भारत सहित दुनिया के कुछ और देशों में स्थित पचास से भी अधिक शक्तिपीठों को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के मुताबिक आदि शक्ति के रूप में सती ने भगवान शंकर से विवाह किया था। सती के पिता इस विवाह से प्रसन्न नहीं थे। सती के पिता का नाम दक्ष था। दक्ष ने एक बार एक बड़े से यज्ञ का आयोजन कराया। इस यज्ञ के लिए सभी देवताओं को आमंत्रण दिया गया। लेकिन उन्होंने अपनी बेटी सती को आमंत्रित नहीं किया। हालांकि सती बिना बुलाए ही इस यज्ञ में हिस्सा लेने चली आईं। इस पर दक्ष को काफी क्रोध आया और वह सती के पति यानी कि शिव जी के बारे में अमानजनक बातें करने लगे।

सती अपने पिता के मुख से अपने पति के लिए ऐसी अपमानजनक बातें सहन नहीं कर पाईं। कहते हैं कि सती ने सशरीर यज्ञाग्नि में स्वंय को समर्पित कर दिया। यह समाचार पाते ही शिव जी बहुत दुखी और क्रोधित हुए। शिव ने सती के शरीर को उठाकर विनाश नृत्य करना आरंभ कर दिया। शिव जी के विनाश नृत्य ने सभी को हिलाकर रख दिखा। देवतगण शिव के इस नृत्य को रोकने के बारे में विचार करने लगे। देवतागण को यह लगा कि विष्णु जी ही इस नृत्य को रोक सकते हैं।

विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल कर सती की देह के टुकड़े कर दिए। इससे उनके शरीर के विभिन्न अंग अलग-अलग जगहों पर जा गिरे। बताते हैं कि जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे, वो सभी स्थान शक्तिपीठ बन गए। इन शक्तिपीठों की संख्या के बारे में ग्रंथों में अलग-अलग जानकारियां दी गई हैं। मौटे तौर पर ऐसा माना जाता है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में शक्तिपीठों की संख्या पचास से ज्यादा है। इन शक्तिपीठों का धार्मिक दृष्टिकोण से खास महत्व बताया गया है।