मदन गुप्ता सपाटू

हमारे यहां विवाह के मुहूर्तों कोे लेकर कई बार असमंजस और दुविधा की स्थिति बनी रहती है। इसके कई कारण हैं। विभिन्न राज्यों की परम्पराएं, वहां के पंचांग और बहुत से ज्योतिषीय नियमों को देश, काल और बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप न बदलना….. जैसे कई बिंदु हैं जिनके कारण असमंजस की हालत बनी रहती है ओैर मत-मतांतर रहते हैं।

आइए जाने कि किन दिनों मे शादियां नहीं की जाती हैं
1 श्राद्ध पक्ष जो इस वर्ष-10 सितंबर से 25 सितंबर तक है।
2 जन्म मास- बड़े लड़के या बड़ी लड़की का विवाह उस महीने या नक्षत्र या जन्म तिथि या जन्म लग्न में न करना।
3 .तारा डूबना- शुक्र ग्रह,पहली अक्तूबर से 25 नवंबर तक अस्त रहेगा।
4 सूर्य ग्रहण- 25 अक्तूबर को भारत में दिखाई देगा।

  1. कार्तिक मास-17 अक्तूबर से 16 नवंबर के मध्य मांगलिक कार्य निषेध हैं।
    6.सगे भाई बहनों या सगे दो भाइयों के विवाह में छह महीने का अंतर रखा जाता है।
    7.मृत्यु- यदि किसी महीने में किसी प्रियजन की मृत्यु हो गई है। अपवाद इस शृंखला में सबसे पहले बात करते हैं चातुर्मास की जिसमें मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। आज के युग में आप चार महीने विवाह, शादियों के समय जिसके साथ असंख्य लोगों के व्यवसाय जुड़े होते हैं, कैसे हाथ पर हाथ रखे बैठ सकते हैं?
    वास्तव में पौराणिक काल में चौमासे के मौसम में अधिक वर्षा, बाढ़ आदि के कारण रास्ते बंद हो जाते थे, कीट पतंगे, झाड़ियां आदि मार्ग अवरुद्ध कर देते थे। चूंकि विवाह तथा अन्य मांगलिक कार्य में आवागमन जरूरी था और प्रतिकूल मौसम होने के कारण इन महीनों में ऐसे कार्य बंद कर दिए जाते थे। परंतु आज के युग में अच्छे संचार, परिवहन, बारात ठहराने, विवाह करने, समागमों के आयोजन के लिए असंख्य साधन मौजूूद हैं तो चातुर्मास में विवाह न किया जाए, इसका कोई तर्क नहीं बनता। दूसरे जिस मास में लड़के, लड़की का जन्म हुआ हो या माता-पिता की शादी हुई हो उस महीने में विवाह नहीं करते। इस प्रकार 12 महीनों में चार महीने तोे ये गए। कभी गुरु अस्त होगा, कभी शुक्र, श्राद्ध हर साल होंगे, पौष के महीने 15 दिसंबर से 13 जनवरी तक भी विवाह वर्जित हैं। होलाष्टक में विवाह नहीं होते, तोे आपके पास 12 महीनों में बहुत सीमित महीने ही विवाह के रह जाते हैं।
    कई बार विदेश में रह रहे भारतीयों को अवकाश नहीं मिल पाता या विमान नहीं मिल पाता।
    अधिकांश लोग पौष मास में विवाह करना शुभ नहीं मानते। ऐसा भी हो सकता है कि दिसंबर मध्य से लेकर जनवरी मध्य तक उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ती है। धुंध के कारण आवागमन भी बाधित रहता है।
    खुले आकाश के नीचे विवाह की कुछ रस्में निभाना, प्रतिकूल मौसम के कारण संभव नहीं होता, इसलिए 16 दिसंबर की पौष संक्रांति से लेकर 14 जनवरी की मकर संक्राति तक विवाह न किए जाने के निर्णय को ज्योतिष से जोड़ दिया गया हो।

अभिजीत मुहूर्त

कुछ समुदायों में ऐसे मुहूर्तो को दरकिनार रख कर रविवार को मध्यान्ह में लावां फेरे या पाणिग्रहण संस्कार करा दिया जाता है। इसके पीछे भी ज्योतिषीय कारण पार्श्व में छिपा होता है। हमारे सौर्यमंडल में सूर्य सबसे बड़ा ग्रह है जो पूरी पृथ्वी को उर्जा प्रदान करता है। यह दिन और दिनों की अपेक्षा अधिक शुभ माना गया है। इसके अलावा हर दिन ठीक 12 बजे, अभिजित मुहूर्त चल रहा होता है।

भगवान राम का जन्म भी इसी मुहूर्त काल में हुआ था। जैसा इस मुहूर्त के नाम से ही सपष्ट है कि जिसे जीता न जा सके अर्थात ऐसे समय में हम जो कार्य आरंभ करते हैं, उसमें विजय प्राप्ति होती है। ऐसे में, पाणिग्रहण संस्कार में शुभता रहती है। अंग्रेज भी सन डे, रविवार को सैबथ डे अर्थात पवित्र दिन मान कर चर्च में शादियां करते हैं।

कुछ लोगों को भ्रांति है कि रविवार को अवकाश होता है, इसलिए विवाह रविवार को रखे जाते हैं। ऐसा नहीं है। भारत में ही छावनियों तथा कई नगरों में रविवार की बजाय, सोमवार को छुट़टी होती है और कई स्थानों पर गुरु या शुक्रवार को। पंजाब के एक पचांगानुसार इस साल केवल अक्तूबर व नवंबर में शुक्रास्त होने के कारण विवाह के शुभ मुहूर्त नहीं हैं अन्यथा 14 दिसंबर तक काफी मुहूर्त उपलब्ध हैं।