रावण को बुराइयों का प्रतीक माना जाता है। दशहरे के दिन रावण के पुतले को जलाने का विधान है। इस पुतले के जलने के साथ ही बुराइयों का अंत हो जाने की मान्यता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में रावण की अलग-अलग रूपों में पूजा की जाती है? जी हां, मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में रावण को पूजने का परंपरा काफी लंबे समय से चली आ रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक मध्य प्रदेश के मंदसौर कस्बे के खानपुरा इलाके में रावण की पूजा की जाती है। यहां पर रावण की एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है। इस जगह को ‘रावण रुंडी’ के नाम से पुकार जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि मंदसौर का प्राचीन नाम ‘दशपुर’ था। दशपुर को रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका बताया जाता है। इस वजह से नामदेव समुदाय के लोग रावण को ‘मंदसौर का दामाद’ मानते हैं। मध्य प्रेदश के विदिशा जिले में रावण गांव में दशानन का मंदिर है। यहां पर रावण की एक लेटी हुई प्रतिमा पड़ी हुई है। यहां के लोग रावण को ‘रावण बाबा’ के रूप में पूजते हैं। मालूम हो कि इंदौर में इन रावण भक्तों का एक संगठन भी है। इस संगठन के अध्यक्ष महेश गौहर ने मीडिया से बातचीत में इसे लेकर कई सारी जानकारियां दी हैं।

गौहर का कहना है कि करीब पांच दशक से दशहरे को रावण मोक्ष दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि इस संगठन के लोग दूसरों से इस बात की अपील करते हैं कि दशहरे इनके आराध्य(रावण) के पुतले को ना जलाया जाए। टाइम्स नॉउ के मुताबिक गौहर का कहा है कि रावण भगवान शिव के परम भक्त और प्रकांड विद्वान थे। इसलिए वह हमारे आराध्य हैं। उनका यह भी कहना है कि उनके संगठन ने शहर के परदेशीपुरा क्षेत्र में रावण का मंदिर भी बनवाया है। साथ ही, ‘रावण चालीसा’ और ‘रावण महाआरती’ की रचना भी कराई गई है।