Govardhan Parvat: भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से भरपूर और उनकी कृपा पाने के लिए मथुरा-वृंदावन जाते हैं। जहां पर श्री कृष्ण और राधारानी के असंख्य मंदिर मौजूद है। जिनके दर्शन करने मात्र से हर एक दुख-दर्द दूर जाते हैं। यहां पर भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली से लेकर रास लीला तक है। यहां पर बांके बिहारी मंदिर से लेकर राधा रानी के दर्शन करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। लेकिन आपको सभी तीर्थों का फल पाना है, तो गिरिराज पर्वत के दर्शन करने के साथ परिक्रमा जरूर करना चाहिए।

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गर्ग संहिता के अनुसार, गिरिराज को पर्वतों का राजा और श्री कृष्ण को अति प्रिय है। इसलिए कई लोग श्री कृष्ण-राधारानी की कृपा पाने के लिए गोवर्धन का थोड़ा सा टुकड़ा अपने साथ लेकर चले आते हैं, जिससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहे। लेकिन क्या वास्तव में गिरिराज का पत्थर घर लेकर आना चाहिए। आइए जानते हैं…

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गर्गसंहिता के गिरिराज खंड के पहले अध्याय में लिखा है-

अहो गोवर्धन साक्षात गिरिराजो हरिप्रियः।
तत्समांनं न तर्थहि विधते भूतलेदिवि।।

अर्थ– गोवर्धन पर्वतों का राजा और कृष्ण का प्यारा है। इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में कोई दूसरा तीर्थ नहीं है।

गर्ग संहिता के गिरिराज खंड के अध्याय 7 में नारद मुनि द्वारा गोवर्धन पर्वत की महिमा का अत्यंत भावपूर्ण वर्णन किया गया है। उन्होंने कहा कि गोवर्धन पर्वत सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है। वृंदावन जहां स्वयं गोलोक का साक्षात रूप है, वहीं गोवर्धन को उसका मुकुट माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण के मुकुट का स्पर्श पाने वाली गोवर्धन की शिला के दर्शन मात्र से मनुष्य देवताओं में श्रेष्ठ बनने का पुण्य प्राप्त कर लेता है। भुवनेश्वर एवं साक्षात् परिपूर्णं भगवान् श्रीकृष्ण ने, जो असंख्य ब्रह्माण्डों के अधिपति, गोलोक के स्वामी हैं। उन्होंने अपने समस्त जनों के साथ इंद्र देव की पूजा को बेकार बताकर स्वयं गोवर्धन की पूजा आरंभ की थी। उस गिरिराज से अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा। इस स्थान पर बड़े से बड़े पापों का नाश करने वाली मानसी गंगा विद्यमान है। इसके साथ ही  श्रीकृष्ण के मुकुट का स्पर्श पाकर जहां की शिला मुकुट के चिह्न से सुशोभित हो गयी, उस शिला का दर्शन करने मात्र से मनुष्य देव शिरोमणि हो जाता है। जिस शिला पर श्री कृष्ण ने चित्र अंकित किए हैं, वह चित्रित और पवित्र चित्रशिला नाम की शिला आज भी गिरिराज के शिखर पर दृष्टिगोचर होती है।

गिरिराज के दर्शन के बिना आपकी तीर्थयात्रा है अधूरी

नारद जी आगे कहते हैं कि भगवान श्री हरि भारतवर्ष के चारों दिशाओं में भिन्न-भिन्न रूपों में प्रतिष्ठित हैं। पूर्व में जगन्नाथ, दक्षिण में श्री रंगनाथ, पश्चिम में श्री द्वारकानाथ और उत्तर में श्री बद्रीनाथ के रूप में। वहीं, भारत के हृदय स्थल मध्य भाग में वे गोवर्धन नाथ के रूप में विराजमान हैं। इस प्रकार, संपूर्ण भारत में ये पाँचों “नाथ” देवताओं के भी अधिपति माने जाते हैं। ये पाँचों नाथ सद्धर्म के विशाल मंडप के पाँच मजबूत स्तंभों की तरह हैं और सदैव भक्तों की रक्षा हेतु तत्पर रहते हैं। इनका दर्शन कर लेने से साधक नर से नारायण समान बन जाता है। परंतु यदि कोई विद्वान व्यक्ति चारों दिशाओं में स्थित इन नाथों की यात्रा तो करता है, परंतु मध्यवर्ती गोवर्धन नाथ के दर्शन नहीं करता, तो उसकी तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती है। जो कोई गोवर्धन पर्वत पर स्थित देव दमन श्रीनाथ जी का दर्शन कर लेता है, वह चारों दिशाओं के नाथों की यात्रा का समस्त पुण्य फल एक साथ प्राप्त कर लेता है।

गोवर्धन के दर्शन करने मात्र से मोक्ष की होती है प्राप्ति

गर्ग संहिता के  गिरिराज खंड के अध्याय 10 में गिरिराज के महत्व के बारे में बताया गया है। स्वयं नारद जी ने एक कथा सुनाई है। इस कथा के अनुसार, गोवर्धन पर्वत साक्षात् श्री हरि का रूप है। इसलिए इनका दर्शन करने मात्र से आपका जीवन कृतार्थ हो जाता है। इस पर्वत का दर्शन करने मात्र से केदार तीर्थ में पांच हजार वर्षों तक तपस्या करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है। इस पर्वत में सोने की दक्षिणा देता है, तो सैकड़ों पापों से मुक्ति मिल जाती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं अगर कोई व्यक्ति पूरी पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करने के बाद जो पुण्य की प्राप्ति होती है, तो गोवर्धन की परिक्रमा करने से इससे कई कोटि गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है। अतः गिरिराज के समान तीर्थ न तो पहले कभी हुआ है और न भविष्य में कभी होगा।

क्या गोवर्धन पर्वत का पत्थर घर लाना चाहिए?

कई लोग भगवान कृष्ण और राधा रानी के साथ गिरिराज की कृपा पाने के लिए जब गोवर्धन की परिक्रमा के जाते हैं, तो कुछ टुकड़े अपने साथ लेते आते हैं। अगर आपने ये गलती है कि जो आपको कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। गोलोक का मुकुट गोवर्धन को माना जाता है। अगर आप इसे अपने साथ ले आते हैं, तो आप श्री कृष्ण और राधा जी के कोप के भाजन बन सकते हैं।स्वयं राधा रानी के कहने पर ही श्री कृष्ण के हृदय से गिरिराज की उत्पत्ति हुई थी। जब श्री कृष्ण ने राधा रानी से गोलोक चलने के लिए कहा था, तो उन्होंने कहा कि मैं गिरिराज, यमुना और गोवर्धन के बिना कैसे जा सकती है। इसके बाद ही श्री कृष्ण ने 84 कोस में फैले बृज मंडल को धरती पर भेजा और गोवर्धन ने शाल्मल द्वीप में द्रोणाचल गिरी के यहां जन्म लिया था। इसके साथ ही ऋषि पुलस्त्य की कृपा से वह बृज मंडल में स्थापित हुए। यह राधा रानी और श्री कृष्ण को अति प्रिय होने के साथ सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है। इसलिए इसे कभी भी 84 कोसों के बाहर नहीं लाना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को भविष्य में कई समस्याओं का सामना करने के साथ नर्क जैसा जीवन हो जाता है।

श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि कोई भी गिरिराज को अपने साथ घर नहीं ले जा सकता है। अगर एक छोटी सी शिला ले जाते हैं, तो उसके भार के बराबर आपको सोना चढ़ाना पड़ेगा। अगर आपने ऐसा नहीं किया, तो भयंकर नर्क भोगना पड़ेगा। इसलिए दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा के समय गोबर के गिरिराज बनाकर पूजा की जाती है।

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