ज्योतिष पीठ और द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को समाधि देने से पहले ही उनके उत्तराधिकारियों के तौर पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ बद्रिकाश्रम उत्तराखंड और स्वामी सदानंद को द्वारका शारदा पीठ का शंकराचार्य घोषित किया और इसी के साथ दोनों पीठों के शंकराचार्य के उत्तराधिकारी को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया है।

अखाड़ा परिषद ने नए शंकराचार्य पर उठाए सवाल

ज्योतिषपीठ और द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद उनके शिष्य स्वामी सुबुद्धानंद ने उनकी वसीयत के अनुसार ज्योतिष पीठ उत्तराखंड पर उनके शिष्य स्वामी अविमुकतेश्वरानंद और द्वारका पीठ के लिए स्वामी सदानंद को शंकराचार्य घोषित कर दिया था। जिससे दशनामी संन्यासी अखाड़े नाराज हो गए हैं और इस नियुक्ति को नियम विरुद्ध बता रहे है।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी के रूप में इन दोनों संतों को दोनों पीठों के शंकराचार्य मानने से साफ इनकार कर दिया है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं श्री निरंजनी पंचायती अखाड़े के सचिव महंत रवींद्र पुरी महाराज का कहना है कि शंकराचार्य की नियुक्ति की एक प्रक्रिया होती है और संन्यासी अखाड़ों की सहमति के बाद काशी विद्वत परिषद शंकराचार्य की नियुक्ति करती है।

आदि जगतगुरू शंकराचार्य द्वारा रचित ‘मठाम्नाय ग्रंथ’ के अनुसार ही मठों के शंकराचार्य घोषित किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद तथा दशनामी संन्यासी अखाड़े दोनों को शंकराचार्य नहीं मानते है। अखाड़ा परिषद ने तय किया है कि वे जल्दी ही सभी सात दशनामी संन्यासी अखाड़ों की एक संयुक्त बैठक कर दोनों मठों के शंकराचार्य बनाने की प्रक्रिया शुरू करेंगे और विधिवत रूप से आदि जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित मठाम्नाय ग्रंथ के अनुसार इन दोनों पीठो पर नए शंकराचार्य आसीन किए जाएंगे।

उन्होंने कहा कि वैसे भी ज्योतिषपीठ पर शंकराचार्य का विवाद सुप्रीम कोर्ट में लंबित है ऐसे में आखिरकार इतनी जल्दबाजी में दोनों को क्यों गुपचुप रूप से शंकराचार्य नियुक्त किया गया। उन्होंने कहा कि ज्योतिषपीठ दशनामी संन्यासियों में से ही संन्यासी पीठ पर नियुक्त किया जाता है। ऐसे में स्वामी अविमुकतेश्वरानंद की नियुक्ति अवैध है।

उधर ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के मठ का कहना है कि शंकराचार्य के ब्रह्मलीन होने के बाद विधि-विधान के साथ दोनों पीठों पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की वसीयत के मुताबिक उनके दोनों शिष्यों अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ बद्रीनाथ और स्वामी सदानंद को द्वारका पीठ का शंकराचार्य नियुक्त किया गया और इस अवसर पर एक अन्य पीठ के शंकराचार्य भी उपस्थित थे।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज के शिष्य मुकुंदानंद ब्रह्मचारी का कहना है कि 17 अक्टूबर को ज्योतिष पीठ बद्रिकाश्रम में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का अभिषेक तीनों पीठों के शंकराचार्य सामूहिक रूप से करेंगे और सभी संत समाज हमारे साथ हैं और इसको लेकर कोई विवाद नहीं है।

आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने की थी चार मठों की स्थापना

आदि जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा करीब 2500 साल पहले दशनामी संन्यासी परंपरा की शुरुआत की गई थी। सनातन धर्म की पुनर्स्थापना का बीड़ा जगतगुरु शंकराचार्य ने उठाया था। आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने मठाम्नाय ग्रंथ की रचना की। उसी के अनुसार, शंकराचार्य बनने के लिए संन्यासी होना आवश्यक है। संन्यासी बनने के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग, मुंडन, पूर्वजों का श्राद्ध, स्वयं का पिंडदान, गेरुआ वस्त्र, विभूति, रुद्राक्ष की माला को धारण करना अनिवार्य होता है।

आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने भारत की पूर्व ओड़ीशा में गोवर्द्धन मठ (पुरी), पश्चिम गुजरात में शारदा मठ (द्वारिका), उत्तर उत्तराखंड में ज्योतिर्मठ (बद्रिकाश्रम) और दक्षिण रामेश्वर में श्रृंगेरी मठ स्थापना की थी और साथ ही इन मठों की रक्षा के लिए दशनामी संन्यासी अखाड़े भी बनाए थे। सदियों से इन अखाड़ों में अलग-अलग मठों के लिए दशनामी संन्यासी भी तैयार किए जाते हैं।

आदि शंकराचार्य ने इन पीठों की बागडोर अपने उन शिष्यों को सौंपी थी, जिनसे उन्होंने स्वयं शास्त्रार्थ किया था। और इसी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए आगे चलकर काशी मे विद्वत परिषद गठित की गई और इस तरह विद्वत परिषद ,चारों मठों के शंकराचार्य तथा दशनामी संन्यासी अखाड़े मिलजुल कर और विमर्श के बाद नए शंकराचार्य नियुक्त करते हैं।