Surya Grahan 2023: वैदिक ज्योतिष अनुसार जब भी कोई ग्रहण पड़ता है तो उससे पहले सूतक काल शुरू हो जाता है। सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले सूतक काल (अशुभ अवधि) लग जाता है। वहीं चंद्र ग्रहण में सूतक काल की अवधि 9 घंटे की होती है। इस समय पूजा- पाठ, खान-पीना नहीं किया जाता है। मान्यता है कि अगर सूतक काल से पहले खाना बन चुका है। तो उसमें तो तुलसी के पत्ते या कुशा डालकर रख दें। ऐसे में यहां हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर सूतक और पातक क्या हैं और ये कब-कब लागू होते हैं। साथ ही मानव जीवन पर इनका क्या प्रभाव पड़ता है। आइए जानते हैं…

क्या है सूतक काल 

वैदिक ज्योतिष अनुसार सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के अलावा जब किसी बच्चे का जन्म होता है, तो सूतक लग जाते हैं। इस समय भगवान को स्पर्श नहीं किया जाता है। साथ ही किसी धार्मिक गतिविधियों में शामिल नहीं होते हैं। हां तक कि छटी के पूजन तक घर की रसोई बच्चे की मां का जाना वर्जित होता है। वहीं सूर्य और चंद्र ग्रहण के सूतक काल में मंंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं और जब ग्रहण खत्म हो जाता है। तो मंदिर के शुद्धिकरण के बाद ही कपाट खोले जाते हैं। वहीं सूतक ग्रहण के सूतक काल में लोगों को भगवान का मन ही मन में भजन करना चाहिए। वहीं अगर आप सूतक काल का पालन नहीं करते हैं तो आपके जीवन में दरिद्रता फैल सकती है। साथ ही आपको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है।

क्या है पातक काल

गरुड़ पुराण में वर्णन मिलता है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उस घर में पातक लग जाता है। स्त्री की मृत्यु पर पातक 12 और पुरुष की मृत्यु होने पर पातक 13 दिन तक लगता है। इस दौरान भगवान को स्पर्श करने की मनाही होती है। साथ ही रसोई में जाने या कुछ पकाने की मनाही होती है।

आपको बता दें कि किसी भी व्यक्ति की मत्यु होती है, उससे जो अशुद्धि फैलती है इस वजह से पातक लगता है। वहीं जब घर के सदस्य पवित्र नदी में स्नान और ब्राह्मण को भोज कराने के बाद ही पातक काल समाप्त होता है। वहीं शास्त्रों में तो यहां तक वर्णन मिलता है कि स्त्री के गर्भपात और पालतु जानवर की मृत्यु पर भी पातक काल को मानना चाहिए। वहीं जो लोग पातक काल का पालन नहीं करते हैं और शास्त्र विरुद्ध जाते हैं, उनको जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

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