हिंदू धर्म माता दुर्गा की पूजा बड़ी ही आस्था के साथ की जाती है। ऐसा माना जाता है कि मां दुर्गा जिस भक्त से प्रसन्न होती हैं उसके जीवन के सभी कष्टों का नाश कर दती हैं। दुर्गा जी की तुलना परम ब्रम्हा से की जाती है। दुर्गा को आदि शक्ति, प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी और विकार रहित बताया गया है। कहते हैं कि मां दुर्गा अपने भक्तों को अंधकार और अज्ञानता से बचाती हैं। मां अपने भक्तों के लिए अत्यंत कल्याणकारी हैं। मां दुर्गा को आदि शक्ति भी कहा जाता है। क्या आप जानते हैं कि दुर्गा जी का नाम आदि शक्ति क्यों पड़ा है? और उनके इस रूप की क्या विशेषताएं हैं? हम आपको इसी बारे में बता रहे हैं।

माता दुर्गा के आदि शक्ति स्वरूप को लेकर एक कथा प्रचलित है। इसके मुताबिक एक बार देवतागण राक्षसों के अत्याचारों से तंग आकर ब्रम्हा जी के पास गए। ब्रम्हा जी ने बताया कि दैत्यराज को वरदान मिला हुआ है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से ही होगी। इस पर देवताओं ने अपने सम्मिलित तेज से देवी के इस रूप को प्रकट किया। अलग-अलग देवताओं की शरीर से निकले तेज से देवी के विभिन्न अंगों का निर्माण हुआ। इस स्वरूप को आदि शक्ति के नाम से जाना गया। माता का यह स्वरूप अथाह शक्तियों से भरा हुआ है।

माता दुर्गा को इस सृष्टि की आद्य शक्ति यानी कि आदि शक्ति कहा गया है। हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकर जी भी उन्हीं की शक्तियों से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। साथ ही अन्य देवता भी उनकी शक्ति से शक्तिमान होकर सृष्टि के तमाम कार्य करते हैं। इस प्रकार से दुर्गा जी के आदि शक्ति स्वरूप के तेज को समझा जा सकता है। कहते हैं कि माता दुर्गा के आदि शक्ति स्वरूप की आराधना में जीवन की सभी समस्याओं का समाधान छिपा हुआ है।