जो जिसकी आलोचना करती है उसी की ताकत को बढ़ाती नजर आती है। इसमें एक खिसियाहट ही झलकती है!
