अंगारकी संकष्टी चतुर्थी 2022: वैदिक पंचांग के मुताबिक, वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें कि हर माह दो चतुर्थी पड़ती है पहली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी जिसे संकष्टी गणेश चतुर्थी कहते हैं वहीं दूसरी शुक्ल पक्ष की संकष्टी जिसे विनायकी गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें कि इस बार संकष्टी गणेश चतुर्थी 19 अप्रैल मंगलवार को पड़ रही है। मंगलवार के दिन पड़ने के कारण इसे अंगारकी गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन श्रीगणेश की पूजा- अर्चना करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख- शांति का वास होता है। जानिए पूजा विधि, महत्व, कथा और सभी जरूरी जानकारी…
संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त
- चतुर्थी तिथि का प्रारंभ – 19 अप्रैल, मंगलवार- शाम 04 बजकर 39 मिनट पर
 - चतुर्थी तिथि का समापन– 20 अप्रैल दोपहर 01 बजकर 53 मिनट तक
 - चंद्रोदय का समय– रात 09 बजकर 50 मिनट पर
 - अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक।
 
संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व:
मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से भगवान गणेश प्रसन्न हो जाते हैं। वहीं हर मांगलिक और धार्मिक पूजा करने से पहले गणेश जी का स्मरण किया जाता है। साथ ही भगवान गणेश को मांगलिक कार्यों के लिए याद किया जाता है। माना जाता है कि जिन लोगों के घर में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं या जिनकी संतान का विवाह नहीं हो पा रहा है। उन्हें संकष्टी चतुर्थी का व्रत कर भगवान गणेश को प्रसन्न करना चाहिए। भगवान गणेश को शुभता का कारक माना जाता है। इसलिए कहते हैं कि उनका व्रत करने से घर-परिवार में शुभता का वास होता है। साथ ही जिन लोगों का व्यापार ठीक से नहीं चल रहा हो, वो लोग भी इस दिन व्रत रखकर गणेश जी को 4 बेसन के लड्डुओं का भोग लगाएं। ऐसा करने से व्यापार में तरक्की होने लगेगी।
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि:
इस दिन लोग उपवास रखकर भगवान गणेश जी को प्रसन्न कर अपने मनचाहे फल की कामना करते हैं। इस दिन पूजा से पहले आप प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठ जाएं। व्रत करने वाले लोग इस दिन लाल रंग का वस्त्र धारण करें, यह बेहद शुभ माना जाता है और साथ में यह भी कहा जाता है कि ऐसा करने से व्रत सफल होता है। इसके बाद गणपति की पूजा करते समय जातक को अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए। गणपति की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें। पूजा में आप तिल, गुड़, लड्डू, फूल ताम्बे के कलश में पानी, धूप, चन्दन, प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रख लें। गणपति को रोली लगाएं, फूल और जल अर्पित करें और तिल के लड्डू,और बेसन मोदक का भोग लगाएं। साथ ही गणेश जी को दूव घास भी चढ़ाएं। गणपति के सामने धूप-दीप जला कर निम्लिखित मन्त्र का जाप करें।
1- गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
2- वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
3- ॐ श्री गं गणपतये नम: का जाप करें।
शाम के समय चांद के निकलने से पहले संकष्टी व्रत कथा का पाठ कर गणपति की पूजा करें। पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बाटें। रात को चांद देखने के बाद व्रत खोला जाता है और इस प्रकार संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण होता है।
