सबसे पहले’, ‘सबसे प्रामाणिक’, ‘सबसे सच्चे’ चुनाव परिणाम देने की चैनलों में ऐसी स्पर्धा है कि चुनाव परिणाम के दिन हर एंकर पूरे दिन की बैठक लगाता है। इस दिन तरह-तरह के चुनाव विश्लेषक नामक जीव दृष्टिगोचर होते हैं और स्क्रीन हर क्षण उलटते-पलटते आंकड़ों से इस कदर भरी रहती है कि आंख ठहर नहीं पाती। एंकर पूछता है : देशमुख जरा बताना तो कि त्रिपुरा में क्या होने वाला है और देशमुख बताने लगते हैं।… त्रिपुरा के वाम गढ़ के ढहने की सबसे सटीक वैचारिक व्याख्या संघ के देवधरजी की रही, जिनने बताया कि किस तरह योजनाबद्ध तरीके से उनके कार्यकर्ताओं ने कम्युनिस्टों के किले में सेंध लगाई। दो-तिहाई से जीतेंगे और वही हुआ। वाम को हरा कर भाजपा खुश हो, यह समझ में आता है, लेकिन इन दिनों तो एंकर भी किलकारी मारते नजर आते हैं! क्यों? अगरतला में जीत का जश्न सड़कों पर था। देवधरजी के चेहरे पर गुलाल लगा था। शाम तक वे कई चैनलों में विराजे रहे। लेकिन प्राइम टाइम राम माधव की व्याख्या के नाम रहा। लेफ्ट के पास हार का भरोसेमंद जवाब नहीं था।

खुशी की खबरों के बीच अगली सुबह मूर्तिभंजन लीला बड़ी खबर बनी। एबीपी के अभिसार शर्मा पहले एंकर रहे, जिन्होंने लेनिन की मूर्ति के तोड़े जाने के दृश्य दिखाते हुए बहस चलाई। कुछ ही देर में लेनिन मूर्तिभंजन सीन सब चैनलों में थे और बहसों में ‘टॉलरेंस’ बरक्स ‘इनटॉलरेंस’ और ‘फासिज्म’ बरक्स ‘जनतंत्र’ टकरा रहे थे। संघ और भाजपा के प्रवक्ता बताते रहे कि यह पचीस साल से मूर्तिभंजन दबी-कुचली जनता का गुस्सा है। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आगे बढ़ कर कहा कि लेनिन आतंकवादी था, रूस में हजारों की हत्या की, उसे वहां क्यों होना चाहिए। सीपीएम वाले चाहें तो अपने दफ्तर में उसकी पूजा करें। हम भिजवा देंगे।… यह ‘जले पर नमक छिड़कना’ था। यह उस एंकर को भी सहन न हुआ, जो लेफ्ट को अक्सर आए दिन धिक्कारता रहता है। नौ बजे वाले हैशटैग में उसने ‘नमक छिड़कने’ वाले ‘अहंकार’ (एरोगेंस) की वो खबर ली कि लेफ्ट वाले भी क्या लेंगे? मूर्तिभंजन का औचित्य बताने वाले और उनको धिक्कारने वाले हर चैनल पर रहे। एक ने कहा- लेनिन विदेशी था, ये भगत सिंह या सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति क्यों नहीं लगाते?तिस पर एंकर ने उसे निरुत्तर करते हुए कहा कि भगतसिंह स्वयं लेनिन के भक्त थे, उनने जेल में जिस किताब का आग्रह किया था, वह लेनिन की जीवनी थी और सुभाष लेनिन के अनुयायी थे, कुछ जानते भी हैं कि एवेंई बहस करने आ गए हैं? विचार की लड़ाई विचार से लड़िए, लाठी से नहीं! मूर्तिभंजकों के पैरोकार कुछ देर सचमुच निरुत्तर दिखे। मूर्तिभंजन त्रिपुरा के चुनाव से भी बड़ी खबर बना और अगले दिन मूर्तिभंजन का कंपटीशन होने लगा। इधर लेनिन की मूर्ति तोड़ी गई, तो उधर कोलकाता में पूर्व भाजपा यानी जनसंघ के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति का भंजन हुआ।

मूर्तिभंजन लीला से उल्लसित तमिलनाडु के एक बड़े भाजपा नेता ने सोशल मीडिया पर तमिल के सुपर आइकन पेरियार की मूर्ति तोड़ने का आह्वान कर दिया, तो डीएमके के स्टालिन ने भाजपा के इस नेता को तमाचे लगाने और तुरंत गिरफ्तार करने की बात तक कह दी। भाजपा विरोध में प्रदर्शन होने लगे। चैनल दिखाते रहे कि चार-पांच मूर्तियों पर हमले हुए हैं। मुखर्जी की एक और मूर्ति पर काला रंग फेंका गया, आंबेडकर पर भी लाल रंग डला। गांधी भी भंजनकारियों से नहीं बच सके। मूर्तियों को देख कर आप कह सकते थे कि किस वर्ग ने किसे विद्रूपित किया होगा? तब पीएम बोले, गृहमंत्री एक साथ बोले कि यह सब निंदनीय है और असह्य है। लेकिन मूर्तिभंजन लीला से ‘खबर बनाने’ का लालच बड़ा काम करता रहा। जादवपुर में लाल और भगवा के युवा अपने-अपने आइकनों की मूर्तियों पर पहरे देने लगे।

मेघालय और नगालैंड से सिर्फ शपथ समारोह की खबरें रहीं, जिनमें किसी एंकर की बहुत दिलचस्पी नहीं दिखी। इन्हें लेकर आए विचार पहले से ज्ञात लगे त्रिपुरा की जीत बार-बार विश्लेषित होती रही और भाजपा प्रवक्ता इसे उन्नीस के लिए वरदान मानते रहे और केरल के वाम दुर्ग के ऐसे ढहाने की भविष्यवाणी करते रहे। जीत का नशा सिर चढ़ कर बोलता रहा!
जब बड़ा हंगामा हाथ नहीं लगता, तो चैनल विभाजनकारी खबरों की ओर अधिक लपकते हैं। फारुख अब्दुल्ला ने नेहरू, आजाद और पटेल को भारत विभाजक और जिन्ना को विभाजन विरोधी कह कर चैनलों को एक बहसीली खबर तो दी, लेकिन मंत्री जितेंद्र सिंह ने फारुख को ‘कुछ पढ़ने’ की सलाह देकर चैनलों के बहसीले उत्साह पर पानी फेर दिया। यही हाल श्रीश्री के बहसीले उवाच का हुआ कि अगर मंदिर पर समझौता नहीं हुआ तो भारत कहीं सीरिया न बन जाए? एक चैनल को छोड़ कर किसी ने इसे नहीं उठाया!
कर्नाटक के सीएम सिद्धरमैया ने कर्नाटक का अपना झंडा बना कर केंद्र को भेज दिया है। आप ‘संघवाद बरक्स अलगाववाद’ की बहसों के लिए तैयार रहिए।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस भी रस्म अदायगी में गुजरा! एक चैनल ने लाइन दी- रीयल वूमन यानी सच्ची औरत। और जो चेहरे दिखे वे एनजीओ चेहरे जैसे दिखे।
हम तो कार्ति चिदंबरम के मुरीद हैं कि बंदा अंदर ले जाया जा रहा था, लेकिन कैमरों के लिए उंगलियों से ‘विक्ट्री’ साइन बना रहा था, जबकि पिता श्री का सिर झुका था!