आजादी नहीं मिलती तो छीन के लेनी पड़ती है। हमसे बोला कि मां बहनों को भेज दिया है। अरे भाई, अभी तो शेरनियां बाहर आई हैं, उसी से तुम्हारे पसीने छूट गए हैं। अगर हम निकल पड़े, तो आपका क्या होगा! पंद्रह करोड़ हैं, लेकिन सौ करोड़ पर भारी पड़ेंगे। ये समझ लेना…’ क्या उत्तम संवाद, कि सारी फिल्में मात!
एक प्रवक्ता बोला : यह ‘वायरस’ है। यह ‘कोरोना वायरस’ है! एंकर ने ताना मारा कि क्या इसके खिलाफ आप एफआइआर करेंगे?

हे एंकर बाबू! इसी वायरस को आप आए दिन चैनल में बिठाए रहते थे। कल फिर बिठाएंगे, लेकिन दावा यही करेंगे कि हम किसी की आवाज नहीं दबाते। हम चाहते हैं कि सब अपनी बात बोेलें और उनका पर्दाफाश हो!
कल तक जो चर्चक ईद पर बिरयानी भेजने वाले वायरस को धन्यवाद कहा करता था, वही कहे जा रहा था कि पंद्रह करोड़ बरक्स सौ करोड़ वाली भाषा तो जिन्ना के ‘डाइरेक्ट एक्शन डे’ वाली है!
देर से चुप बैठा एक अन्य तत्ववादी बोल उठा : ‘इन सौ करोड़ में हिंदू नहीं, संघी हैं, यहूदी हैं, ईसाई हैं और कम्यूनिस्ट हैं…
इसे कहते हैं प्रपंच करना! कोई खुलेआम ऐसी कुव्याख्या करे तो आप क्या कर सकते?
वाह सर जी! ऐसे उकसावेबाजों को हीरो बनाएं आप और दूसरों को तिकतिकाएं और साथ ही जजों से कहें कि वे ‘स्वत: संज्ञान’ लेकर कार्रवाई करें!

धंधई खबर-एंकरों को इतने भर से भी तसल्ली कहां?
एक एंकर एक पुराना वीडियो दिखाने लगता है, जिसमें एक और तत्ववादी बोलता दिखाई पड़ता है कि जो मोदी के खिलाफ आवाज उठाएगा वह ‘मर्दे मुजाहिद’ कहलाएगा!

‘सौ करोड़’ के बरक्स ‘पंद्रह करोड़’ की भाषा बोलने वाले से जब एक रिपोर्टर पूछती है कि आपने सौ करोड़ हिंदुओं के लिए कहा है, तो बोले कि मैंने किसी का नाम नहीं लिया!
ऐसे बहादुरों पर एफआइआर करने के लिए कहना या देशद्रोह का मामला चलाने को कहना उनको ‘हीरो’ बनाना है!
हमारे खबर चैनल भी ऐसी भड़कबाजी को चौबीस गुणे सात के हिसाब से प्रसारित करते रहते हैं और दूसरे की भड़कबाजी को बुलावा देते रहते हैं!

जब एक ही बहस में एंकर परदे पर एक ओर तीन तत्ववादी हिंदू चेहरे बिठाएं और उनके मुकाबले में तीन तत्ववादी मुसलमान चेहरे बिठा लें तो धार्मिक धु्रवीकरण बहुत दूर नहीं रह जाता!
तिस पर शाहीन बाग की ऐंठ!
यों तो खबर बनाने के लिए शाहीन बाग की कथित ‘दादियां’ ही काफी थीं, तिस पर वहां अचानक अवतरित होने वाली तीस्ता सीतलवाड़!

उनके दर्शन मात्र से ही कई खबर चैनलों के एंकरों को दौरे पड़ते दिखे!
एक बोला, इनका आना अदालती वार्ताकारों की बातचीत को बाधित करने जैसा है!
दूसरा बोला : हम न कहते थे कि शाहीन बाग कोई स्वत:स्फूर्त आंदोलन नहीं है। वह बड़ा ही सुसंगठित और सुसंयोजित है! तीस्ता का यहां होना प्रमाण है। वे ‘दादियों’ को सिखाने आई हैं कि अदालती वार्ताकारों से उनको क्या कहना है?
और, हमने देखा कि हिजाब ओेढ़े एक लड़की ‘दादियों’ को कुछ सवाल सुनाती जाती थी। उसके पीछे खड़ी तीस्ता अपनी गर्दन हिला कर ओके करती जाती थीं!

लड़की बोलती जाती थी :
– किसी और जगह धरना देने की स्थिति में औरतों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किस पर होगी?
– क्या किसी और जगह ले जाने से आंदोलन कमजोर हो जाएगा?
– पुलिस अवरोध हटाती क्यों नहीं?
एक ओर अपनी जिद पर इतराती भीड़ और उधर अदालत का बातचीत करने का आदेश! चेहरे पर प्रार्थना का भाव लिए वार्ताकारों ने शाहीन बाग की कथित दादियों को पहले रोज अदालत का आदेश सुनाया और आदेश का सम्मान करने का आग्रह किया, लेकिन जवाब में दादियों को यही कहते पाया कि जब तक सीएए पूरी तरह हटाया नहीं जाता, तब तक हम कहीं नहीं जाने वाले!

अगले रोज वार्ताकार भीड़ की फिर चिरौरी-सी करते दिखे। एक ने दादियों को खुश करने के इरादे से फरमाया कि हमें कल आपका आशीर्वाद मिला… आपको विरोध का हक है। आपका शाहीन बाग बना रहेगा, लेकिन रास्ता खुलना चाहिए और दूसरों को परेशान नहीं होनी चाहिए… कि अचानक एक चैनल वाले ने बातचीत में हस्तक्षेप किया, तो वार्ताकार झल्ला उठे और सारे मीडिया को डांट लगा दी कि पहले मीडिया हटे, फिर हम बात करेंगे! हम उसके आगे बात नहीं करेंगे…

लेकिन अंत में जब भीड़ की यही जिद रही कि जब तक सीएए, एनपीआर और एनआरसी नहीं हटाते तब हम यहीं बैठे रहेंगे!
फिर बंद रास्ता खोलने की संभावना तलाशने दोनों वार्ताकार सड़क पर अवरोध (बैरीकेड) देखने गए और शुक्रवार की सुबह जैसे किसी ने ‘खुल जा सिम सिम’ कहा हो, एबीपी ने खबर दी कि सुपरनोवा-नोएडा वाला रास्ता खुल गया है!
जब रास्ता खुलना इतना आसान था, तो इतने दिन इतनी ‘हाय हाय’ क्यों मचाई गई?इसे पहले भी खोला जा सकता था! या क्या यह सब पहले से तय था?
बहरहाल, वृहस्पतिवार से चैनलों ने ट्रंप का कोरस गाना शुरू कर दिया : आए ट्रंप कृपाला दीनदयाला भारत के हितकारी…