Panipat Movie Review, Rating: ये वह गाथा है जिसका संबंध भारतीय इतिहास के उस दौर से है जिसे ‘ पानीपत की तीसरी लड़ाई ‘ के नाम से जाना जाता है। ये लड़ाई हुई थी १७६१ में अफगान आक्रमणकारी और बादशाह अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनानी सदाशिव राव भाऊ के बीच। लड़ाई में मराठों की हार हो गई थी और इसने उनके अखिल भारतीय राज्य के मंसूबे को ध्वस्त कर दिया था। आज भी ये हार मराठी स्मृति में ‘पानीपत झाला’ के नाम से जाना जाता है। जब परिवार या समाज में कोई बड़ी गड़बड़ी हो जाती है तो मराठी में आम बोलचाल में कहते हैं ‘ पानीपत झाला ‘ हो गया। मराठी में विश्वास पाटिल ने इसी पर आधारित ‘ पानीपत ‘ नाम से उपन्यास भी लिखा है। इस फिल्म के रिलीज होने के पहले विश्वास पाटिल और फिल्म निर्माताओं में कानूनी विवाद भी हुआ।

अब बात कर लें इस फिल्म पर। इसमें संदेह नहीं की गोवारिकर ने महत्वाकांक्षी फिल्म बनाई है। हालांकि इतिहास के साथ उन्होंने कई जगह आज़ादी भी ली है इसलिए ये उस युद्ध का प्रामाणिक बयान नहीं है। निर्देशकीय कल्पना वास्तविक इतिहास को दबा देती है। वास्तविक इतिहास ये कहता है पानीपत में मराठों की हार की वजह सदाशिव की कमजोर रणनीति भी थी। सदाशिव राव ने उत्तर भारत के कई राजाओं पर भरोसा नहीं किया। जैसे जाटों के राजा सूरजमल पर। उल्टे सूरजमल को गिरफ्तार करने की कोशिश की। पर सदाशिव राव को हीरो बनाने के लिए ये पहलू या तो छिपा दिए गए हैं या उलट-पलट दिए गए है। गोवारिकर ने एक पराजय गाथा को शौर्य गाथा बनाने की कोशिश की है। इसमें वे काफी हद तक सफल भी हुए है। उन्होंने इस फिल्म को मराठों की वीरता और स्वाभिमान की तरह बनाया है और साथ ही देशभक्ति का पुट भी डाल दिया है। फिल्म इतिहास से अधिक मराठी कल्पना लगती है।

संजय दत्त ने इसमें अहमद शाह अब्दाली की भूमिका निभाई है। और अर्जुन कपूर बने है सदाशिव राव भाऊ। कृति सैनन ने सदाशिव राव की प्रेयसी और पत्नी पार्वती बाई की भूमिका निभाई है। पार्वती बाई पानीपत के युद्ध में शरीक होने अपने पति के साथ जाती है। फिल्म में पेशवाओं के महल की राजनीति भी है। सदाशिव राव कहीं आगे चलकर पेशवाओं की गद्दी न ले ले इस आशंका से उदगीरी की जीत के बावजूद उस सेनापति न बनाकर अर्थ मंत्री बनाया जाता है फिर अब्दाली के खिलाफ युद्ध में बाजी राव के बेटे और कम उम्र के विश्वास राव को सेनापति बनाया जाता है। हालांकि युद्ध की बागडोर सदाशिव राव के जिम्मे रहती है। सारे फैसले वही करता है।

अहमद शाह अब्दाली की भूमिका में संजय दत्त दबंग भी लगे है और शरीफ भी। इस अर्थ में कि उनको ज्यादा क्रूर नहीं दिखाया गया है। उनकी बेशभूषा भी जबरदस्त है । निर्देशक गोवारिकर ने उनके लिए जो बख्तर बनवाया है उसका वजन २५ किलो का बताया जा रहा है। ऐसा बख्तर पहनकर उनको अभिनय करने में जरूर थोड़ी असहजता महसूस हुई होगी। फिर भी हर अंदाज में वे नायाब लगे है। वैसे ये फिल्म उनके लिए ये खास महत्व रखती है कि ये उनकी २०० वीं फिल्म है।

जहां तक अर्जुन कपूर का मसाला है वे सदाशिव राव की भूमिका को लार्जर दैन लाइफ नहीं बना पाए है। उनमें कुछ ऐसा है जो किसी चरित्र को ज्यादा उठा नहीं पाता। कृति सैनन में जरूर एक सहजता है। ‘पानीपत फिल्म ‘ की कहानी भी पार्वती के बयान की तरह कही या दिखाई है। हां एक बात और। फिल्म का जज्बाती पक्ष मजबूत है और वही इसकी जान है। ये फिल्म गोवरिकर को फिल्मी कैरियर को संभाल सकती है जो ‘ मोहन जोदड़ो ‘ के बाद कुछ झटका खा गई है।

पानीपत (३ *)
निर्देशक – आशुतोष गोवारिकर
कलाकार – संजय दत्त, अर्जुन कपूर, कृति सैनन, मोहनीश बहल, मंत्रा, पद्मिनी कोल्हापुरे , ज़ीनत अमान