Kesari Movie Review and Rating: ये युद्ध में पराक्रम की कहानी भी है और साथ ही लड़ाई में दुश्मनों के साथ मानवीयता दिखाने की भी। `केसरी’ एक युद्धगाथा है। ऐसी फिल्मों के साथ ये खतरा होता है कि वे युद्धोन्माद भी पैदा करने लग जाती हैं। पर निर्देशक अनुराग सिंह की ये फिल्म युद्ध का महिमामंडन नहीं करती। ये सिखों के शौर्य की याद दिलाती है और युद्ध के दौरान विरोधी पक्ष के घायल सैनिकों की सेवा का संदेश भी देती है।

गुरुगोविंद सिंह जी का एक मशहूर कथन है- `सवा लाख से एक लडाऊं तो मैं गुरु गोविंद सिंह कहाऊं।‘ फिल्म मे अंत में इशर सिंह का किरदार निभाते हुए अक्षय कुमार ने गोलियां खत्म हो जाने के बाद अकेले तलवार भांजते हुए जिस तरह विरोधी पक्ष पर आक्रमण किया है उसके मूल में यही बात है। पर गोविंद सिंह की प्रसिद्ध रचना `देहु सिवा बर मोहि शुभ करमन ते कबहुं न टरो’ में निहित भावना भी फिल्म में शुरू से आखिर तक है। ये इस फिल्म में लगातार गूंजती रहती है। ये बताते हुए कि लड़ाई के दौरान भी शुभ कर्म करते रहना चाहिए।

`केसरी’ सन् 1897 की वास्तविक कथा पर आधारित है। तब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। उस समय के भारत-अफगानिस्तान सीमा पर सारागढ़ी एक सैन्य पोस्ट था। यहां सिर्फ 21 सैनिक तैनात थे जो सिख रेजिमेंट के थे। अफगानियों ने इस सैन्य पोस्ट पर इसलिए हमला किया था कि इसे ध्वस्त करने के बाद कुछ दूर स्थित दो किलों-फोर्ट गुलिस्तान और फोर्ट लॉकहार्ट पर नियंत्रण कर लेंगे। पर 21 फौजियों की इस टुकड़ी ने आखिरी दम तक अफगानियों का मुकाबला किया और खतरे को टाल दिया।

सारागढ़ी में जो हुआ वो तो इतिहास की किताबों में दर्ज है। पर `केसरी’ उसे उन किताबों से बाहर निकालकर वहां ले जाती है जहां फौजियों का निजी जीवन भी है। उनके अपने दुख दर्द भी हैं। उनके घरों में क्या हो रहा है, उनकी पत्नियां और माएं किस ललक के साथ उनका इंतजार कर रही हैं, वे अपने बच्चों को कब से नहीं देख पाई हैं- ये सब फिल्म की बनावट में है। एक दृश्य है जिसमें एक फौजी अपने जूतों पर हमेशा कड़क पॉलिस करता रहता है। दूसरा जब उससे पूछता है कि ऐसा वो क्यों करता है जो उसे जवाब मिलता है- `मेरे पिता ने एक ही जूते को पहनते हुए अपनी पूरी जिंदगी निकाल दी इसलिए ये जूता उनको भेंट करूंगा’।

ऐसी कई छोटे लगनेवाले वाकयों से मिलकर बनी ये फिल्म आम फौजी की आकांक्षाओं, अरमानों और यादों की तऱफ भी ले जाती है। यही फौजी सारागढ़ी के पास एक गांव में टूटे फूटे मस्जिद का भी मिलकर निर्माण करते हैं। वे नौकरी जरूर अंग्रेजों की करते हैं लेकिन अपनी सिख परंपरा को याद करते हुए दूसरे धर्म यानी इस्लाम से वैर नहीं रखते है। `केसरी’ निर्वैरता की कथा भी है। फिल्म का एक मार्मिक प्रसंग वो है जिसमें युद्ध के दौरान इशर सिंह अपनी चौकी के रसोइए से कहता है कि लड़ाई के दौरान उसे अपनी टुकड़ी के घायल सैनिकों को तो पानी पिलाना ही है दुश्मन सेना के घायल सैनिकों के साथ भी ऐसा ही करना है। फिर वो उस रसोइए को वो किस्सा सुनाता है जब मुगल सेना से लड़ाई के दौरान गुरु गोविंद सिंह की सेना के भाई कन्हैया घायल सिखों की सेवा तो कर ही रहे थे, घायल मुगल सैनिकों के जख्मों पर भी मरहम पट्टी कर रहे थे। जब कुछ लोगों ने गुरु गोविंद सिंह से इसकी शिकायत की तो गुरु ने भाई कन्हैया का पक्ष लिया था। भाई कन्हैया ने गुरु गोविंद सिंह से तब कहा था- `हर घायल सैनिक में मैं आपको ही देखता हूं इसलिए ऐसा करता हूं।‘ सिख इतिहास के ऐसे और पहलू इस फिल्म में हैं। इसमें सिख सैनिक अपनी पगड़ी के ऊपर चक्कर (चक्र) भी बांधे दिखते हैं जो सिख सैन्य परंपरा का हिस्सा रहा है। ये चक्कर सिर की रक्षा भी करता है और जरूरत पड़ने पर हथियार का काम भी करता है। ये अक्षय कुमार की अब तक की सबसे अच्छी फिल्म है। लेकिन यहां ये कहना भी जरूरी होगा कि फिल्म अभिनय से अधिक निर्दशकीय कल्पना पर टिकी है। अनुराग सिंह हाल के वक्तों में उभरे पंजाबी के एक बेहतरीन निर्देशक हैं। उन्होंने पंजाबी फिल्मों की संस्कृति बदल दी है। `केसरी’ उनकी प्रतिभा का उदाहरण है।

`केसरी’ में निर्देशकीय मौलिकता क्या है? इसे समझना होगा। सारागढ़ी की जो इतिहास सम्मत कहानी है उसमे एक बड़ा पेच है। खासकर फिल्मकार के लिए। वो ये कि जो वास्तविक लड़ाई हुई थी वो अंग्रेजी फौज और अफगानों के बीच हुई थी। इसमें भारत कहीं नहीं था क्योंकि वो उस वक्त गुलाम था। इसलिए किसकी वीरता का बखान है यहां? अंग्रेजी फौज की? आखिर फौजी सिख भी अंग्रेजी फौज में थे। इसलिए निर्देशक के सामने ये चुनौती थी इतिहास के इस अध्य़ाय को आज किस तरह से रखा जाए या दिखाया जाए कि दर्शक उससे जजबाती तौर पर जुड़ सके? अनुराग सिंह ने इस मसले को बारीकी से सुलझाया है। उन्होंने इस युद्ध को ऐसा दिखाया है कि इसे आजादी की भावना और सिखों के अपने उसूल के साथ जोड़ दिया है। हवलदार इशर सिंह की टुकड़ी अपने कौम की रिवायत और आजादी के जज्बे के लिए लड़ रही थी। इशर सिंह में अंग्रेज हुक्मरानों और अंग्रेजी शासन के खिलाफ गुस्सा भी था। हां, इतना जरूर हुआ है कि ये दिखाने के लिए अनुराग में अकादमिक इतिहास के साथ आजादी ली है। पर शायद ये इतिहास के साथ आजादी भी नहीं है क्योंकि इतिहास तो ज्यादातर अकादमिक विद्वान लिखते हैं और वे जजबात को कहां दर्ज कर पाते है? जजबात तो शायद स्मृतियों में बसे होते हैं जहां से अनुराग सिंह ने पर्दे पर उतार दिया है।

केसरिया- 4 स्टार्स

कलाकार- अक्षय कुमार, परिणीति चोपड़ा, अश्वत्थ भट्ट

निर्देशक- अनुराग सिंह
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