यह एक महिला केंद्रित फिल्म है। शहर में रह रहीं पढ़ी-लिखी भारतीय महिलाओं के क्या अरमान हैं और क्या वे उन्हें पूरा कर पाती हैं, यही इस फिल्म का मुख्य विषय है। फ्रीडा (सारा डेन जियाज) गोवा की रहने वाली है और उसकी शादी हो रही है। वह अपनी शादी में उन महिला दोस्तों को बुलाती है, जो उसके साथ पूर्व में रह चुकी हैं। इनमें कुछ की शादी भी हो चुकी है। उनकी हसरतों के पूरा होने में पुरुष केंद्रित समाज किस तरह रोड़े अटका रहा है, फिल्म उसी बारे में है। फिल्म में महिलाओं की सेक्स लाइफ, कैरियर से लेकर समलैंगिकता के मुद्दे तक पर चर्चा की गई है।
इस फिल्म का पहला हिस्सा रोचक है। इसमें हम कई ऐसे चरित्रों से रूबरू होते हैं, जिनकी जिंदगी के कई पहलू बेहद रोचक हैं। दिक्कत ये है कि फिल्म में कोई नाटकीय घटनाक्रम नहीं है, जिसकी वजह से यह फिल्म शुरू होने के कुछ देर बाद नीरस होने लगती है। चूंकि, इसमें कहानी किसी एक चरित्र के इर्दगिर्द नहीं घूमती, इसलिए दर्शकों को ये एहसास हो सकता है कि वे सिर्फ कुछ किरदारों की मिली जुली समस्याएं देख रहे हैं। किरदारों से जुड़े घटनाक्रम मिलकर ऐसी कहानी नहीं बुनती, जिससे दर्शक जुड़ाव महसूस कर सके। अंत की और बढ़ते हुए ये फिल्म अपनी पकड़ खोने लगती है।