पूरे भारतवर्ष में वाल्मीकि जयंती श्रद्धा-भक्ति एवं हर्षोल्लास से मनाई जाती हैं। वाल्मीकि मंदिरों में श्रद्धालु आकर उनकी पूजा करते हैं। इस शुभावसर पर उनकी शोभा यात्रा भी निकली जाती हैं जिनमें झांकियों के साथ भक्तगण उनकी भक्ति में नाचते, गाते और झूमते हुए आगे बढ़ते हैं। इस अवसर पर ना केवल महर्षि वाल्मीकि बल्कि श्रीराम के भी भजन भी गाए जाते हैं। महर्षि वाल्मीकि ने अपनी विख्यात रचना महाग्रंथ रामायण के सहारे प्रेम, तप, त्याग इत्यादि दर्शाते हुए हर मनुष्य को सद्भावना के पथ पर चलने के लिए मार्गदर्शन दिया है। इसलिए उनका ये दिन एक पर्व के रुप में मनाया जाता है। महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर में हुआ। महर्षि वाल्मीकि के भाई महर्षि भृगु भी परम ज्ञानी थे। महर्षि वाल्मीकि का नाम उनके कड़े तप के कारण पड़ा था। एक समय ध्यान में मग्न वाल्मीकि के शरीर के चारों ओर दीमकों ने अपना घर बना लिया। जब वाल्मीकि जी की साधना पूरी हुई तो वो दीमकों के घर से बाहर निकले। दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता हैं इसलिए ही महर्षि भी वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
एक बार महर्षि वाल्मीक एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि एक बहेलिये ने कामरत क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ाः
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥’
एक पौराणिक कथा के अनुसार वाल्मीकि महर्षि बनने से पूर्व उनका नाम रत्नाकर था। एक बार रत्नाकर जंगलों में भटक रहे थे तो उनकी मुलाकात नारद मुनि से हुई। नारद मुनि से मिलने के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वो उनके चरणों में गिर गए और अबतक अज्ञानी रहने के लिए क्षमा मांगी। इसके बाद नारद मुनि ने उन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया और उन्हें परामर्श दिया कि वह राम-राम का जाप करें। राम नाम जपते-जपते ही रत्नाकर महर्षि बन गए और आगे जाकर महान महर्षि वाल्मीकि के नाम से विख्यात हुए। इन व्हॉट्सऐप, फेसबुक और एसएमएस के द्वारा अपने प्रियजनों को जरुर दें इस शुभ दिन की बधाई।
कर दिया महा चमत्कार अपने निर-गुण बालक का कर दिया जीवन उद्धार,
गुरु जी के चरणों में मेरा बार-बार प्रणाम।
वाल्मिकी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।।
रमायण के रचयिता को प्रणाम,
संस्कृत के आदि-कवि को प्रणाम।
वाल्मिकी जयंती की शुभकामनाएं।।
इस पर्व पर हमारी दुआ है कि
आपका पर सपना हो जाए पूरा,
दुनिया के ऊंचें मुकाम आपके होंष
हैप्पी वाल्मिकी जयंती 2017।।
रामायण के है जो रचयिता
संस्कृत के हैं जो कवि महान
ऐसे हमारे पूज्य गुरुवर
उनके चरणों में हमारा प्रणाम।
वाल्मिकी जयंती की शुभकामनाएं।।
राम-सीता हैं मेरे पूज्य प्रभु
इनके चरणों में करुं मैं नमस्कार
जब भी हो नया सुनहरा सवेरा
राम-राम नाम जपूं मैं बार-बार।
वाल्मिकी जयंती की शुभकामनाएं।।
अब कैसे छूटे राम, नाम रट लागी |
प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी,
जाकी अंग अंग बास समानि |
प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा,
जैसे चितवत चन्द चकोरा |
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती,
जाकी जोति बरै दिन राती |
प्रभु जी तुम मोती हम धागा,
जैसे सोने मिलत सुहागा |
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा,
ऐसी भक्ति करै रैदासा |
सभी राम भक्तों को वाल्मिकी जयंती की शुभकामनाएं।।
महर्षि वाल्मीकि जी ने लिखी
कथा श्री राम जी की
हमको बताई ऋषिवर ने
बातें महापुराण रामायण की।
वाल्मिकी जयंती की शुभकामनाएं।।