आचार्य रजनीश…यानी ओशो। दार्शनिक और आध्यात्मिक धर्मगुरु। भारत ही नहीं पूरी दुनिया में उनके हजारों फॉलोअर हैं। 11 दिसंबर, 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में जन्में ओशो के बचपन का नाम चंद्रमोहन जैन था। बचपन से ही उनकी दर्शनशास्त्र में रुचि थी। शुरुआती पढ़ाई-लिखाई जबलपुर में की और बाद में जबलपुर यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लगे। यहीं उन्होंंने धर्म और आध्यात्म पर प्रवचन देना शुरू किया। धीरे-धीरे लोग उनसे जुड़ने लगे।
भारत के बाद ओशो अमेरिका पहुंचे। यहां वे तेजी से लोकप्रिय हुए। उनके फॉलोअर्स उन्हें भगवान मानने लगे। लेकिन कई तरह के विवाद भी हुए। ओशो को जेल जाना भी जाना पड़ा और देश से निकाल दिया गया।
अमेरिका से लौटे तो आई स्लो पॉइजन की थ्योरी: अमेरिका से लौटने के बाद ओशो ने दावा किया कि अमेरिकी सरकार ने उन्हें ‘थेलियम’ नाम का स्लो पॉइजन दे दिया है, जिससे वो धीरे-धीरे मौत की तरफ बढ़ रहे हैं। उन्होंंने बताया कि मुझमें ज़हर के लक्षण हैं। मेरे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो गई है।
रहस्यमय तरीके से हुई मौत: ओशो, अमेरिका से लौटने के बाद पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में स्थित अपने आश्रम में रहने लगे। 19 जनवरी 1990 को उनका निधन हो गया। ओशो की मौत कैसे हुई…इसकी साफ-साफ वजह पता नहीं चल पाई। मौत वाले दिन का घटनाक्रम किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं है।
ओशो की मौत वाले दिन क्या हुआ था? पत्रकार अभय वैद्य ने अपनी किताब ‘हू किल्ड ओशो’ में लिखा है कि “19 जनवरी, 1990 को ओशो आश्रम से डॉक्टर गोकुल गोकाणी को किसी शिष्य का फोन आता है। उनसे कहा गया कि वे अपना लेटर हेड और इमरजेंसी किट लेकर आएं।”
बाद में डॉक्टर गोकुल गोकाणी ने बताया था कि “वहां मैं करीब एक बजे पहुंचा। उनके शिष्यों ने बताया कि ओशो देह त्याग रहे हैं, आप उन्हें बचा लीजिए। लेकिन मुझे उनके पास जाने से रोका गया। मैं 4 घंटे तक आश्रम में टहलता रहा। बाद में शिष्यों ने मुझे ओशो के मृत्यु की सूचना दी और कहा गया कि डेथ सर्टिफिकेट जारी कर दें।”
हाथ पर थे उल्टी के छींटे: डॉ. गोकाणी के मुताबिक जब वे अंदर पहुंचे तो ओशो के हाथ-शरीर पर उल्टियों के छींटे पड़े थे। ऐसा लग रहा था कि उनके मरने का इंतजार किया जा रहा हो। उन्होंने अपने हलफनामे में ये भी दावा किया था कि ओशो के शिष्यों ने उन्हें मौत की वजह दिल का दौरा लिखने के लिए प्रेशर बनाया था।
मां को भी नहीं दी गई मौत की खबर: ओशो की मां भी पुण के आश्रम में ही रहा करती थीं। जब ओशो का निधन हुआ तो उनको भी खबर नहीं दी गई। ओशो के आश्रम में किसी संन्यासी की मृत्यु के बाद पूरा उत्सव मनाने का चलन था, लेकिन खुद ओशो की मृत्यु हुई तो घंटे भर के अंदर ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
ओशो की है करोड़ों की वसीयत: ओशो की मौत के बाद एक थ्योरी ये भी आई कि उनकी प्रॉपर्टी और पैसों के लिए जानबूझकर उनकी हत्या की गई। आपको बता दें कि ओशो की मौत के बाद उनकी संपत्ति-विरासत पर ओशो इंटरनेशनल नाम की संस्थाज का नियंत्रण है।
ओशो इंटरनेशन की दलील है कि उन्हें ओशो की विरासत उनके वसीयत से मिली है। बताया जाता है कि आश्रम की संपत्ति हज़ारों करोड़ रुपये की है और किताबों और अन्य चीज़ों से तकरीबन 100 करोड़ रुपये से ज्यादा की रॉयल्टी मिलती है।