पूनम नेगी

शिकागो के टेड सीरियस न ही भारतीय योगी थे और न ही ध्यान विज्ञान के शोधार्थी। किंतु जब वे अपने सामने कैमरा रखकर मन को जिस भी वस्तु पर केंद्रित कर संपूर्ण एकाग्रता से ध्यान करते थे तो कैमरे के लेंस के सामने उनकी बाह्य आकृति के स्थान पर उनकी मानसिक कल्पना का चित्र उभर आता था। इसे यूं समझें कि जब टेड अपने मन में घोड़े पर अपना ध्यान केंद्रित करते थे तो कैमरे के लेंस में टेड की नहीं वरन घोड़े की आकृति उभरती थी। वे अपने साथ घटित होने वाली इस घटना से बेहद विस्मित व उलझन में रहते थे। शुरुआत में पश्चिमी जगत के बुद्धिजीवियों ने इसे भ्रामक और ‘हिप्नोटिज्म’ बताया पर जब 1963 में अमेरिका में मनोविज्ञान तथा अति मानवीय चेतना संबंधी शोध करने वाली संस्था ‘इलिनाइस सोसायटी फार साइकिक रिसर्च’ की उपाध्यक्ष पालिन ओहलर की उपस्थिति में टेड सीरियस के ऐसे कल्पना चित्र खींचे गए तो सारे यूरोप में तहलका मच गया।

अमेरिकी व यूरोपीय वैज्ञानिक इस बात पर आश्चर्यचकित थे कि बिना किसी यंत्र और माइक्रोतरंगों के मस्तिष्क की वैचारिक आकृति का चित्र कैमरे में भला कैसे उतर सकता है। उनके लिए टेड के साथ घटित होने वाली यह घटना किसी चमत्कार से कम नहीं थी। टेड के इस प्रयोग ने बीती सदी के पाश्चात्य दुनिया के समूचे विज्ञान वर्ग को कौतूहल में डाल दिया था। संयोग से उसी दौरान 1962 में ही टेड सीरियस को भारत का नक्शा देखने को मिला। आमतौर पर किसी नक्शे से सिर्फ भौगोलिक सीमाओं का अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन किस स्थान पर क्या हो रहा है, वहां कैसे लोग रहते हैं, वहां की प्रसिद्ध इमारतें कौन सी हैं आदि तमाम बातों की कोई स्पष्ट जानकारी मानचित्र से नहीं हो सकती। इसी आधार पर टेड की इस अलौकिक शक्ति की परीक्षा लेने के लिए उक्त अमेरिका संस्था के विशेषज्ञों ने उनको भारत के भी कुछ प्रसिद्ध स्थानों के कल्पना चित्र उतारने को कहा।

टेड ने फतेहपुर सीकरी और दिल्ली के लालकिले के दो मानसिक चित्र खींचे। बाद में जांच करने पर टेड की कल्पना और वास्तविक इमारतों की अद्भुत समानता ने उन विशेषज्ञों को दांतों तले अंगुलियां दबाने को विवश कर दिया। बताते चलें कि नवंबर 1968 की मासिक पत्रिका ‘कादंबिनी’ में टेड सीरियस के उन चित्रों का सही चित्रों से जो तुलनात्मक स्वरूप प्रस्तुत किया गया था। उसे देखकर कोई भी आश्चर्य किए बिना न रह सका कि अमेरिका में बैठे किसी व्यक्ति ने कभी देखे बिना हिंदुस्तान के ऐसे स्थान के हू-ब-हू फोटो कैसे खींच दिए।

इस जिज्ञासा का समाधान भारत के सनातन योग विज्ञान में निहित है। वैदिक मनीषियों के मुताबिक टेड के साथ घटित होने वाली घटनाएं न तो ‘हिप्नोटिज्म’ की श्रेणी में आती है, न ही ‘ट्रिक फोटोग्राफी’ की। वस्तुत: ऐसा होना साधक के ध्यान की गहन स्थिति में एकाग्र होने का प्रतिफलन है। ध्यान भारतीय दर्शन का गंभीरतम विज्ञान है। इसी ध्यान धारणा के बल पर पुरा भारतीय मनीषी एक ही स्थान पर बैठे-बैठे न केवल मीलों दूर रहने वाले लोगों के मन की बात जान लेते थे, वरन दूरदर्शन, दूरश्रवण से उन्हें आशीर्वाद व स्वास्थ्य लाभ भी दे देते थे। वैदिक ऋषि इस ध्यान धारणा के अनूठे विज्ञान के बल पर स्वयं को विराट ईश्वरीय चेतना में घुलाकर परमानंद और मोक्ष के महानतम लाभ प्राप्त किया करते थे।

महर्षि पतंजलि के योगदर्शन में उल्लेख है कि जिस प्रकार कोई नदी जब समुद्र में मिलती है तो कुछ दूर उसका प्रवाह अलग सा प्रतीत होता है किंतु थोड़ी ही देर में नदी का अस्तित्व समुद्र में इस तरह विलीन हो जाता है कि उसके स्वतंत्र अस्तित्व का कुछ भान ही नहीं होता। ठीक उसी प्रकार जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति, वस्तु या देश का ध्यान करता है तो ध्येय के अवलंब के ज्ञान में ध्यान करने वाले के चित्त का लय हो जाता है अर्थात दोनों की अनुभूतियां एक हो जाती हैं। ऐसा स्थिति में पृथक होते हुए भी एकत्व का ज्ञान ही उन सब सिद्धियों का कारण है जो ध्यान योग से प्राप्त होती हैं। एक की मानसिक चेतना प्रवाहित होकर दूसरे का मानसिक चेतना में विलय कर देने का नाम ही ध्यान है और सिद्धियां उसकी विभिन्न विधाएं हैं। यह विलय की पद्धति जितनी अधिक एकाग्र होगी, तन्मयता जितनी बढ़ेगी, सादृश्यता का ज्ञान उतना ही स्पष्ट होता चला जाएगा।