पूनम नेगी
श्रावणी रक्षाबंधन ऐसा वैदिक पर्व है जिसका दिव्य तत्वदर्शन आज के संदर्भ में पहले से अधिक प्रासंगिक है। इसे जीवन मूल्यों की रक्षा के संकल्प पर्व के रूप में मनाया जाता है क्योंकि उन्नत जीवन मूल्य ही सुखी एवं समृद्ध जीवन की आधारशिला रख सकते हैं। वैदिक भारत का समाज यदि आज की अपेक्षा अधिक व्यवस्थित एवं अनुशासित था तो इसका मूल कारण था कि श्रावणी जैसे पर्वों का होना।
पौराणिक आख्यान है कि श्रावणी पर्व पर परम ब्रह्म का ‘एकोहं बहुस्यामं’ का संकल्प फलित हुआ था। जगत पालक श्रीहरि की नाभि से कमलनाल निकली और उसमें से कमल पुष्प विकसित हुआ। फिर उस पर सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा प्रकट हुए जिन्होंने विश्व ब्रह्माण्ड का सृजन किया। वैदिक मनीषियों के अनुसार, श्रावणी पर्व के तीन मूल पक्ष हैं- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। इस दिन यज्ञोपवीत धारण कर साधक संकल्पपूर्वक बीते वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पापकर्मों का प्रायश्चित्त करता है।
कारण कि भारतीय संस्कृति में यज्ञोपवीत धारण को आत्मसंयम का संस्कार माना गया है। इस संस्कार का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति आत्मसंयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म लेकर द्विज कहला सकता है। उपाकर्म का तीसरा पक्ष स्वाध्याय का है जिसकी शुरुआत वैदिक मंत्रों की यज्ञाहुतियों के साथ होती है और साधक को स्वाध्याय और सुसंस्कारों के विकास के लिए प्रेरित करती है। इस दिन गुरु अपने शिष्य की उज्ज्वल भविष्य एवं संकट से रक्षा हेतु रक्षा सूत्र बांधते हैं। श्रावणी उपाकर्म के इस विधान को जीवनशोधन की एक अति महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक-आध्यात्मिक प्रक्रिया माना जा सकता है।
इस पर्व पर की जाने वाली इन शुभ क्रियाओं का यह मूल भाव बीते समय में मनुष्य से हुए ज्ञात-अज्ञात बुरे कर्म का प्रायश्चित करना और भविष्य में अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देना है। श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाई के हाथ पर रक्षा सूत्र बांधकर उसकी दीर्घायु की कामना करती हैं और बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है।
भारतीय समाज में इस पर्व पर रक्षासूत्र ग्रहण करने और प्रतिदान में रक्षा करने संकल्प लेने की सुदीर्ध परंपरा रही है। भारतीय संस्कृति का प्रमुख पर्व रक्षाबंधन प्राचीन काल में देश, राष्ट्र, जीवों व वृक्ष-वनस्पतियों की रक्षा से भी जुड़ा है। इस दिन लोग वृक्षों को राखी बांधकर पर्यावरण रक्षा का संकल्प लेते हैं। रक्षा करने का यह भाव मनुष्य जीवन को ऊर्जस्वित करता है। रक्षा का संकल्प लेने वाला व्यक्ति भले ही शारीरिक रूप से कमजोर हो, लेकिन इस संकल्पबल के कारण वह अंतस की ऊर्जा से ओत-प्रोत हो जाता है।
इस पर्व पर जिन धागों के जरिए बहन भाई की रक्षासूत्र बांधकर उससे अपनी रक्षा करने का वचन लेती है, वह देखने में भले ही साधारण लगता हो लेकिन इसमें आत्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा के साथ ही समग्र मानवता की रक्षा का गहरा संकल्प भी निहित है। आज की परिस्थितियों में रक्षाबंधन के इसी वृहत संकल्प को समझाने की जरूरत है। रक्षाबंधन का पर्व हमें यह याद दिलाता है कि जिस तरह से बहन-भाई से अपनी रक्षा का वचन लेती है, उसी तरह से हर देशवासी को आत्मरक्षा, धर्म व राष्ट्ररक्षा के लिए इस पावन पर्व के अवसर पर संकल्प लेने चाहिए।
प्रथम संकल्प देशधर्म के लिए, दूसरा वैयक्तिक धर्म और तीसरा आत्मरक्षा के निमित्त लेना चाहिए। जब तक इसके गूढ़ार्थ को नहीं समझा जाएगा तब तक रक्षा बंधन बहन द्वारा भाई को रक्षा सूत्र पहनाने और एवज में नेग देने वाला साधारण त्योहार मात्र बनकर रह जाएगा। इस दिन हर देशभक्त व्यक्ति को यह संकल्प लेने की जरूरत है कि वे देश धर्म व स्त्री जाति की रक्षा के लिए अपने कर्तव्यों का निरंतर पालन करेंगे।