जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने पिछले हफ्ते शान से एलान किया कि भारत के प्रधान न्यायाधीश को बर्खास्त करने का राज्यसभा में प्रस्ताव पेश कर रहे हैं, तो मुझे शक होने लगा कि मामला कुछ और है। इसलिए कि जिन ‘आरोपों’ को इन राजनेताओं ने पत्रकारों के सामने पेश किया था, उनमें खास दम नहीं दिखा। इसलिए भी कि कुछ समय से मुझे लगने लगा है कि कांग्रेस तय कर चुकी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब इतने कमजोर हैं कि उन पर लगातार वार करने का वक्त आ गया है। पिछले हफ्ते राहुल गांधी ने अमेठी में कहा कि बैंकों में नकदी इसलिए कम हो गई है क्योंकि मोदी ने हमारे नोट नीरव मोदी को दे दिए हैं। यह बचकाना आरोप है, लेकिन राहुल के चेहरे पर आत्मविश्वास ऐसा दिखा जैसे युवराज साहब अभी से दिल्ली की गद्दी पर आसीन हो चुके हैं। जब आप ऐसे परिवार के वारिस हों, जिसने स्वतंत्र भारत के सत्तर में से पचास वर्षों तक राज किया है, तो गद्दी से वंचित किया जाना वैसे भी ठीक नहीं लगता है और ऊपर से एक ‘चायवाले’ के कारण। सो, सोनिया और राहुल गांधी ने मोदी का प्रधानमंत्री बनना कभी स्वीकार नहीं किया। आम चुनावों के परिणाम आने के बाद जब सोनिया और राहुल गांधी अपनी हार मानने के लिए पहली बार पत्रकारों से मिले थे, तो सोनिया गांधी ने मोदी का नाम लिए बिना ‘नई सरकार’ को बधाई दी थी।
संसद के अंदर इतने थोड़े सांसद होने की वजह से कुछ महीनों के लिए कांग्रेस की तरफ से हल्ला ज्यादा नहीं मचा। लेकिन जबसे ‘सूट-बूट की सरकार’ वाला तीर निशाने पर लगा, तबसे कांग्रेस ने लोकसभा में इतना हल्ला मचाया है कि कोई सत्र अगर शांतिपूर्वक चला है तो गनीमत मानी है हमने। दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में अफवाह यह सुनने को मिली है कि राहुल गांधी ने अपने मुट्ठीभर सांसदों को आदेश दिया है कि विपक्ष में रहते हुए जैसा भारतीय जनता पार्टी ने किया, बिलकुल वैसे ही और वही उनके साथ किया जाएगा।
संसद के बाहर मोदी को हर तरह से हर कदम पर रोका गया है। इसके लिए मोदी खुद भी दोषी हैं, क्योंकि उन्होंने अपने हिंदुत्ववादी समर्थकों को नियंत्रण में लाने में बहुत देर कर दी। अब भी तब बोले जब कठुआ और उन्नाव वाले मामलों में जब देश भर में गुस्से की लहर फैल गई थी। मोहम्मद अखलाक की हत्या के बाद बोले होते तो शायद आज इतने कमजोर नहीं दिखते। अब राजनीतिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी का हाल यह है कि दलितों को अपने पास वापस लाने के लिए पूरी कोशिश की जा रही है। प्रधानमंत्री ने अपने सांसदों को आदेश दिया है कि वे दलित गांवों में जाकर दो-तीन रातें बिता कर आएं। विचार अच्छा है। लेकिन राजस्थान और उत्तर प्रदेश से हाल में आए उपचुनावों के परिणाम बताते हैं कि शायद बहुत देर हो चुकी है।
इस बदलते माहौल को देखते ही मोदी को बदनाम करने के लिए कांग्रेस अपनी चालें चल रही है, ताकि अगले आम चुनाव तक प्रधानमंत्री की छवि ऐसे तानाशाह की बन जाए, जो लोकतंत्र को खत्म करने पर तुले हुए हैं। सो, एक तरफ से तो कांग्रेस के नेता यह कहने में नहीं थकते कि मोदी ने न्याय प्रणाली को कमजोर किया है और इस बात को साबित करने के लिए कांग्रेस उन चार न्यायाधीशों का साथ दे रही है, जिन्होंने कुछ महीने पहले प्रेस कान्फ्रेंस बुला कर प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी। कांग्रेस ही इस मुहिम को आगे बढ़ा रही है। पिछले हफ्ते मोदी को कमजोर करने की एक और कोशिश हुई। भारत सरकार के कोई पचास पूर्व अधिकारियों ने प्रधानमंत्री के नाम एक पत्र लिखा, जो अखबारों में छपा है। इसमें इन्होंने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया है कि कठुआ और उन्नाव वाली घटनाओं के बाद उनकी चुप्पी बर्दाश्त नहीं होती है और न ही वे संघ परिवार द्वारा देश भर में सांप्रदायिक जहर फैलाने की हरकतें बर्दाश्त कर सकते हैं। इन पूर्व आला अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने इससे पहले भारत में इतना अंधेरगर्दी का दौर नहीं देखा है। इन अधिकारियों में ज्यादातर ऐसे हैं जो 1984 में सिखों के कत्लेआम के वक्त भारत सरकार में थे। उसी दौर में मेरठ के हाशिमपुरा इलाके के कोई सत्तर मुसलमानों को ट्रक के अंदर बंद करके उत्तर प्रदेश की पुलिस ने गोलियों से भून दिया था। भागलपुर में ऐसे दंगे हुए जिन में डेढ़ हजार से ज्यादा मुसलमान मारे गए थे। जब मुंबई, मुरादाबाद और गुजरात में दंगों के इतने लंबे दौर चला करते थे कि विदेशी पत्रकार भारत के दोबारा विभाजित होने की बातें अक्सर किया करते थे, क्या उनको याद नहीं हैं वह दौर? क्या वास्तव में उनकी स्मरण शक्ति उम्र के बढ़ने से इतनी कम हो गई है?
ऐसा नहीं है जी। ऐसा बिलकुल नहीं है। सच यह है कि इनके नाम पढ़ कर मालूम यह होता है कि कांग्रेस के सेक्युलर जमाने में ये लोग ऊंचे ओहदों पर बैठे थे और इनमें से कई ऐसे भी हैं, जिनकी वफादारी नेहरू-गांधी परिवार के साथ रही है शुरू से। सो, अब अगर प्रधानमंत्री को पत्र लिख रहे हैं तो क्या ऐसा समझना गलत होगा कि इनको भी किसी वरिष्ठ कांग्रेस राजनेता की तरफ से इशारा मिला है कि मोदी कमजोर हैं, सो ऐसे हमले किए जाने चाहिए, जिनसे आम चुनाव आने तक वह दोबारा जीतने के काबिल न रहें?
कहने का मतलब यह है कि बात सिर्फ प्रधान न्यायाधीश को हटाने की नहीं है। पिक्चर अभी बाकी है।