जब दंगा निपट गया, तो एंकरों के बुद्धिकपाट खुले और तीन दिन तक दंगों की परिभाषा को लेकर अपनी बुद्धि सेंकते रहे! एक ज्ञानी कहता- यह ‘दंगा’ है। दूसरा कहता यह ‘पोग्रोम’ (हत्याकांड) है। तीसरा कहता यह ‘जेनोसाइड’ (जनसंहार) है… तीन दिन तक देसी अंग्रेज पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा की परिभाषा करने के लिए एक दूसरे का सिर तोड़ते रहे। कई बार लगता कि स्टूडियो में दंगा हो जाएगा, फिर अचानक एंकर संतई ओढ़ कर समझाने लगते कि कम से कम अब तो बांटने वाली बात न करें!

दंगे के बाद दंगे को ‘संभालना’ और इस तरह अपने-अपने ‘उत्तर सत्य’ के निर्माण के दौरान अपने को निरपराध और दूसरे को अपराधी बताना ‘दंगा संभाल कला’ के पुराने पैंतरे हैं, जिनको प्राइम टाइम की बहसों में एंकरों के तेवरों से और प्रवक्ताओं और चर्चकों के नामों से ही पहचाना जा सकता है। चर्चकों के नाम देखते ही आप कह सकते हैं कि इस चैनल की बहस अंत में किस करवट बैठेगी और उस चैनल की किस करवट बैठेगी? कौन किसे कूटेगा, धिक्कारेगा और कौन किसका दंगाई इतिहास खोलेगा!

उदाहरण के लिए, एक कहता कि न कपिल मिश्रा जाफराबाद के धरने वालों को चेतावनी देते, न दंगा होता, तो दूसरा चिल्लाता कि क्या जामिया, शाहीनबाग और अमानतुल्ला को भूल गए और याद करिए कि आपके वारिस पठान ने क्या कहा था कि हम पंद्रह करोड़ हैं… तुरंत प्रश्न गरजता कि अरे अनुराग ठाकुर के ‘गोली मारो… को’ वाले नारे को याद तो करो, कि फिर नया प्रतिप्रश्न हमलावर होता कि और आपके शरजील इमाम ने तो भारत की असम वाली ‘मुर्गी की गरदन’ को ही काटने को ललकारा था, कि तुरंत दुहत्थड़ आता कि क्या आप अपने प्रवेश वर्मा को भूल गए, जिसने कहा था कि ये एक दिन हमारी बहू बेटियों का रेप करेंगे, काटेंगे… बताइए यह करंट लगाने वाली बात किसने कही थी…?

और देखते-देखते हिंदू प्रवक्ता अधिक हिंदू होता दिखता, मुसलमान प्रवक्ता और अधिक मुसलमान होता दिखता! और आश्चर्य कि सभी खूब पढ़े-लिखे वकील या पत्रकार! अंतत: विद्वज्जन दंगों को लेकर बाल की खाल खींचने में लगे रहे, उधर रोते-बिलखते दंगा प्रभावित लोग अपनी करुण कथाएं हर चैनल पर कहते रहे! उफ! वे दृश्य कितने दर्दनाक, फिर भी सामूहिक जिजीविषा से भरे रहे कि ऐन दंगों के बीच और उनके बाद भी, दंगों से प्रभावित गली-मुहल्लों और बाजारों के लोग एक-दूसरे की मदद की कहानियां बताते रहे, कि किसने अपने पड़ोस के कितने हिंदू बचाए और किसने कितने मुसलमान बचाए, कि किसने मंदिर बचाया, कि किसने मस्जिद बचाई, कि दंगाई बाहरी थे और असामाजिक तत्व थे, कि हम तो बीसियों बरसों से साथ-साथ रहते हैं और एक-दूसरे के सुख-दुख में काम आते हैं… हमें साथ-साथ ही रहना है! हर चैनल पर ऐसे मानवीय और साहसी लोग दिखते थे, जिनको देख कर लगता था कि दंगों के आगे जहां और भी है! चैनलों ने ऐसे लोगों को भी खूब दिखाया!

सीबीआई अफसर अंकित शर्मा को किसने मारा? ताहिर हुसैन को कौन बचा रहा है? इंस्पेक्टर रतनलाल को किसने मारा? डीसीपी अमित शर्मा और इंस्पेक्टर अनुज शर्मा को किसने घायल किया…? और पिस्तौल चलाने वाले और कान्स्टेबल दहिया के चेहरे पर पिस्तौल तानने वाले मोहम्मद शाहरुख को कैसे भाग जाने दिया गया… पुलिस इतनी निष्क्रिय क्यों दिखी? ये सवाल चैनलों में बार-बार उठते रहे!

फिर इन सवालों को नए-नए वीडियो ने फिर से उठाना शुरू कर दिया। दंगों की कहानी चित्रों की जुबानी होने लगी। फिर खबरें ब्रेक होती रहीं कि शाहरुख पकड़ा गया, ताहिर को भी गिरफ्तार किया गया! लेकिन इन खबरों में कोई उत्तेजना नहीं बची थी! अंत में चैनल अपनी वाली राजनीति पर आ गए और कभी दिल्ली सरकार के राहत कार्य की नुक्ताचीनी करते रहे, कभी राहुल के दौरे को ‘दंगा टूर’ बताते रहे! राहुल जाएं तो कुटें, न जाएं तो कुटें! बताइए वे क्या करें?

फिर दंगों का मामला संसद में गूंजा और ऐसा गूंजा कि कांग्रेस के सात सांसदों को, उनके ‘वेल’ में आकर माननीय अध्यक्ष पर कागज फेंकने के ‘अपराध’ में, शेष अवधि के लिए सदन की कार्रवाई से वंचित कर दिया गया! फिर अचानक कोरोना विषाणु चैनलों का प्रिय विषय बन गया और हर चैनल हमारी चिंता में दुबला होने लगा और महंगे डॉक्टर भी मुफ्त में सलाह देने लगे कि कोरोना से कैसे बचें, कि बाहर न निकलें, कि भीड़ में न जाएं, छींकने खांसने वाले को अलग रखें, कि उससे दूर रहें कि किसी से हाथ न मिलाएं, कि हर बार हाथ धोएं, कि हैंड सेनीटाइजर से हाथ साफ करें, कि मास्क लगाएं, कि साठोत्तरी लोगों को अधिक खतरा है… फिर खबर देने लगे कि सेनीटाइजर और मास्क ‘आउट आफ स्टाक’! यों अब तक देश भर में सिर्फ तीस लोग कोरोना से प्रभावित बताए गए, लेकिन कोरोना का डर इतना फैला कि बाजार से मास्क और सेनीटाइजर तक गायब हो गए!

अब कोरोना की कृपा या क्या कि वृहस्पति की रात हमारे देशभक्त एंकर ने शाहीनबाग का जी भर कर उपहास उड़ाया कि शाहीनबाग तो अब गया! अब कुल पच्चीस बैठे हैं, जबकि पांच सौ सिपाही उनकी सुरक्षा के लिए तैनात हैं… लेकिन ऐसी कोई खबर किसी अन्य चैनल पर नहीं दिखी! अब तक कोरोना ने डराया, अब शुक्रवार की सुबह ‘यस बैंक’ के संकट ने डरा दिया! कोरोना कहता कि बाहर न निकल, लेकिन डूबता ‘यस बैंक’ कहता कि अगर कुछ पैसा लेना है तो निकल! एक ओर देश में कोरोना, दूसरी ओर ‘यस बैंक’ को कोरोना! बताइए आम आदमी जिए तो जिए कैसे?