Mahakumbh Mela 2025: प्रयागराज महाकुंभ मेले का आगाज 13 जनवरी 2025 से हो गया है और रोज लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां गंगा में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। आपको बता दें कि 114 साल बाद तीर्थनगरी प्रयागराज में पूर्ण कुंभ का दुर्लभ संयोग बना है। वैसे महाकुंभ हर 12 साल पर लगता है और जब 12-12 वर्षों का 12वां चरण पूरा होता है तो उसे पूर्ण कुंभ कहा जाता है। कुंभ मेला हर 12 साल में चार पवित्र स्थलों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक पर आयोजित किया जाता है। आपको बता दें कि कुंभ मेले का आयोजन ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर किया जाता है। कुंभ मेला तब आयोजित होता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक विशिष्ट स्थिति में होते हैं लेकिन जब बृहस्पति वृष राशि में और सूर्य व चंद्रमा अन्य शुभ स्थानों पर होते हैं, तब महाकुंभ का समय बनता है और यह संयोग हर 144 वर्षों में एक बार आता है। इसके साथ ही महाकुंभ पर पूर्णिमा, रवि योग, भद्रावास योग का निर्माण भी होने वाला है, जिसका शुभ असर लोगों पर होगा।
वहीं आपको बता दें कि कुंभ में 13 अखाड़े के साधु- संत शामिल होते हैं और वह ही सबसे स्नान क्रम के अनुसार स्नान करते हैं। वहीं आपको बता दें कि कुंभ में नागा साधु भी शामिल होते हैं। आइए जानते हैं नागा साधु कैसे बनते हैं और वह कुंभ के बाद कहां चले जाते हैं…
कैसे बनते हैं नागा साधु
नागा साधु बनना इतना आसान नहीं होता है। आपको बता दें कि अखाड़ा समिति के द्वारा व्यक्ति को नागा साधु बनाया जाता है। वहीं इसके लिए व्यक्ति को कई तरह की परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इस प्रक्रिया में 6 महीने से लेकर 1 साल तक का समय लग सकता है। इस परीक्षा में सफलता पाने के लिए साधक को 5 गुरु से दीक्षा प्राप्त करनी होती है। शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश द्वारा, जिन्हें पंच देव भी कहा जाता है।
वहीं नागा व्यक्ति को सांसारिक जीवन का त्याग करन पड़ता है। साथ ही वह स्वंय का पिंडदान भी करते हैं। वहीं नागा साधुओं की एक विशेषता यह भी होती है कि वह भिक्षा में प्राप्त भोजन को ही ग्रहण करते हैं। अगर किसी दिन साधु को भोजन नहीं मिलता है, तो उन्हें बिना भोजन के रहना पड़ता है। वहीं नागा साधु शरीर पर कभी वस्त्र धारण नहीं करते हैं वह केवल भस्म लगाते हैं। नागा साधु समाज के लोगों के सामने सिर नहीं झुकाते हैं और न ही जीवन में कभी भी किसी की निंदा नहीं करते हैं। नागा साधु कभी वाहन का प्रयोग नहीं करते हैं।
कुंभ के बाद नागा साधु कहां लौट जाते हैं?
नागा साधु कुंभ के बाद अपने-अपने आखाड़ों में लौट जाते हैं। आखाड़े भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित होते हैं और ये साधुओं वहां ध्यान, साधना और धार्मिक शिक्षाओं का अभ्यास करते हैं। वहीं कुछ नागा साधु काशी (वाराणसी), हरिद्वार, ऋषिकेश, उज्जैन या प्रयागराज जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों पर रहते हैं। वहीं आपको बता दें कि नागा साधु बनने या नए नागा साधुओं को की प्रक्रिया (दीक्षा) प्रयाग, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन के कुंभ में की जाती है, लेकिन इन्हें अलग-अलग नागा कहा जाता है। जैसे, प्रयाग में दीक्षा लेने वाले नागा साधु को राजराजेश्वर कहा जाता है। वहीं उज्जैन में दीक्षा लेने वाले को खुनी नागा साधु कहा जाता है और हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले को बर्फानी नागा साधु कहा गया है। इसके साथ ही नासिक में दीक्षा लेने वाले को बर्फानी और खिचड़िया नागा साधु कहा गया है। वहीं इस बार प्रयागराज कुंभ में दो सबसे बड़े नागा अखाड़े महापरिनिर्वाणी अखाड़ा और पंचदशनाम जूना अखाड़ा शामिल हैं।
शाही स्नान के बाद चले जाते हैं नागा साधु
नागा साधु शाही स्नान के बाद अपने- अपने अखाड़े चले जाते हैं। वहीं प्रयागराज कुंभ में तीसरा शाही स्नान 3 फरवरी बसंत पंचमी पर है और इसके बाद नागा साधु अपने- अपने अखाड़ों पर लौट जाएंगे।