मोहम्मद पैगम्बर के नवासी इमाम हुसैन की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। यह कोई त्योहार नहीं बल्कि मातम का दिन है। इमाम हुसैन अल्लाह के रसूल पैगंबर मोहम्मद के नाती थे। यह हिजरी संवत का प्रथम महीना है। मुहर्रम एक ऐसा महीना है, जिसमें शिया मुस्लिम दस दिन तक इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं। इस्लाम की तारीख में पूरी दुनिया के मुसलमानों का प्रमुख नेता यानी खलीफा चुनने का रिवाज रहा है। ऐसे में पैगंबर मोहम्मद के बाद चार खलीफा चुने गए। लोग आपस में तय करके किसी योग्य व्यक्ति को प्रशासन, सुरक्षा इत्यादि के लिए खलीफा चुनते थे। जिन लोगों ने हजरत अली को अपना इमाम और खलीफा चुना, वे शियाने अली यानी शिया कहलाते हैं। इसके बाद इसे जंग में शहीद को दी जाने वाली शहादत के जश्न के रुप में मनाया जाता है और तजिया सजाकर इसे जाहिर किया जाता है। इन दस दिनों को आशुरा कहा जाता है। इन दस दिनों में सुन्नी समुदाय के लोग रोजा रखते हैं और शिया समुदाय के लोग काले कपडे़ पहनते हैं। इस दिन लोग तजिया निकालते हैं।

मुहर्रम शब्द में से हरम का मतलब होता है किसी चीज पर पाबंदी और ये मुस्लिम समाज में बहुत महत्व रखता है। मुहर्रम की तारीख हर साल बदलती रहती है, क्योंकि इस्लाम का कैलेंडर एक लूनर कैलेंडर होता है। इस साल मुहर्रम महीने की शुरुआत 21 सितंबर से लेकर 19 अक्टूबर तक रहेगी। मुहर्रम को एक विशेष दिन सभी मुस्लिम शोक मनाते हैं। ये दिन मुहर्रम महीने का 10 वां दिन होता है। इस दिन से इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत होती है।

करीब अल्लाह के आओ तो कोई बात बने,
ईमान फिर से जगाओ तो कोई बात बने,
लहू जो बह गया कर्बला में,
उनके मकसद को समझो तो कोई बात बने।

क्या जलवा कर्बला में दिखाया हुसैन ने,
सजदे में जा कर सिर कटाया हुसैन ने,
नेजे पे सिर था और ज़ुबान पे अय्यातें,
कुरान इस तरह सुनाया हुसैन ने।

सिर गैर के आगे ना झुकाने वाला,
और नेजे पे भी कुरान सुनाने वाला,
इस्लाम से क्या पूछते हो कौन हुसैन,
हुसैन है इस्लाम को इस्लाम बनाने वाला।

आंखों को कोई ख्वाब तो दिखायी दे,
ताबीर में इमाम का जलवा दिखायी दे,
ए! इब्न-ऐ-मुर्तजा,
सूरज भी एक छोटा सा जरा दिखायी दे।

न हिला पाया वो रब की मैहर को,
भले जात गया वो कायर जंग
पर जो मौला के दर पर बैखोफ शहीद हुआ
वही था असली और सच्चा पैगम्बर।