Remedies for Shani Sadesati And Dhayiya: वैदिक ज्योतिष में शनि देव को न्याय प्रदाता और कर्मफल दाता कहा जाता है और लोग शनि देव को अपने- अपने अनुसार पूजा करके प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। आपको बता दें कि शनि देव व्यक्ति को कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। वहीं शनि देव की साढ़ेसाती और ढैय्या का काल हर व्यक्ति के जीवन में जरूर आता है। जिसमें शनि देव मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से व्यक्ति को परेशान करते हैं। ऐसे में यहां हम बात करने जा रहे हैं दशरथकृत शनि स्तोत्र के बारे में, जिसको करने से शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती के मुक्ति पाई जा सकती है। आइए जानते हैं इस स्त्रोत के बारे में और इसको करने की सही विधि…

शनि स्तोत्र पाठ की विधि (Shani Stotra Paath Ki Vidhi)

इस दिन सुबह स्नान करके, साफ सुथरे वस्त्र धारण करें। उनके बाद पूजा की चौकी पर एक काले रंग का कपड़ा बिछाएं और शनि देव के चित्र या मूर्ति को स्थापित करें। इसके बार धूप या अगरबत्ती जलाएं। साथ ही सरसों के तेल का दीपक जलाएं। फिर दशरथकृत शनि स्तोत्र का सच्चे मन से पाठ करें। पाठ करने के बाद ॐ प्रां प्रीं प्रौं स शनैश्चराय नम: का जाप करें। इसके बाद शनि देव को प्रणाम करें। साथ ही अपनी मनोकामना मन में बोलें। वहीं अंत कुष्ठ रोगी या गरीबों को काले चने और दक्षिणा दें। ऐसा करने से आपको शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त होगा और साढ़ेसाती, ढैय्या के अशुभ प्रभाव में कमी आएगी।

दशरथकृत शनि स्तोत्र (Dashrathkrit Shani Stotra/ Shani Stotra)
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।

देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।

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