जज्बा
निर्देशक-संजय गुप्ता
कलाकार- ऐश्वर्य राय बच्चन, इरफान खान, शबाना आजमी, चंदन राय सान्याल, जैकी श्रॉफ, सारा अर्जुन
पांच बरसों तक मातृत्व अवकाश लेने के बाद ऐश्वर्य राय बच्चन मां की भूमिका में फिल्म के रूपहले पर्दे पर फिर से आ गई हैं। लेकिन विश्व सुंदरी ऐश्वर्य के प्रशंसकों को निराश होने की जरूरत नहीं है- वे अभी निरूपा राय शैली की मां नहीं बनीं हैं। उनका सौंदर्य बरकरार है, यदा-कदा रोमांटिक हो ही सकती हैं।
संजय गुप्ता की फिल्म जज्बा में उन्होंने एक ऐसे फौजदारी वकील अनुराधा वर्मा की भूमिका निभाई है जिसकी बेटी सनाया (सारा अर्जुन) स्कूल से अगवा कर ली जाती है। अगवा करनेवाले अनुराधा को बताते हैं कि वह अपनी बेटी से फिर तभी पा सकती है जब वे जेल में बंद सजायाफ्ता ऐसे शख्स मियाज शेख (चंदन राय सान्याल) को छुड़ाए जो एक लड़की के बलात्कार और हत्या की वजह से जेल में हैं और जिसने अपने अदालत में अपील की है।
अब अनुराधा क्या करे और कैसे करे ? अपनी बेटी को बचाए तो कैसे और जेल में बंद शख्स को कानूनी पंजे से बचाए तो किस तरह? मामला जजबाती भी है और कानूनी दांवपेच का भी। अनुराधा पुलिस के पास नहीं जा सकती क्योंकि अगवा करनेवाले ने फोन पर धमकी दे दी है कि ज्यादा तीन पांच किया तो बेटी को नहीं देख सकोगी।
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उलझनों में घिरी अनुराधा की मदद के लिए आता है योहान ( इरफान खान) जो वैसे तो पुलिस इंस्पेक्टर है लेकिन आजकल निलंबित है। योहान अनुराधा को चाहता है भी लेकिन ये चाहत कुछ दबी-छुपी सी है। यानी फिल्म में हल्का सा रोमांस भी है। पर मुख्य रूप से ये रोमांस की नहीं बल्कि रोमांच की कहानी है क्योंकि अनुराधा के पास अपनी बेटी को छुड़ाने के वक्त बहुत कम है- चार दिन। क्या चार दिनों में वो अपनी बेटी को बचा सकेगी ? क्या वो मुकदमा जीत पाएगी? यही ससपेंस पूरी फिल्म में बना रहता है और दर्शक की उत्सुकता बनी रहती है।
ये फिल्म वोन शिन येओन की कोरियाई फिल्म सेवेन डेजह्ण का हिंदी रूपांतर है। फिल्म में कसावट है और कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो ढीली नहीं होती। फिल्म के संवाद भी दिलचस्प और तालियां लूटनेवाले हैं। पर ऐश्वर्या राय बच्चन पर केंद्रित होने के बावजूद ये फिल्म इरफान खान के कंधों पर टिकी है और अपने अंदाज और शांत मिजाज से वे फिल्म में कहीं ढीलापन नहीं आने देते।
संवादों पर तालियां भी उनको ही मिलती हैं। ऐश्वर्या का काम कमजोर नहीं कहा जा सकता है लेकिन इतना जरूर है कि कोरियाई फिल्म सेवेन डेजह्ण की हीरोइन यूंजिन किम से अगर उनकी तुलना की जाए तो निराशा जरूर होती है। वे कुछ दृश्यों में बहुत अतिरेकी और अतिनाटकीय हो गई हैं जिसके कारण थ्रिलर वाला तत्व कमजोर हो जाता है। लेकिन निर्देशक भी क्या करे, फिल्मों में भारतीय मां के लिए जरूरी माना जाता है कि वो कुछ अतिनाटकीय ढंग से अपने दर्द का इजहार करे।
इसलिए संजय गुप्ता को ये सब करना पड़ा। किंतु साथ ये भी सच है कि मां बनने के बाद ऐश्वर्या में एक नए तरह का संजीदापन आया है जिसकी वजह से इस भूमिका को थोड़ी वैधता भी मिली है। फिल्म में एक और ताकतवर भूमिका शबाना आजमी की है जिन्होंने गरिमा चौधरी नाम की उस महिला का किरदार निभाया है जिसकी बेटी के साथ बलात्कार हुआ और जिसकी हत्या हुई। शबाना ने इस भूमिका में एक गंभीरता लाई है। चंदन राय सान्याल जरूर कुछ विचित्र से लगे हैं और उनके चरित्रांकन पर निर्देशक ने ज्यादा ध्यान भी नहीं दिया है। हिंदी रूपांतरण में ये फिल्म पूरी तरह थ्रिलर नहीं बन सकी है फिर भी ये ऐश्वर्य बच्चन की दूसरी पारी के लिए रास्ता प्रशस्त करेगी।