Krishna Janmashtami Vrat Katha In Hindi: हिंदू धर्म में जन्माष्टमी का व्रत मंगलकारी माना जाता है। मान्यता है कोई भी व्यक्ति इस व्रत को सच्चे मन से रखता है उसके जीवन की समस्त परेशानियों का अंत हो जाता है। साथ ही सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है इस साल ये व्रत 16 अगस्त 2025, शनिवार को रखा जाएगा और व्रत का पारण 17 अगस्त की सुबह 5 बजकर 55 मिनट के बाद किया जा सकेगा। जन्माष्टमी पर विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में मध्यरात्रि हुआ था। इसलिए इस दिन को भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। वहीं इस दिन भगवान श्री कृष्ण की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। वहीं इस दिन व्रत कथा पढ़ना जरूरी माना जाता है। वर्ना व्रत अधूरा माना जाता है। आइए जानते हैं इस व्रत कथा के बारे में…
Janmashtami 2025 LIVE: शुभ योगों में जन्माष्टमी आज, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि सहित हर एक अपडेट
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा (Krishna Janmashtami 2025 Vrat Katha )
शास्त्रों के मुताबिक द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन का मथुरा में शासन था। वह बड़े ही दयालु थे और प्रजा भी उनका काफी सम्मान करती थी। लेकिन उनका पुत्र कंस दुर्व्यसनी था और हमेशा अपनी प्रजा को किसी न किसी प्रकार से कष्ट देता था। जब उसके पिता को ये बात पता चली तो उनके पिता उग्रसेन ने उसे खूब समझाया। लेकिन कंस ने अपने पिता की बात मानने की बजाय उल्टा उन्हें ही गद्दी से उतार दिया और खुद ही मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन थी। जिसे वह अपनी जान से ज्यादा प्यार करता है। उनकी एक बात कहने से वह हर एक चीज को पूरा कर देता है। ऐसे ही कंस ने अपनी बहन देवकी का विवाह वासुदेव नामक यदुवंशी सरदार के साथ धूमधाम से कर दिया। वह अपनी बहन को उसके ससुराल स्वयं रथ खींच कर पहुंचाने वाला था।
जब अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था कि तभी अचानक रास्ते में आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।’ यह सुनकर कंस घबरा गया और अपनी बहन के पति वासुदेव को मारने के लिए टूट पड़ा।
तब देवकी ने कंस से विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। इन्हें मारने से क्या लाभ है?’ कंस ने देवकी की बात मान ली। लेकिन वासुदेव और देवकी को उसने कारागार में डाल दिया।
वासुदेव-देवकी की एक-एक करके सात संतानें हुईं और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब बारी थी आठवें बच्चे के होने की। कंस ने इस दौरान कारागार में वासुदेव-देवकी पर और भी कड़े पहरे बैठा दिए। वहीं दूसरी ओर देवकी के साथ नंद गांव में नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था।
उन्होंने वासुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वासुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी।
जिस कोठरी में देवकी-वासुदेव कैद थे, उसमें अचानक चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। भगवान ने देवकी-वासुदेव से कहा ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं। तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंद जी के घर वृंदावन में ले जाओ और उनके यहां जिस कन्या का जन्म हुआ है, उसे लाकर कंस को दे दो। भगवान ने कहा इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। लेकिन फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के दरवाजे अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग खुद दे देगी।’
भगवान के आदेश अनुसार वासुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे जहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और उनकी कन्या को लेकर मथुरा आ गए। वासुदेव के आते ही कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए।
कंस तक वसुदेव-देवकी के बच्चा पैदा होने की सूचना पहुंच गई। कंस ने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीना और जैसे ही उसने उस बच्ची को पृथ्वी पर पटक देना चाहा, वैसे ही कन्या आकाश में उड़ गई और उसने कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन पहुंच चुका है और वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।’