Maa Brahmacharini Puja Vidhi Aarti Timings: नवरात्रि में मां दुर्गा नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। वहीं आज (16 अक्टूबर) को शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन है और आज ब्रह्मचारिणी की पूजा- अर्चना की जाती है। देवी के इस रूप को माता पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है। इसके अलावा मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। वहीं ब्रह्मचारिणी देवी की आराधना करने से भक्त के तप की शक्ति में वृद्धि होती है। साथ ही  इस दिन उन कन्याओं की पूजा की जाती है जिनकी शादी तय हो गई है लेकिन अभी शादी हुई ना हो। इन कन्याओं को भोजन और वस्त्र और दान-दक्षिणा दी जाती है। माता रानी के स्वरूप की बात करें तो शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र धारण किए हैं और दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए सुशोभित हैं। आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी कौन हैं और इनकी पूजा का क्या महत्व है…

इन चीजों का लगाएं भोग

भक्तों को मां ब्रह्मचारिणी को भोग जरूर लगाना चाहिए और यह भोग चीनी का लगाना चाहिए। साथ ही ब्राह्मण या जरूरतमंद को दान में भी चीनी ही देनी चाहिए। मान्यता है ऐसा करने से सभी मनोरथ पूर्ण होती है और घर में माता के आशीर्वाद से सुख- समृद्धि का सदैव वास रहता है।

जानिए पूजा- विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नान कर लें। साथ ही साफ सुखरे वस्त्र धारण कर लें। वहीं मांं ब्रह्मचारिणी का फोटो या चित्र स्थापित करें। वहीं अगर मांं ब्रह्मचारिणी का फोटो नहीं है तो आप नवदुर्गा मां का चित्र रख सकते हैं। इसके बाद दीव प्रज्वलित करें। इसके बाद मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें। वहीं प्रसाद में फल और मिठाई चढ़ाएं। इसके बाद धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा, सप्तशती का पाठ करें और फिर मां की आरती करें। साथ ही देवी को अरूहूल का फूल (लाल रंग का एक विशेष फूल) व कमल काफी पसंद है, उसकी माला पहनायें।

इन मंत्रों से करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा- अर्चना:

ंां ब्रह्मचारिणी का ध्यान

वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥

परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

मां ब्रह्मचारिणी का स्तोत्र पाठ

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति- मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥

मां ब्रह्मचारिणी का कवच

त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥

पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।

अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।

अंत में क्षमा प्रार्थना करें “आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी” ।

यह भी पढ़ें:

मेष राशि का 2023 से 2030 का वर्षफलवृष राशि का 2023 से 2030 का वर्षफल
मिथुन राशि का 2023 से 2030 का वर्षफलकर्क राशि का 2023 से 2030 का वर्षफल
सिंह राशि का 2023 से 2030 का वर्षफलकन्या राशि का 2023 से 2030 का वर्षफल
तुला राशि का 2023 से 2030 का वर्षफलवृश्चिक राशि का 2023 से 2030 का वर्षफल
धनु राशि का 2023 से 2030 का वर्षफलमकर राशि का 2023 से 2030 का वर्षफल
कुंभ राशि का 2023 से 2030 का वर्षफलमीन राशि का 2023 से 2030 का वर्षफल