राम माधव आरएसएस के रणनीतिकार हैं और भारत के विदेश मामलों तथा जम्मू-कश्मीर की जिम्मेदारी भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की है। (क्या इसमें कोई विडंबना नजर आती है?) जम्मू-कश्मीर पर सरकार की नीति की बाबत एक दफा उन्होंने कहा था: ‘सरकार मजबूती से अपनी जगह डटी रहेगी, चाहे कुछ भी हो।’ माधव दिल्ली में अपने आवास और अपने कार्यालयों में पूरी तरह सुरक्षित हैं और वह मजे में रहें मैं इसकी कामना करता हूं। लेकिन बाईस साल का राजावेल तिरुमणि महफूज नहीं था। वह अब इस दुनिया में नहीं है। पूरी तरह गुमराह युवाओं की पत्थरबाजी की चपेट में आकर वह मारा गया। किन्हीं भी परिस्थितियों में यह एक अक्षम्य अपराध है। तिरुमणि का गुनाह यह था कि वह और उसका परिवार कर्मचारियों के एक समूह में शामिल थे, और अवकाश के दौरान मिलने वाली यात्रा संबंधी रियायतों का लाभ उठाते हुए सैलानी के रूप में कश्मीर गए थे। पत्थर फेंकने वाले कश्मीरी युवाओं का तिरुमणि के परिवार से कोई वैर नहीं था। उसकी मौत, जिसे बड़ी निर्ममता से कहा गया, आनुषंगिक क्षति थी। दुर्भाग्य से, इस नौजवान की मौत भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की ‘दृढ़’ नीति की एकमात्र आनुषंगिक क्षति नहीं है। पिछले तीन साल में काफी कुछ नष्ट हुआ है।
खतरे में स्तंभ
भारत को जोड़े-संभाले रखने वाले स्तंभों में जो स्तंभ क्षतिग्रस्त हुए हैं वे हैं:
1. संवैधानिक प्रावधान का हमेशा सम्मान किया जाएगा। अनुच्छेद 370 भारत संघ और जम्मू-कश्मीर रियासत के शासक के बीच एक ऐतिहासिक समझौता था। किसी राज्य से ताल्लुक रखने वाला यह एकमात्र विशेष प्रावधान नहीं है। इस तरह के दूसरे प्रावधान भी हैं, जैसे अनुच्छेद 371 से 371 (आइ)। केंद्र सरकार और नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (आई-एम) के बीच चल रही समझौता वार्ता पूरी होने और समझौता हो जाने पर एक और विशेष प्रावधान जोड़ा जाएगा। क्या उस समझौते को तोड़ने या तीस-चालीस साल बाद उसे रद््द करने की मांग उठाने का इरादा है?
2. सेना गैर-राजनीतिक रहेगी। लेकिन जिस दिन जम्मू-कश्मीर में सारी राजनीतिक पार्टियों ने आम सहमति से तय किया कि वे केंद्र सरकार से एकतरफा संघर्ष विराम की घोषणा करने के लिए अनुरोध करेंगी, सेना प्रमुख ने आजादी को (अपनी धारणा के मुताबिक) परिभाषित करते हुए चेतावनी दे डाली, ‘आजादी नहीं मिलने जा रही, यह कभी नहीं होगा,…अगर आप हमसे लड़ना चाहते हैं, तो हम पूरी ताकत से आपसे लड़ेंगे।’ क्या यह एकतरफा संघर्ष विराम की मांग पर केंद्र सरकार का आधिकारिक जवाब था?
3. मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से सदन और जनता के प्रति जवाबदेह होगी। लेकिन जम्मू-कश्मीर की मंत्रिपरिषद बुरी तरह विभाजित थी: आधी इस तरह से काम कर रही थी मानो यह जम्मू की सरकार हो और बाकी आधी इस तरह से पेश आ रही थी मानो यह कश्मीर की सरकार हो। हालांकि रमजान से ईद तक एकतरफा संघर्ष विराम की मांग मुख्यमंत्री ने की थी, फिर भी उपमुख्यमंत्री ने कहा कि ‘संघर्ष विराम किसी एक तरफ से लागू नहीं किया जा सकता।’
कपटपूर्ण कदम
4. सरकार का हरेक कदम जवाबदेही-भरा होगा। लेकिन जम्मू-कश्मीर में यह सिद्धांत सिर के बल खड़ा है: सरकार का हरेक कदम कपटपूर्ण और प्रतिक्रिया पैदा करने वाला है। मई 2014 में नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने से लेकर दिसंबर 2015 में नवाज शरीफ की पोती के निकाहसमारोह में अचानक शरीक होने और सितंबर 2016 में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर में भेजने से लेकर 2016 में सितंबर के आखीर में सेना द्वारा सीमा पार की कार्रवाई (तथाकथित ‘सर्जिकल स्ट्राइक’) की विजय-भरी घोषणा से लेकर अक्टूबर 2017 में एक वार्ताकार की नियुक्ति तक, कोई भी निर्णय ऐसा नहीं था जो सुविचारित नीति का नतीजा हो। कश्मीर घाटी में कोई भी नहीं मानता कि केंद्र सरकार संजीदा है। यही कारण है कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को दो टूक जवाब मिला और वार्ताकार अब कुछ
कहते या सुनते नहीं दिखाई पड़ते।
5. जम्मू एवं कश्मीर की अखंडता बनाए रखी जाएगी। अब कई लोग यह नहीं मानते कि जम्मू और कश्मीर एक बना रहेगा। कई लोग गलती से यह तक मानते हैं कि तीनों क्षेत्रों को तीन अलग-अलग रास्तों पर जाना चाहिए। जम्मू का ऐसा ध्रुवीकरण हो गया है जैसा पहले कभी नहीं हुआ था और (पाकिस्तान से लगी) जम्मू सीमा पर कश्मीर सीमा के मुकाबले ज्यादा घटनाएं हो रही हैं। लद््दाख क्षेत्र ने कश्मीर घाटी से दूरी बना रखी है, लेकिन वह क्षेत्र भी दो वर्चस्वों में बंटा हुआ है, बौद्ध लद््दाख और मुसलिम कारगिल में। कश्मीर घाटी उबलने की हद तक खदबदा रही है। घालमेल भरी नीति ने तीनों क्षेत्रों के बीच अलगाव के भाव को गहराया है।
हिंसा का उभार
6. राजा अपनी ही प्रजा के खिलाफ तलवार कभी नहीं उठाएगा। लेकिन बड़े दुख के साथ, यह स्वीकार करना पड़ेगा कि कश्मीर घाटी में एक अघोषित आंतरिक युद्ध चल रहा है। असहमति को कुचलने के सैन्यवादी और ताकतवादी (जिसमें पत्थरबाजी भी शामिल है) नजरिए ने घाटी को बरबादी के कगार पर ला दिया है। हिंसा और मौतें बढ़ी हैं (देखें तालिका)। पीडीपी-भाजपा सरकार की रत्ती-भर वैधता नहीं बची है। फिर भी मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती इस विद्रूप को खत्म नहीं करेंगी, जो कि त्रासदी में बदलता जा रहा है। हर रोज मेरी निराशा बढ़ती जाती है। एकता, अखंडता, बहुलतावाद, धार्मिक सहिष्णुता, जनता के प्रति जवाबदेह सरकार, बातचीत से मतभेद सुलझाना, आदि- वह सब जो एक राष्ट्र के तौर पर भारत के सरोकार रहे हैं, जम्मू-कश्मीर में कसौटी पर हैं। एक राष्ट्र के रूप में भारत इस परीक्षा में विफल हो रहा है।