Batla House Movie Review and Rating: साल 2008 में दिल्ली में जामिया नगर इलाके में बटला हाउस एनकाउंटर हुआ था जिसमें दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की मृत्यु हुई थी। ये एनकाउंटर काफी विवादास्पद भी हो गया था और तब कुछ दलों की तरफ से इसे मानवाधिकार हनन से जोड़ा गया था। बटला हाउस एनकाउंटर के बारे में भी कहा गया था कि ये आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन से जुड़े आतंकवादियों को धर दबोचने के मकसद के अभियान के क्रम मे हुआ था।
फिल्म उसी घटना से प्रेरित है। हालांकि यहां भी काल्पनिक आजादी ली गई है। और इस काल्पनिक आजादी का अगर काल्पनिक नुकसान किसी को हुआ है तो मारे गए पुलिस इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा को। उनके व्यक्तित्व के आधार पर केके वर्मा नाम का जो चरित्र यहां गढ़ा गया है वो इस फिल्म का नायक नहीं है। नायक है संजय कुमार जो आईपीएस अधिकारी है और जिसका किरदार जॉन अब्राहम ने निभाया है। केके वर्मा का चरित्र रवि किशन ने निभाया है जो अब सांसद हो गए हैं। बेशक सांसद बनने के पहले ये फिल्म साइन की होगी। अब नहीं करते या करते भी तो भी उनका रोल बड़ा होता। और हां, फिल्म के अंत में संकेत किया गया है कि संजय कुमार का चरित्र पुलिस अधिकारी संजीव यादव से प्रेरित है।
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बहरहाल इन पहलुओं को छोड़ दें तो बतौर एक्शन फिल्म `बटला हाउस’ एक ऐसी अच्छी थ्रिलर मूवी है जिसमें दो तरह के जज्बात हैं। एक तो पुलिस की कर्तव्यपरायणता के। फिल्म ये साफ साफ कहती है पुलिस के जवान और अधिकारी अपनी जान की बाजी लगाकर आंतकवादियों को पकड़ने की कोशिश करते हैं लेकिन नेता लोग और कुछ टीवी चैनल वाले ऐसे पुलिसकर्मियों की आलोचना करने में जुट जाते है और उनको ऐसा पेश करने लगते हैं मानों वे वर्दी के तहत काम करनेवाले अपराधी हों। हालांकि ये मतलब इसलिए भी निकलता है कि फिल्म में एक संदेहास्पद व्यक्ति को पकड़ने के लिए पुलिस सीधे एक न्यूज चैनल में छापामार की तरह पहुंचती है। हालांकि आम जीवन में ऐसा होता नही है लेकिन अगर फिल्म मे आप काल्पनिक आजादी लेना चाहें तो इस तरह की हरकतें दिखानी पड़ती हैं। यानी `बटला हाउस’ ये सीधे सीधे कहती है कि पुलिस हमेशा सही होती है और खबरिया चैनल गलत।
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जॉन अब्राहम ने इसमें ऐसे पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई है जो जाबांज तो है लेकिन मानसिक समस्याओं से जूझ रहा है। इस तरह उनके चरित्र की कई तहें हैं। वह अपनी जान की बाजी लगा सकता है लेकिन कुछ मौकों पर कुछ बोल नहीं पाता सिर्फ हाथ की उंगलिया इधर उधर करता रहता है। मृणाल ठाकुर ने संजय कुमार की पत्नी नंदिता की भूमिका निभाई है। नंदिता एक टीवी चैनल में काम करती है और वहां एंकर है। इसलिए पति- पत्नी में तनाव के मामले भी सामने आते हैं। फिल्म वैसे तो चुस्त है लेकिन आखिर का अदालती सीन लंबा और कुछ कुछ बोर हो गया है। लेकिन बतौर वकील राजेश शर्मा नए अंदाज में दिखे हैं और अदालत में भी एक्टिंग करते हैं। नोरा फतेही पर फिल्माया गया गाना `साकी ओ साकी’ पुराने गाने का रिमिक्स है फिर भी जमता है।