Maa Pateshwari Devi Peeth: उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में स्थित देवी पाटन शक्तिपीठ न केवल एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। हाल ही में, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस प्रतिष्ठित मंदिर में दर्शन किए और मां पाटेश्वरी के समक्ष श्रद्धा सुमन अर्पित किए। मुख्यमंत्री का यह दौरा राज्य की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति उनके आस्थावान दृष्टिकोण को दर्शाता है, साथ ही इस क्षेत्र की धार्मिक प्रतिष्ठा को भी सुदृढ़ करता है।

देवी पाटन मंदिर का धार्मिक महत्व केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे भारत में अपनी अद्वितीयता के लिए जाना जाता है। यह मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जो हिंदू धर्म की प्राचीन और पवित्र परंपराओं का केंद्र है। मान्यता के अनुसार, देवी सती के शरीर के विभिन्न अंग इन शक्तिपीठों में गिरे थे, और देवी पाटन में सती का बायां कंधा गिरा था, जिससे इसे विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त हुआ।

इस मंदिर के दर्शन करने के लिए न केवल उत्तर प्रदेश से बल्कि भारत के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु यहां आते हैं। मंदिर के भीतर स्थित मां पाटेश्वरी की मूर्ति और यहां की पूजा विधियाँ भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती हैं। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है, जब भक्त विशेष पूजा अर्चना करते हैं और मां के आशीर्वाद की कामना करते हैं।

योगी आदित्यनाथ का देवी पाटन मंदिर में दर्शन करना न केवल धार्मिक आस्थाओं को बल देता है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश सरकार के धार्मिक स्थलों की महिमा को पुनः स्थापित करने का भी एक महत्वपूर्ण कदम है। इस प्रकार के आयोजनों और धार्मिक कार्यक्रमों से राज्य की सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है, जो राज्य की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को सुदृढ़ करता है।

इस मंदिर की धार्मिक महिमा और मुख्यमंत्री का इस स्थान पर आगमन उत्तर प्रदेश की समृद्ध धार्मिक धरोहर और आस्थाओं को प्रगाढ़ करता है। यह कदम न केवल स्थानीय लोगों के लिए गर्व की बात है, बल्कि देशभर के श्रद्धालुओं के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत बनता है।

मंदिर का निर्माण और धार्मिक महत्व

देवी पाटन मंदिर की स्थापना गुरु गोरखनाथ ने की थी, जबकि मौर्य वंश के राजा विक्रमादित्य ने इसे और अधिक विकसित किया। यहां एक अखंड धूनी जलती रहती है, जो त्रेता युग से लगातार जल रही है, यह इस स्थान की दिव्यता और प्राचीनता का प्रतीक मानी जाती है।

मंदिर में पूजा विधियां विशिष्ट और रहस्यमय मानी जाती हैं। विशेषकर नवरात्रि के दौरान भक्तों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि होती है, और इस समय विशेष पूजा अर्चना की जाती है। खासकर पंचमी तिथि को नेपाल से आए पुजारी यहां मां पाटेश्वरी की विशेष पूजा करते हैं।

बाबा गोरखनाथ और देवी पाटन मंदिर का संबंध

बाबा गोरखनाथ, जिन्हें गोरखनाथ बाबा के नाम से भी जाना जाता है, एक महान योगी, तांत्रिक और नाथ संप्रदाय के प्रतिष्ठित गुरु थे। उनका जीवन और शिक्षाएं भारतीय धार्मिक परंपराओं और योग के क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। गोरखनाथ बाबा ने नाथ पंथ की स्थापना की थी और उनके अनुयायी नाथ योगी के मार्ग पर चलते हुए आत्मा के मिलन और मुक्ति के लिए साधना करते हैं। उनके द्वारा सिखाए गए तत्वज्ञान और योग के सिद्धांत आज भी बहुत से लोग अपनी आध्यात्मिक यात्रा में अपनाते हैं।

अब, देवी पाटन मंदिर और बाबा गोरखनाथ के बीच के संबंध को समझने के लिए हमें दोनों के धार्मिक महत्व को समझना होगा। देवी पाटन मंदिर, जो एक प्रमुख शक्तिपीठ है, देवी सती के बायें कंधे के गिरने के कारण पवित्र स्थान बन गया था। यह स्थान शक्ति और भक्ति का प्रतीक माना जाता है, जहां भक्त अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करते हैं।

बाबा गोरखनाथ का देवी पाटन मंदिर से संबंध उनके धार्मिक और तात्विक दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है। गोरखनाथ बाबा का उद्देश्य साधक को आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए उपदेश देना था, और उन्होंने हमेशा शक्ति और ध्यान को अपने साधन का केंद्र बनाया। गोरखनाथ की शिक्षाएं एकात्मता, भक्ति और तात्विक ज्ञान के बारे में थीं, जो देवी पाटन के सिद्ध शक्तिपीठ के सिद्धांतों से मेल खाती हैं।

कुछ विद्वानों के अनुसार, गोरखनाथ बाबा ने देवीपाटन क्षेत्र में ध्यान और साधना की थी, और उनके माध्यम से यहां की शक्ति और सिद्धता को महसूस किया था। इस कारण देवी पाटन मंदिर का संबंध गोरखनाथ बाबा से स्थापित किया जाता है, क्योंकि वे नाथ संप्रदाय के प्रमुख गुरु थे और उनके दर्शन और उपदेशों का प्रभाव भारतीय तंत्र और साधना पर भी पड़ा था।

वर्तमान में भी, बाबा गोरखनाथ के अनुयायी और भक्त देवी पाटन मंदिर के दर्शन करते हैं, क्योंकि इस मंदिर में शक्ति और ध्यान की साधना का महत्व है, जो गोरखनाथ की उपदेशों के साथ तालमेल बैठता है।

इस प्रकार, देवी पाटन मंदिर और बाबा गोरखनाथ का संबंध उनके आध्यात्मिक सिद्धांतों, योग के मार्ग और तात्त्विक दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है। दोनों का उद्देश्य साधकों को आत्मज्ञान और मुक्ति की दिशा में मार्गदर्शन करना था, और इस संबंध को आज भी श्रद्धालु गहरे सम्मान और आस्था के साथ महसूस करते हैं।

देवी पाटन मंदिर का इतिहास और पौराणिक महत्व

देवी पाटन मंदिर का इतिहास भारतीय पौराणिक कथाओं से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। यह शक्तिपीठ देवी सती की कथा से संबंधित है, जिसे भारतीय धर्म और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

कहा जाता है कि देवी सती, भगवान शिव की अनन्य भक्त और पत्नी थीं। एक दिन, प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें भगवान शिव का अपमान किया। यह अपमान सती से सहन नहीं हुआ, और उन्होंने यज्ञ स्थल पर आत्मदाह कर लिया। सती की इस दुखद मृत्यु ने भगवान शिव को गहरे शोक में डुबो दिया। भगवान शिव, अपने पत्नी के शव को लेकर तीनों लोकों में भ्रमण करते रहे, जिससे पूरे ब्रह्मांड में शोक का माहौल बन गया।

इस पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का प्रयोग कर सती के शव को काट दिया, और उनके शरीर के विभिन्न अंग पृथ्वी पर गिर गए। जहाँ देवी सती का बायां कंधा गिरा, वहीं देवी पाटन मंदिर का निर्माण हुआ। इसे शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित किया गया, और आज यह स्थान भक्तों के लिए एक तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।

देवी पाटन मंदिर का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। यह स्थान शक्ति, भक्ति, और तात्त्विक ज्ञान का केंद्र माना जाता है। यहाँ पूजा अर्चना करने से भक्तों को मानसिक शांति, आंतरिक शक्ति, और ईश्वर के दर्शन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। नवरात्रि और अन्य प्रमुख धार्मिक अवसरों पर यहां श्रद्धालुओं की विशाल भीड़ उमड़ती है, जो इस स्थान की महिमा को दर्शाता है।

इस प्रकार, देवी पाटन मंदिर न केवल देवी सती की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है, बल्कि यह भारतीय धार्मिक आस्थाओं का अद्वितीय प्रतीक भी है, जो श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास को लगातार बल देता है।

आस्था और चमत्कार

देवी पाटन शक्तिपीठ न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यह रहस्यों और चमत्कारों से भी जुड़ा हुआ है। मंदिर परिसर में एक सूर्य कुंड स्थित है, जो कर्ण द्वारा बनवाया गया माना जाता है। यहां स्नान करने से विभिन्न चर्म रोगों का निवारण होने की मान्यता है।

मंदिर में एक अखंड ज्योति जलती रहती है, जो त्रेता युग से अब तक जल रही है। यह ज्योति इस स्थान की शक्ति और देवत्व का प्रतीक मानी जाती है। इसके अलावा, मंदिर में एक सुरंग भी है, जो पाताल लोक तक जाती है, जिससे इसे और अधिक रहस्यमय बना देती है। वहीं आपको बता दें कि प्रतिदिन मुख्य पुजारी एक विचित्र सी पूजा के दौरान मुख्य मंदिर के चारो तरफ घूम कर मंदिर के अंदर जाकर कपाट बंद करते हैं और 3 घंटे बाद फिर शाम को 7 बजे कपाट खोल दिए जाते हैं।  तब तक वह अंदर गुप्त पूजा करते हैं फिर मंदिर दर्शन के लिए खुल जाता है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दर्शन

हाल ही में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देवी पाटन मंदिर में जाकर मां पाटेश्वरी के समक्ष श्रद्धा अर्पित की। उनका यह दौरा राजनीतिक संदर्भ में भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह मंदिर यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले एक पवित्र स्थान के रूप में देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री ने यहां विशेष पूजा अर्चना की और प्रदेश की सुख-शांति की कामना की।

योगी आदित्यनाथ का यह कदम धार्मिक आस्थाओं को बढ़ावा देने और यूपी की सांस्कृतिक धरोहर को सम्मानित करने का प्रतीक है। उनके इस दर्शन ने न केवल धार्मिक महत्व को फिर से जीवित किया, बल्कि मंदिर के महत्व को भी जन-जन तक पहुँचाया है।

देवी पाटन शक्तिपीठ: पौराणिक महत्व और चमत्कारों से भरपूर

देवीपाटन शक्तिपीठ, अपनी पौराणिक महत्वता और ऐतिहासिक गाथाओं के कारण भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में शामिल है। यहां की पूजा विधियां, रहस्य और चमत्कार इसे श्रद्धालुओं के लिए एक अद्वितीय तीर्थ स्थल बनाते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इस मंदिर में दर्शन न केवल उत्तर प्रदेश की धार्मिकता को बढ़ावा देने वाला कदम है, बल्कि यह श्रद्धालुओं के विश्वास को भी मजबूती देता है।

लेखक- पूनम गुप्ता