एक बार फिर से आपके सामने आ गया है ऐसा परिवारिक ड्रामा जिसमें हंसी और नाचगाने अधिक हैं और मारपीट कम। जिसकी कहानी में धार्मिक हिंदू संस्कार भी हैं और आज के जमाने की लवस्टोरी भी। ‘प्रेम रतन धन पायो’ में सलमान खान को दोहरी भूमिका है, यानी डबल रोल। एक में वे एक राजपरिवार के वंशज विजय सिंह बने हैं। और हां, आज के जमाने में जब भारत में राजशाही खत्म हो गई है, ‘प्रेम रतन धन पायो’ के युवराज विजय सिंह का राज तिलक होने जा रहा है। है न हैरानी की बात। लेकिन ये राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म है- इसमें कुछ भी हो सकता है।
खैर, विजय सिंह का एक हमशक्ल भी है- प्रेम दिलवाला, जो अयोध्या में रहता है और रामलीला का कलाकार है। प्रेम की अपनी रामलीला मंडली है। प्रेम अपनी रामलीला की कमाई ‘उपहार’ नाम की एक संस्था को देता है जिसे मैथिली (सोनम कपूर) नाम की लड़की चलाती है। मैथिली भी एक राज कुमारी है। मैथिली को पैसे देने और उसका दर्शन करने प्रेम प्रीतमपुर जाता है जहां वो राजकुमार विजय सिंह के राज तिलक में आनेवाली है। मैथिली और विजय सिंह की शादी भी होनेवाली है हालांकि विवाह की तिथि तय नहीं है। ऐसे ही वक्त कहानी में ट्विस्ट आता है और राज कुमार विजय सिंह के खिलाफ षडयंत्र होता है और वो घायल हो जाता है। विजय सिह को छिपाकर रखा जाता है। प्रीतमपुर का दीवान (अनुपम खेर) प्रेम को कुछ दिनों के लिए विजय सिंह की एक्टिंग के लिए राजी कर लेता है। और जब राजकुमारी मैथिली प्रीतमपुर आती है तो प्रेम विजय सिंह बनके उससे मिलता है। आगे की कहानी बताने की जरूरत नहीं है क्योंकि इतना तो हिंदी फिल्मों का रसिया समझ ही जाता है कि अब प्रेम नाम की जो चीज है वो प्रेम दिलवाला और मैथिली के बीच होती है। लेकिन जब विजय सिंह को होश आएगा तो क्या होगा? ये उत्कंठा दर्शक को बांधे ऱखती है। साथ ही साथ मधुर संगीत और कर्णप्रिय गाने भी दर्शक को समय़ का बोध नहीं होने देते।
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सलमान खान की कॉमिक टाइमिंग लगातार बेहतर होती जा रही है और वे छोटे छोटे और सामान्य लगनेवाले संवादों में ऐसा हास्य पैदा कर देते हैं जिसमें आप ठहाका तो नहीं लगाते लेकिन हल्की की हंसी का मजा लेते है। पर सूरज बड़जात्या ने कुछ ऐसे दृश्य में रचे है जिसमें हंसी का भरपूर डोज भी है। खासकर वो दृश्य जिसमें पुरुषों और महिलाओं के बीच फुटबॉल मैच होता है। ये एक लंबा दृश्य है और इसमें एक तरह का, हल्का सा, जेंडर डिस्कोर्स भी है यानी पुरुष और स्त्री के बीच बराबरी का संदेश। पर राजश्री प्रोडक्शन का इतिहास रहा है वो ज्यादा सामाजिक मसलों में नहीं फंसता।
‘परिवार हंसता खेलता रहे’-यही राजश्री प्रॉडक्शम का मूल मंत्र रहा है और यही अभी भी है। इसलिए अगर इस फिल्म को देखने के बाद आपने जेहन में इस तरह के सवाल उठें कि- मैथिली की संस्था क्या काम करती है और चंदे से मिले धन का कैसा इस्तेमाल करती है या राज कुमार विजय सिंह को उसी के राज महल में छिपा कर क्यो रखा जाता है- तो उनका जवाब खोजने में वक्त जाया मत कीजिएगा। ये परीकथा जैसी फिल्म हैं जिसमें कई बेमेल चीजों होंगी और उनकी ओर ध्यान दिए बिना फिल्म का लुत्फ लेना है।
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दोनों भूमिकाओं में सलमान का चुंबकत्व बरकरार रहता है। विजय सिंह की भूमिका में वे संजीदा हैं और प्रेम की भूमिका में मजाकिया। प्रेम की भूमिका में थोड़ा सा अक्स बजरंगी भाईजान वाला भी है। निल नितन मुकेश एक छोटे से षडयंत्रकारी बनके रह गए हैं। स्वरा भास्कर विजय सिंह की सौतेली बहन की भूमिका में ज्यादा समय तक आग बबूला ही रहती हैं। जहां तक सोनम कपूर का मसला है उनके बारे में इतना तो कहना पड़ेगा कि उनके ड्रेस डिजाइनर से उनके साथ काफी अन्याय किया है। अक्सर वे फिल्म में जिन कपड़ों में दिखीं है वे उस शोखी से अलग हैं जो उनकी मैथिली वाली शख्सियत में मौजूद है। इस कारण मैथिली का चरित्र उदासी से ढंका हुआ दिखता है। वैसे सोनम कपूर की पहली फिल्म ‘सांवरिया’ थी जिसमें सलमान ही उनके सांवरिया बने थे। हालांकि सांवरिया बॉक्स ऑफिस पर चल नहीं पाई थी, लेकिन ‘प्रेम रतन धन आयो’ को धन बरसने की काफी उम्मीद है। ये एक ऐसे फॉर्मूले पर है जो आज तक पिटा नहीं है।
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