भगवान विष्णु ने अब तक 24 अवतार लिए हैं। जिनमें से एक है वराह अवतार। हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को वराह जयंती मनाई जाती है। यह भगवान विष्णु का मानवीय शरीर में धरती पर पहला अवतार था। इस अवतार में भगवान विष्णु ने शरीर मानवीय लिया था, जबकि उनका मुख वराह के समान था। इसीलिए इस अवतार को वराह अवतार कहा गया। प्राचीन शास्त्रों में यह कहा गया है कि विष्णु जी ने यह अवतार दैत्य हिरण्याक्ष का वध करने के लिए लिया था।

वराह जयंती का इतिहास
हिरण्याक्ष नाम का एक दैत्य था। उसे पूरी पृथ्वी पर शासन करने की इच्छा थी। इसलिए वह पृथ्वी को लेकर समुद्र में जाकर छिप गया। पृथ्वी को डूबता देख सभी देवी देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि – हे भगवन् आप पृथ्वी को डूबने से बचा लीजिए। क्योंकि इस पर ही संपूर्ण मानव समाज को अपना जीवन बिताना है। अगर पृथ्वी नहीं होगी तो मानव सभ्यता नहीं बचेगी। इसलिए हे करुणानिधान दीनों पर कृपा कर पृथ्वी को बचाइए।

सभी देवताओं की पुकार सुन भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया। यह अवतार भगवान के अन्य अवतारों से बहुत अलग था। सभी देवी देवताओं ऋषि-मुनियों ने उन्हें इस रूप में देखकर उनकी स्तुति की। साथ ही प्रार्थना की कि वह हिरण्याक्ष से पृथ्वी को छुड़ाकर उसका वध कर दें। ताकि जीवों को दैत्यों के अत्याचार सहने के लिए मजबूर न होना पड़े।

विष्णु जी ने वराह अवतार लेकर समुद्र में छुपे हिरण्याक्ष को ढूंढा। जब उससे पृथ्वी लेने लगे तो उसने युद्ध के लिए भगवान वराह को ललकारा। दैत्य हिरण्याक्ष की ललकार सुनकर भगवान विष्णु को क्रोध आया। भगवान वराह और दैत्य हिरण्याक्ष में भीषण युद्ध छिड़ा। जिसके बाद उन्होंने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। भगवान वराह समुद्र से पृथ्वी को अपने दातों पर रखकर बाहर ले आए और पृथ्वी की पुनर्स्थापना की।

वराह जयंती का महत्व
वराह जयंती के दिन भगवान विष्णु के भक्त यानी वैष्णव उनकी पूजा आराधना करते हैं। इस दिन वराह भगवान की स्तुति की जाती है। साथ ही कुछ लोग इस दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी करते हैं। भगवान विष्णु के इस अवतार को बहुत अनूठा माना जाता है। मान्यता है। जो कोई वराह जयंती के दिन भगवान विष्णु की पूजा आराधना करता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वह मृत्यु के बाद मोक्ष को प्राप्त करता है।