सारी बहसों में जफर की गजल याद आती रही। आमिर मानो जफर बने गाते रहे: ‘बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी/ जैसी अब है तेरी महफिल कभी ऐसी तो न थी।’
बातचीत का वह दृश्य जिस तरह से लाइव दिखा, उसी तरह से हुआ होगा। शायद यह किसी और तरह हो भी नहीं सकता था और बेहद संजीदा बातचीत में से मानो कोई जिन्न निकल आया और विवाद बन कर हर चैनल पर फैल गया। वह शाम और वह प्रसारण यादगार रहेगा!
हमारी समझ में आमिर ने जो कहा और जो बाद में तुरंत विवादास्पद बना वह सब जानबूझ कर ही कहा, तो समझिए कि आने वाली फिल्म ‘दंगल’ की फुलटू एडवांस मार्केटिंग हो गई। अगर यह अनजाने में कहा, तो समझिए ‘स्नैपडील’ की तरह हुआ!
एक बड़ा हीरो अचानक जीरो बनाया जाने लगा। एक बड़ा आइकन तुच्छ तिनका बनाया जाने लगा। कितने तो जुबानदराज मैदान में आ जुटे! हर चैनल के अपने चेहरे- विचारक, ज्ञानी, बुद्धिजीवी, फिल्मी, गैर-फिल्मी सब। बहुत जल्द बयानों में जहर घुल गया। खबरें तेजी से बनने लगीं।
पहला गोला अनुपम खेर ने दागा, जो हर चैनल पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा आया: ‘अतुलनीय भारत’ वाले आमिर के लिए भारत कब से इनटॉलरेंट हो गया?
उसके तुरंत बाद शिवसेना के एक नेता ने कहा: ‘हमने सांप को दूध पिलाया’। आमिर के घर के आगे प्रदर्शन शुरू और सात लोग हिरासत में लिए गए।
न फिर शीना बोरा की हत्या की कहानी चली, न पीटर की गिरफ्तारी पर बात चली। न मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर चौहत्तर किलो के केक की अश्लीलता पर भिड़ंतें हुर्इं, न रूस के जेट को तुर्की द्वारा मार गिराए जाने पर कुछ गरमी दिखी। जो भी बात चली, आमिर की बात पर चली!
एबीपी ने लाइन लगाई: ‘जिस देश ने बनाया उसी में खोट?’ फिर बड़ी बहस। बड़ी बहस में भाजपा के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि ऐसे सांस्कृतिक आक्रमण बीजेपी साठ साल से झेल रही है। अभय कुमार दुबे ने आमिर के कथित डर को लेखकों की असहिष्णुता की शिकायत से जोड़ कर कहा कि शिकायत करने वाले लेखक संगठित नहीं हैं। आप उनसे बात तो करिए। सिर्फ राजनाथ सिंह ने एक ठीक बात कही कि हम बातचीत को तैयार हैं।
तब तक देशभक्ति से ओत-प्रोत बहसें सब तरफ फैल गई थीं। हर चैनल पर आमिर के पक्ष और विपक्ष रहे, लेकिन विपक्ष की आवाज ज्यादा बुलंद रही। आमिर पर इतनी तरह की प्रतिक्रियाएं दिखीं कि संभालना मुश्किल रहा। फ्रेमों के नीचे दाएं-बाएं ट्वीट पर ट्वीट हर चैनल पर दिखते रहे। फिल्मी दुनिया तक विभक्त नजर आई।
एबीपी ने ही बताया कि आमिर स्नैपडील के ब्रांड एबेंसेडर हैं और यह डील तीस करोड़ की है। यह विवाद उस पर आंच ला सकता है। यह नया आयाम था। क्या आमिर ने बोलते वक्त इस बाबत न सोचा होगा? यकीन नहीं होता। एक से एक बड़े-बड़े आइकन पक्ष-विपक्ष में कूद पड़े। मुलायम सिंह यादव, शरद यादव, शरद पवार, ज्योतिरादित्य राव सिंधिया, मयंक, विपुल, नसीरुद्दीन शाह, तिग्मांशु धूलिया, आमिर रजा हुसैन, नलिन कोहली, एआर रहमान, निदा फाजली, तसलीमा नसरीन, नगमा, खुशबू, मनीषा कायिंदे, संजय झा, कंचन गुप्ता, शोभा डे, सुनील अलग, दिलीप चेरियन आदि। अर्णव, बरखा, निधि, राजदीप और न जाने कौन-कौन दो-दो मिनट की कुश्ती दिखाते रहे।
सबके पास आमिर की फिल्मों की तारीफ थी, लेकिन कुछ के पास धिक्कार ही धिक्कार था कि हमने बनाया और कि ये मजाल? आमिर का पक्ष लेने वाले कम दिखे। जितने दिखे, उनमें से ज्यादातर किंतु परंतु अवश्य लगाते रहे! यह बात एनडीटीवी पर छवि प्रबंधन विशेषज्ञ दिलीप चेरियन ने स्पष्ट की कि आमिर खान का मतलब सिर्फ कला नहीं है और इस विवाद में मीडिया, राजनीति, कॉमर्स, इकनॉमिक्स और पॉपूलर कल्चर सब एक साथ सक्रिय हैं। इसीलिए शायद इस बार बहसों के कई आयाम दिखे। इस बार कला की बात राजनीति में, राजनीति की बात कॉमर्स में और कॉमर्स की बात पॉपूलर कल्चर से मिक्स नजर आई, इसीलिए किसी के पास न दो टूक खंडन था, न मंडन! सब कुछ उलझा रहा!
यहीं आमिर के मर्म पर प्रहार हुआ और इसीलिए आमिर ने चौबीस घंटे में कह दिया कि वे देश छोड़ने का इरादा नहीं रखते और ये देश उनका है, लेकिन यह भी कहा कि वे अपने कहे पर अडिग हैं।
यहीं असहिष्णुता का नया संस्करण दिखा और हठ का भी। अवसर का उपयोग दिखा और विवाद का मैनेजमेंट भी दिखा!
एक आइकन हारा, एक आइकन जीता। आमिर हारे, आमिर जीते। आइकन का जलवा! ऐसी तारीफें तो आमिर को पचास क्रिटीक नहीं दे सकते थे, जितनी उनने कमाई।
याद रहे, लाइव निंदा स्तुति से ज्यादा बड़ी होती है।

