Sharad Purnima 2025 Vrat Katha, Kahani, Story in Hindi: सनातन  धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। वैदिक पंचांग के अनुसार हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इसे कोजागिरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन स्नान दान के साथ-साथ मां लक्ष्मी और मां अन्नपूर्णा की पूजा करने का विधान है। इसके अलावा विष्णु जी और चंद्रमा की भी पूजा की जाती है। इस साल शरद पूर्णिमा का पर्व 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा। वहीं इस दिन पूजा के समय व्रत कथा पढ़ना जरूरी माना जाता है वर्ना पूजा अधूरी माना जाती है। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा और कोजागिरी पूर्णिमा की व्रत कथा…

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इस समय रखें चंद्रमा के नीचे खीर

पंचांग के अनुसार, 6 अक्टूबर को रात 10.38 बजे से लेकर रात 12.08 बजे तक लाभ-उन्नति मुहूर्त रहने वाला है। लेकिन इस बीच रात 10.53 बजे तक भद्रा भी रहेगा. इसलिए आप भद्रा काल से बचते हुए उन्नति मुहूर्त में किसी भी समय खीर रख सकते हैं।

शरण पूर्णिमा तिथि 2025 (Sharad Purnima Tithi 2025)

वैदिक पंचांग के मुताबिक आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि 6 अक्टूबर को दोपहर में 12 बजकर 23 मिनट पर आरंभ होगी। साथ ही इसका समापन 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 19 मिनट पर होगा। ऐसे में शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। 

शरद पूर्णिमा कथा (Sharad Purnima Katha In Hindi)

पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था। उसकी दो पुत्रियां थी। उसकी बड़ी पुत्री हर पूर्णिमा का व्रत किया करती थी। जबकि छोटी बेटी चंचल मन होने की वजह से कभी भी व्रत पूरा नहीं कर पाती थी। दोनों के जवान होने पर ब्राह्मण ने दोनों का विवाह कर दिया। कुछ समय के बाद बड़ी बहन को एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति होती है। लेकिन छोटी बहन के कोई संतान नहीं हो पाती है। इसके साथ ही उसके पति के कामकाज पर भी बुरा असर पड़ रहा था। ससुराल वालों को जब समझ नहीं आ पाता है कि इस बुरे माहौल की क्या वजह है? तब वह घर में ज्योतिष को बुलाकर पूछते हैं इसकी वजह क्या है? तब ज्योतिष बताते हैं कि इन सब की वजह पूर्णिमा व्रत का पूरा न रखना और अधूरा छोड़ना है। जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। अगर आप पूर्णिमा का व्रत पूरा करेगी, तो आपकी संतान मरेगी नहीं। इस बात को छोटी बहन से अच्छे समय समझ लिया। ऐसे में उसने पूर्णिमा का व्रत किया। लेकिन अगली बार भी जब उसे संतान हुई थी, तो उसकी मृत्यु हो गई।

अपनी बहन से मिलने के बड़ी बहन आई। ऐसे में छोटी बहन से एक पाटा में अपनी मरी संतान को रखकर कपड़े से ढक दिया और उसी के ऊपर अपनी बहन को बैठने के लिए कहा। जैसे ही बड़ी बहन उसमें बैठने की हुई, तो उसका वस्त्र बच्चे को छु गया और वह तुरंत ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने छोटी बहन से कहा कि अच्छा मेरे नीचे रखकर मेरे ऊपर तू अपनी संतान की मौत का लांछन लगाना चाहती थी। इस पर छोटी बहन से कहा कि बहन मेरी संतान पहले ही मर चुकी थी। लेकिन तेरे पुण्य से वह दोबारा जीवित हो गई है। इसके साथ ही छोटी बहन ने पूर्णिमा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया और वह हर साल इस व्रत को विधिवत तरीके से पूरा करने लगी। 

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