गौरव मित्तल
29 अगस्त को श्रीराधा अष्टमी है। जन्माष्टमी के पूरे 15 दिन बाद ब्रज के रावल गांव में राधा जी का जन्म हुआ। कहते हैं कि जो राधा अष्टमी का व्रत नहीं रखता, उसे जन्माष्टमी व्रत का फल नहीं मिलता। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाष्टमी व्रत रखा जाता है। पुराणों में राधा-रुक्मिणी को एक ही माना जाता है। जो लोग राधा अष्टमी के दिन राधा जी की उपासना करते हैं, उनका घर धन संपदा से सदा भरा रहता है। राधा अष्टमी के दिन ही महालक्ष्मी व्रत का आरंभ होता है।
पुराणों के अनुसार राधा अष्टमी
स्कंद पुराण के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। इसी कारण भक्तजन सीधी-साधी भाषा में उन्हें ‘राधारमण’ कहकर पुकारते हैं। पद्म पुराण में ‘परमानंद’ रस को ही राधा-कृष्ण का युगल-स्वरूप माना गया है। इनकी आराधना के बिना जीव परमानंद का अनुभव नहीं कर सकता। भविष्य पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण पृथ्वी पर अवतरित हुए, तब भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन महाराज वृषभानु की पत्नी कीर्ति के यहां भगवती राधा अवतरित हुई। तब से भाद्रपद शुक्ल अष्टमी ‘राधाष्टमी’ के नाम से विख्यात हो गई।
नारद पुराण के अनुसार ‘राधाष्टमी’ का व्रत करने वाला भक्त ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेता है। पद्म पुराण में सत्यतपा मुनि सुभद्रा गोपी प्रसंग में राधा नाम का स्पष्ट उल्लेख है। राधा और कृष्ण को ‘युगल सरकार’ की संज्ञा तो कई जगह दी गई है। राधाष्टमी आज के दिन अपने जीवनसाथी को इत्र या कुछ भी सुगन्धित वस्तु उपहार में दें और जोड़े से राधा-कृष्ण मंदिर में दर्शन करें। इससे वैवाहिक जीवन में आने वाली सारी बाधाएं दूर होकर सुख-शांति, सौभाग्य एवं प्रेम बढ़ता है।
घर में सदैव आर्थिक परेशानी रहती है?
जिन लोगों के घर में सदैव आर्थिक परेशानी रहती है, उनके लिए भाद्र शुक्ल अष्टमी (29 अगस्त 2017 मंगलवार) के दिन से लेकर आश्विन कृष्ण अष्टमी, 13 सितम्बर 2017 बुधवार तक महालक्ष्मी माता का पूजन विधान बताया गया है। इस विधान के अनुसार, 17 दिनों में नित्य प्रात: लक्ष्मी माता का सुमिरन करते हुए – ॐ लक्ष्मयै नम: ॐ लक्ष्मयै नम: ॐ लक्ष्मयै नम: मंत्र का 16 बार प्रति दिन जप करें और रात को चन्द्रमा को अर्घ्य (कच्चे दूध से, फिर पानी से) दे तो उस के घर में लक्ष्मी बढती जाती है। लक्ष्मीमाता का पूजन करते हुए नीचे लिखे श्लोक पाठ करें। ‘धनं धान्यं धराम हरम्यम, कीर्तिम आयुर्यश: श्रीयं,’ ‘दुर्गां दंतीन: पुत्रां, महालक्ष्मी प्रयच्छ मे ‘ “ॐ श्री महालक्ष्मये नमः” “ॐ श्री महालक्ष्मये नमः”