भाईजी! यह तो प्रसन्न दिखने का वक्त था, लेकिन एक चैनल में भी प्रसन्नता नहीं दिखी। मोदी महोत्सव था, कोई मामूली बात नहीं। न गुड़ न, गुड़ की-सी बात! हम चैनल चैनल पता लगाते रहे, लेकिन राम कसम एक भी मंत्री चेहरा खुश नजर न आया। मिठास के बिना महोत्सव कैसा? मोदीजी ने ही सबसे पहले अपनी उपलब्धियों का लंबा आख्यान किया। एक जनसभा में अपनी सरकार की एक-एक उपलब्धि को वे गिनाते चले गए। एक मोड़ पर वे बोले कि तीन साल में इतना काम किया है कि अगर एक-एक कर गिनाने लगूं तो महीनों लग जाएंगे! इसमें क्या शक! लेकिन जब इतनी उपलब्धियां हैं तो ‘उपलब्धियों’ जितनी ‘खुशियां’ क्यों नहीं नजर आतीं मंत्रियों के चेहरों पर? मोदी-उत्सव मना रहे हैं तो मोदीजी जितने मुदित तो नजर आया कीजिए श्रीमान! हर चैनल पर वही अति सावधान और कसे और तने हुए चेहरे, जैसे सरकार की तीन साल की उपलब्धियां गिनाने न आ रहे हों, अहसान जताने आ रहे हों! क्यों श्रीमान?
सिर्फ पीयूष गोयल जितने चैनलों पर दिखे, हरदम प्रसन्न दिखे! उनका मुखारविंद ही कुछ ऐसा है कि चाहे कुछ हो, वे हर हाल में खुश ही नजर आते हैं। ऐसे खुशदिल चेहरे सरकार में दो-चार और होते तो सोने पे सुहागा होता! मोदी महोत्सव का संदेश रहा: ‘साथ है, विश्वास है, हो रहा विकास है’, लेकिन तीन साल की उपलब्धियों के महोत्सवों की यह ‘कैच लाइन’, सच कहें भैयाजी, तो कुछ जमी नहीं। आप ‘विश्वास’ और ‘विकास’ की तुक भले बिठा लो, लेकिन ‘लय भंग’ का क्या करेंगे? जो लय ‘सबका साथ सबका विकास’ में नजर आती है वह कहां खो दिए? लगता है कि उपलब्धियों की भीड़ ने कायदे की एक भी कैची ‘कैच लाइन’ नहीं बनने दी! और ये चैनल भी इतने कमबख्त हैं कि न अवसर देखते हैं न मुहूर्त! जीडीपी के गिरने की खबर जैसे ही टूटी, सबने धांय करके ब्रेकिंग न्यूज बना डाली कि अनुमान से नीचे, बहुत नीचे आया जीडीपी! सौजन्य नोटबंदी! ममता दी ने मारा छक्का: हमारा शक सही निकला!
जिस वक्त ‘साथ है, विश्वास है, हो रहा विकास है’ का नारा लग रहा हो और उसे पापूलर करने के लिए एक-दो विज्ञापन भी आ रहे हों, ठीक उसी टाइम में विकास की रफ्तार को ऐसा धक्का?
इस बीच टाइम्स नाउ के आनंद ने बोर्ड पर हिजबुल के बारह आतंकियों के नाम मयचित्र के अपने स्टूडियो के डिजिटल बोर्ड पर कुछ इस तरह टांगे, जैसे कोई थानेदार थाने में कुख्यात अपराधियों के चित्र टांगता है और ऐलान किया कि अब इनमें से एक एक को चुनचुन कर ठिकाने लगाया जाना है! जब यह सब बताया तो डेट भी बता देते साथी! टाइम्स नाउ की टोन को रिपब्लिक तय करता है, रिपब्लिक की टोन को टाइम्स नाउ तय करता है! ऐसा लगता है कि वे एक-दूसरे को हरदम परखते रहते हैं और एक-दूसरे को डाउन करने के लिए दांवपेच सोचते रहते हैं! दोनों अपने-अपने ‘एक्सपोजे’ लिए रहते हैं और देर रात तक चीखते रहते हैं कि अब तुम बच नहीं सकते! एक के निशाने पर लालू हैं तो दूसरे के निशाने पर दिग्विजय! जिन दिनों मोदी महोत्सव की जयजयकार होती रहनी थी उन्हीं दिनों केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के सौजन्य से मीडिया में केंद्र सरकार की थू थू होने लगी! ‘बीफ बैन’ के आदेश के प्रतिरोध में कुन्नूर के यूथ कांग्रेसियों ने एक बछड़े को सरेआम काट कर बीफ फेस्ट मना कर हंगामा कर दिया। उधर मद्रास विवि और आइआइटी के छात्रों ने बीफ फेस्ट शुरू कर दिया। और तो और, स्टालिनजी भी बीफ बैन के विरोध में कूद पड़े! चेन्नई हाईकोर्ट ने स्टे दे दिया, तब जाकर पीएमओ को डैमेज कंट्रोल की चिंता हुई और पर्यावरण मंत्रीजी की हाजिरी लग गई! पीएमओ की ओर से संकेत लाइनों में लिखा आने लगा कि बीफ बैन आदेश में परिवर्तन संभव है!
लेकिन राजस्थान हाई कोर्ट के एक जज महोदय ने बीफ बैन के महान अवसर पर जिस भावना के साथ ‘गऊ महिमा’ लिखी, वैसी अन्यत्र दुर्लभ है: मोर ब्रह्मचारी होता है। वह सहवास नहीं करता, उसके आंसुओं से बच्चे पैदा होते हैं। गऊ के शरीर में तैंतीस कोटि देवता निवास करते हैं। उसके सींग ब्रह्मांडीय ऊर्जा को सोख लेते हैं। गोबर गोमूत्रादि के उपयोग से दिल-गुर्दे की बीमारियों ठीक हो जाती हैं… जज महोदय ने यह सब अपनी आत्मा की पुकार पर लिखा! उधर सीबीबाई की विशेष अदालत ने महान ‘मार्गदर्शक मंडल’ के दो सदस्यों को अपनी अदालत में पेश होने का आदेश दे डाला और कहानी राममंदिर-बाबरी की ओर मुड़ गई। मंडल के दो मार्गदर्शकों को देख कई चैनल तरह-तरह के सवाल उठाते थे कि केस की फिर से सुनवाई की यही टाइमिंग क्यों? राष्ट्रपति का सपना तो गया और फैसला किसने देखा है? क्या यह षड्यंत्र है? अगर योगीजी वहां हौसला आफजाई के लिए न पहुंचते, तो इस सुनवाई के अर्थ बदल जाते। पहली बार रिपब्लिक के एंकर ने भाजपा से कुछ कड़े सवाल किए: मैं संघ परिवारियों से पूछ रहा हूं कि बाबरी कांड में दो हजार लोग मारे गए और आप सेलीब्रेट कर रहे हैं? उमा क्यों नहीं हटाई जा रहीं? कल्याण सिंह राज्यपाल क्यों बने हुए हैं? अगर यह संतुलन का नाटक नहीं, तो अच्छा है।
अगला दिन अयोध्या में योगीजी के हनुमान गढ़ी और रामलला दर्शन का रहा। एबीपी चैनल तो पूरे समय योगीमय नजर आया। अखंड कवरेज के खेल में उसे सिर्फ सीएनएन न्यूज अठारह ने ही कंपटीशन दिया। एक हिंदी चैनल वृहस्पतिवार तक लाइन लिख कर पूछता रहा कि ‘यूपी में कानून-व्यवस्था कंट्रोल से बाहर है’! एक ने योगीजी से पूछा, ‘अयोध्या जा सकते हैं, सहारनपुर क्यों नहीं?’यूपी हर रोज एक बुरी खबर है। चौदह गुंडे दो लड़कियों की यहां-वहां से पकड़-धकड़ करते रहे और कोई कुछ न बोला! नोएडा यूपी का वाटरलू बन रहा है! ‘जय श्रीराम’ के नारे बहुत दिन बाद लौटे! लेकिन लखनऊ में एक नारा यह भी सुनाई पड़ा था: ‘विकास का एजंडा है, रामजी का डंडा है!’ इसमें तुक भी है, लय भी है और डंडा तो है ही!
