राजू शर्मा मन:स्थितियों की महीन डिटेल्स से अपने कथा-पात्रों का व्यक्तित्व रचते हैं। कहानी को सरपट इतिसिद्धम तक ले जाने वाले कथाकारों से अलग उनकी कहानी एक पूरा वातावरण बुनती हुई चलती है, असंख्य सच्चाइयों का एक विस्तृत ताना-बाना, जिसका हर रेशा किसी साधारण कथाकार के लिए एक अलग कहानी या उपन्यास का विषय बन जाए। इसी गझिन बुनावट में उनका कथा-रस निवास करता है, जिसमें पाठक उनके पात्रों के साथ अपने खुद के भी मन को कई परतों को आकार लेते महसूस करता है।

यह कथा जतिन की है, जिसके साथ कथावाचक राघव का रिश्ता कुछ इस तरह से जटिल है: ‘एक क्षण के लिए कल्पना कीजिए कि अचानक एक अजनबी सामने प्रकट होता है, जो तीस साल पहले तुम्हारा कॉलेज का सहपाठी था, आम दोस्ती थी… स्वाभाविक था तुम उसे भूल गए। अब वह सामने खड़ा है और एक निरीह नग्नता से अपना नाम-पता बता रहा है। जैसे ही तुमने उसे पहचाना, एक स्मरण ने तुम्हें बांध लिया: एक तस्वीर, अधखुले दरवाजों का एक फ्रेम, जिसके पीछे यही शख्स तुम्हारी प्रेमिका को बाहों में बांधे चूम रहा था। सालों बाद हुई इस मुलाकात के बाद धीरे-धीरे उसका एक नया रूप सामने आता है। वह बताता है कि उसे कहानी लिखने का वायरस लग गया है। वह कहानियां लिखता है, जो सच हो जाती हैं। वह उसे अपनी कहानियां सुनाता है और फिर कहता है… ‘डॉ. माधव रे, प्लीज सेव मी, आई ऐम सीकिंग।’

पीर नवाज: राजू शर्मा; राजकमल प्रकाशन, 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली; 495 रुपए।


कुकुरमुत्तों का शहर
कवि-पत्रकार विज्ञान भूषण का यह पहला कविता संग्रह है। वैसे वे लंबे समय से लिख रहे हैं और कविता के अलावा कुछ कहानियां भी लिखी हैं। आलोचना और वैचारिक लेखन के क्षेत्र में तो उनकी अलग पहचान है ही। इस संग्रह में प्राय: ऐसी कविताएं हैं जो आकार में छोटी हैं, लेकिन गंभीर घाव करने वाली हैं। विज्ञान भूषण ने छोटे-छोटे प्रतीकों के माध्यम से हर कविता में यथार्थ के किसी न किसी पहलू को उद्घाटित करने का प्रयास किया है। उनके पास कवि की संवेदनशीलता के साथ-साथ पत्रकार की सजगता भी है, तभी तो वे ‘हां की तह में दबे ना’ का अहसास करने और कराने में सफल होते हैं।
जीत के लिए तो सब खेलते हैं और सबकी नजर विजेता पर होती है, लेकिन उनकी नजर उन खिलाड़ियों पर है, जो हार के लिए खेलते हैं और जिन्हें दूसरों की जीत में खुशी की अनुभूति होती है। इस तरह विज्ञान अपनी प्रतिबद्धता को नए ढंग से परिभाषित करते हैं।

कुकुरमुत्तों का शहर: विज्ञान भूषण; अमन प्रकाशन, 104-ए/80 सी, रामबाग, कानपुर; 150 रुपए।


मैं गुमशुदा
मैं गुमशुदा कहानी है जासूस गी रोलां की, जो अपना असली अस्तित्व और बीती जिंदगी की हकीकत जानने की खोज पर निकल पड़ता है। गी रोलां अपनी याददाश्त खो चुका है और शायद इसीलिए अपने अतीत को जानना-समझना बहुत जरूरी है। जैसे-जैसे गी अपने जीवन के बीते वर्षों की परतें हटाता है, तो उसे लगता है कि वह अपनी जिंदगी में कई रूप, कई अस्तित्व धारण कर चुका है। 2014 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लेखक पाट्रिक मोदियानो का यह महत्त्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है। पाट्रिक मोदियानो की गिनती फ्रांस के महत्त्वपूर्ण लेखकों में की जाती है। यह उनका छठा उपन्यास है और इस पर उन्हें उसी साल प्रिक्स गोनकोर्ट पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

मैं गुमशुदा: पाट्रिक मोदियानो, अनुवाद- मोनिका सिंह; राजपाल एंड सन्ज, 1590, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली; 245 रुपए।