Kushmanda Devi Temple Kanpur: देशभर में शारदीय नवरात्रि का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ हुए नवरात्रि नवमी तिथि के साथ समाप्त हो जाएंगे। इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा का विधान है। आज नवरात्रि का चौथा दिन है और आज के दिन मां कुष्मांडा की विधिवत पूजा करने का विधान है। देशभर में मां कुष्मांडा के कई मंदिर स्थित है। लेकिन कानपुर में स्थिति मां कुष्मांडा देवी मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इसे कुड़हा देवी के नाम से भी जानते हैं। यहां पर मां लेटी हुए मुद्रा में हैं। हर साल नवरात्रि के दिनों में काफी बड़ा मेला का भी आयोजन किया जाता है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में।
कहां हैं मां कुष्मांडा मंदिर?
मां कुष्मांडा देवी का ये मंदिर उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के घाटमपुर में स्थित है। सागर-कानपुर के बीच घाटमपुर में स्थित है।
कुष्मांडा मंदिर का इतिहास
मां कुष्मांडा की ये मूर्ति कितनी पुरानी है। इसके बारे में अभी तक सटीक जानकारी सामने नहीं आई है। मां कुष्मांडा देवी मंदिर को लेकर कई कथाएं प्रचलित है। एक कथा के अनुसार माना जाता है कि जब भगवान शंकर मां सती के शरीर को लेकर घूम रहे थे, तो विष्णु जी ने अपने चक्र से मां सती के शरीर को कई अंगों में काट दिया था। जहां-जहां पर ये अंग गिरे वहां पर शक्तिपीठ बन गए हैं। माना जाता है कि मां सती का एक अंग इस जगह पर भी गिरा था।
दूसरी पौराणिक मान्यता के अनुसार, यहां पर पहले घनघोर जंगल था। उस समय में एक कुढाहा नाम का ग्वाला गाय चराने आता था। उसी गाय चरते-चरते एक ही स्थान में रोजाना दूध गिरा देती थी। जब कुढाहा शाम को दूध निकालने जाता था, तो कुछ नहीं निकलता था। इससे वह ग्वाला काफी परेशान हुआ है कि आखिर कौन गाय का दूध निकाल लेता है। ऐसे में एक दिन वह खुद गाय को चराने गया। जब उसने देखा कि एक स्थान में गाय का दूध अपने आप गिरने लग रहा है, तो वह काफी आश्चर्यचकित हुआ। ऐसे में उस जगह की ग्वाला से सफाई की, तो पिंडी के रूप में मूर्ति मिली। जिसे काफी खोदने के बाद भी उसका अंत नहीं मिला, तो उसने उसी स्थान पर चबूतरा बनवा दिया। इसके बाद से इस मूर्ति को कुड़हा देवी नाम से कहने लगे। कहा जाता है कि एक दिन किसी के सपने में मां ने आकर कहा कि मै कुष्मांडा हूं। जिसके कारण उनका नाम कुड़हा और कुष्मांडा दोनों नाम से जाना जाने लगा।
पिंडी से रिसता है पानी
यहां पर मां कुष्मांडा एक पिंडी के रूप में है। इस पिंडी से हमेशा पानी रिसता रहता है। मान्यता है कि मंदिर में अर्पित किया जाने वाला पानी कई दुखों का निवारण करता है। इसके साथ ही इस पानी को आंखों में लगाने से रोशनी भी बढ़ जाती है।
किसने बनवाया कुष्मांडा देवी मंदिर?
साल 1783 में कवि उम्मेदराव खरे द्वारा लिखी एक फारसी पुस्तक के अनुसार, सन् 1380 में राजा घाटम देव ने यहां पर मां के दर्शन किए थे और अपने नाम से घाटमपुर कस्बे का निर्माण कराया था। इसके बाद दोबारा इस मंदिर का निर्माण सन् 1890 में स्व. श्री चंदीदीन न करवाया था। इसके बाद में यहां रहने वाले बंजारों से मठ की स्थापना की।
कैसे पहुंचे कुष्मांडा देवी मंदिर?
कुष्मांडा देवी का ये मंदिर कानपुर में स्थित है। जहां आप बस, ट्रेन से जा सकते हैं। कानपुर या झकरकटी बस अड्डे से सीधे आप नौबस्ता के लिए टैक्सी, ऑटो ले सकते हैं। वहां से आपको सीधे घाटमपुर के लिए वैन, टैक्सी और बस मिल जाती है।
मंदिर प्रांगण में है कई अन्य देवी-देवता की मूर्ति
कुष्मांडा देवी मंदिर में मां कुष्मांडा के अनुसार राम-सीता, लक्ष्मण भी विराजित है। इसके अलावा यहां पर भगवान हनुमान की काफी बड़ी मूर्ति स्थापित की गई है।