गुप्ताजी के बेटों की शादी। दो सौ करोड़ की महंगी शादी! चुपके चुपके हो गई उत्तराखंड के औली क्षेत्र में। सबकी खबर लेने वाले चैनलों को भी इसकी खबर न हुई और जब तक खबर लगी, तब तक तो बहुओं को लेकर उड़ गए अपने गुप्ता जी अफ्रीका की ओर! हमारे उठाने के लिए वे चार सौ टन कूड़ा अवश्य छोड़ गए। हर बात पर रोज कांय कांय करने वाले चैनलों को इस शादी की दिव्यता की खबर तक न हुई? क्यों? ऐसे कैसे चलेगा साथी! जब तक आप ‘दिल्ली सेंट्रिक’ और उसमें भी ‘सरकार सेंट्रिक’ रहेंगे तब तक आप ऐसे ही बेखबर रहेंगे। कितना अच्छा है कि किसी की बनाई-बताई खबरें मिलती रहती हैं। जैसे तमिलनाड़ु में पानी-संकट! फिर कर्नाटक का पानी-संकट!
महाराष्ट्र के सूखे को लेकर कब तक रोएं आप, जहां हर दिन आठ किसान आत्महत्या करते हैं। फिर अब मुंबई में बारिश होने लगी है, बताइए वहां पानी के भराव की खबरें बनाएं कि आत्महत्याओं की। देंगे वहां पानी के भराव की खबरें। कितने बढ़िया लगते हैं भीगे रिपोर्टर और उनकी भीगी-भीगी खबरें।
इस बीच संसद सत्र में पीएम ने अपने जवाबी भाषण में कांग्रेस की जो प्रेमपूर्वक धुलाई की उसका जवाब कांग्रेस से न बन पड़ा। धुलाई के दौरान राहुल खामोश ही रहे। एक बार मुस्कराए भी।
मगर कांग्रेस के नेता अधीर रंजन जी एक अन्य ससंदीय प्रसंग में जो ‘प्रवोक’ हुए, सो ‘आ बैल मुझे मार’ वाली बात कर बैठे! कह दिए कि मुझे प्रवोक किया जा रहा था, तो मैं कह गया कि कहां गंगा, कहां नाली! फिर संसद के बाहर निकल कर बोले कि मेरी हिंदी इतनी अच्छी नहीं है, नाली से मेरा मतलब चैनल था।… हिंदी अच्छी नहीं थी तो सर जी हिंदी की टांग क्यों तोड़े?
इसके बाद, झारखंड के सरायकेला में तबरेज की लिंचिंग की खबर एक बार आई तो दो दिन तक छाई रही। एक चैनल पर एक भाजपा प्रवक्ता बोले कि मैं किसी हिंसक कार्रवाई को उचित नहीं ठहरा सकता, लेकिन बार-बार यह कहना कि ‘जय श्रीराम’ बुलवाया जा रहा था, यह ठीक नहीं। सब लोग ऐसी घटना को भाजपा से जोड़ देते हैं। ‘जय श्रीराम’ तो जनता का अधिकार है, सबको भाजपा, बजंरग दल से जोड़ देना ठीक नहीं।
एंकर: माना कि उस पर साइकिल चोरी का आरोप था, लेकिन इनको किसने हक दिया उसे मारने का? उसे बांधा गया। उसे मारा गया। वह पिटता कहता रहा, मुझे छोड़ दो। मुझे छोड़ दो। किसने हक दिया मारने वालों को उसे मारने का?
प्रवक्ता: जिन्होंने यह सब किया है उन पर कार्रवाई हो। भाजपा ‘सबका साथ सबका विकास’ का काम करती है। कोई भी ऐसा करता है तो हम विरोध करते हैं। इसका राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए!
अपने खबर चैनल बड़े ही ‘न्यायप्रिय’ हैं: वे एक ओर ‘लिचिंग’ को खबर बनाते हैं, दूसरी ओर ‘लिंचिंग’ पर बहस भी कराते हैं, मानो ‘लिचिंग’ न हो किसी नेता का ‘विवादास्पद बयान’ हो! बहरहाल, बहस कुछ इस तरह आगे बढ़ी-
एंकर: भगवान राम ने अपने नाम पर क्या ‘लिंचिंग’ करने को कहा था?
प्रवक्ता: लिंचिंग दुखद है, डिस्टर्बिंग है। उस पर चोरी का आरोप था।
एंकर: चोरी का आरोप है, तब भी क्या ‘लिंच’ करना ठीक है?
प्रवक्ता: इसमें भाजपा कहां से आ गई?
एंकर: हम भाजपा का नाम नहीं ले रहे!
बीच में एक आंकड़ाप्रिय विचारक कहने लगे कि मथुरा में एक हिंदू की लिंचिंग हुई।… सोलह मामले ऐसे हुए हैं। कहीं मुसलमान ने मारा, कहीं हिंदू ने मारा, लेकिन जब कहीं हिंदू मॉब मारती है तभी शोर होता है।…
यानी कि जब आप हिंदू को लिंच कर दिए जाने पर शोर नहीं करते, तो अभी क्यों कर रहे हो?
हमारे खबर चैनल ऐसी बहसों के जरिए मुद्दों को इसी तरह गड़बड़ाया करते हैं!
एक दिन खबर हुई कि भारतीय क्रिकेट टीम को एक दिन के मैच में नारंगी रंग की जर्सी पहननी है। एक कांग्रेस एमएलए की जुबान खुल गई और उन्होंने कह दिया कि जर्सी के बहाने क्रिकेट का भगवाकरण किया जा रहा है।
कई चैनलों को कांग्रेस की ठुकाई के लिए सिर्फ बहाना चाहिए। एंकर बोला: देखो कांग्रेस क्रिकेट को भी राजनीतिक रंग दे रही है। एक अंग्रेजी चैनल में शशि थरूर ने साफ कहा कि जर्सी के रंग को राजनीतिक रंग न दिया जाय। मगर जिनको कांग्रेस को कूटना था, वे कूटते रहे।
क्रिकेट वर्ल्ड कप के इन्हीं केसरिया दिनों में भाजपा के बड़े नेता कैलाश विजयवर्गीय के एमएलए सुपुत्र आकाश ने जिस तरह निगम के अधिकारियों पर सरेआम बल्ला घुमाया, वह वर्ल्ड कप से भी बड़ी खबर बना। वीडियो में आकाश अपनी बल्ला-लीला दिखाते रहे।
जब आकाश से पूछा गया कि आपने क्रिकेट का बल्ला मनुष्यों पर क्यों घुमाया, तो कह उठे कि जनता के लिए ऐसा करना हुआ, तो फिर से करूंगा।… जब उनको पुलिस ने गिरफ्तार किया, तो निगम अधिकारियों पर भी एफआइआर की गई।
इसी बीच एक अंग्रेजी एंकर ने आकाश की एक दार्शनिक किस्म की बाइट देकर हम सबको धन्य कर दिया। पहली बार हमारे शब्दकोश में तीन शब्दों को नए अर्थ मिले। एंकर बोला कि आकाश विजयवर्गीय कह रहे हैं कि हम पहले ‘निवेदन’ करते हैं, फिर ‘आवेदन’ करते हैं और फिर ‘दनादन’ करते हैं!

