Janmashtami 2022 Vrat Katha, Puja Vidhi and Muhurat: हिंदू धर्म में जन्माष्टमी पर्व का विशेष महत्व है। यह पर्व भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। जन्माष्टमी का पर्व इस साल 18 और 19 दोनों तारीखों को मनाया जाएगा। जन्माष्टमी के दिन लोग बाल कृष्ण की पूजा- अर्चना करते हैं। पूजा के दौरान कृष्ण जी की जन्म कथा सुनना भी शुभ फलदायी माना जाता है। यहां जानिए कृष्ण जन्म की ये पौराणिक कथा।

द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन का मथुरा में शासन हुआ करता था। वह बड़े ही दयावान राजा थे और प्रजा भी उनका काफी आदर करती थी। लेकिन उनका पुत्र कंस बहुत की अत्याचारी था और प्रजा को आए दिन कष्ट देता रहता था। जब राजा उग्रसेन को इस बात का पता चला तो उन्होंंने कंस को बहुत समझाया। लेकिन कंस ने उनकी एक न मानी और एक दिन अपने पिता का विरोध करके उनका सिंहासन छीनकर खुद गद्दी पर बैठ गया।  स्वयं मथुरा का राजा बन गया। कंस की एक बहन थी देवकी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।

कंस अपनी बहन देवकी को बहुत मानता था। साथ ही दोनों भाई- बहन में बहुत प्यार था। एक दिन कंस जब अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुंचाने जा रहा था कि तभी अचानक रास्ते में आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।’ यह सुनकर कंस विचलित हो गया और उसके वसुदेव को मारने का प्लान बना लिया।

तब देवकी ने कंस से विनती करते हुए कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। तुम उसको वध कर देना। इन्हें (वसुदेव) को छोड़ दो। कंस ने देवकी की बात मान ली। लेकिन उसने वसुदेव और देवकी को उसने कारागृह में डाल दिया।

 वसुदेव-देवकी की सात संतानें हुईं और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब बारी थी आठवे बच्चे के होने की। कंस ने इस दौरान कारागार में वसुदेव-देवकी पर और कड़े पहरेदार बिठा दिए। वहीं देवकी के साथ नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था।

उन्होंने वसुदेव-देवकी के ऊपर अत्याचार को देखते हुए आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी।

जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव को कैद किया गया था, उसमें अचानक चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों ने भगवान के चरण स्पर्श किए। भगवान ने देवकी-वसुदेव से कहा ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं। साथ ही तुम मुझे इसी समय  नंदजी के घर वृंदावन में ले जाओ और उनके यहां जिस कन्या ने जन्म लिया है, उसे लाकर कंस को सौंप दो। जब भगवान से वसुदेव ने यह कहा कि इतने कड़े पहरे में यहां से कैसे जा सकता हूं तो भगवान ने कहा कि  तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के दरवाजे अपने आप खुल जाएंगे और यमुना नदी तुमको पार जाने का मार्ग खुद दे देगी।’ तुम आराम से वृंदावन नंद जी के घर पहुंच जाओगे।

भगवान की बात सुनते ही वसुदेव ने नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखा और निकल पड़े। कारागृह के सभी गेट खुल गए । इसके बाद वसुदेव यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे जहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और उनकी कन्या को लेकर मथुरा आ गए। वसुदेव के आते ही कारागृह के फाटक बंद हो गए।

कंस तक वसुदेव-देवकी के बच्चा पैदा होने की सूचना सैनिकों ने दी। कंस तुरंग बंदीगृह पहुंचा। तभी उसने एक नवजात कन्या को देखा। उसने कन्या देवकी के हाथ से छीन ली और जैसे ही उसने उस बच्ची को धरती पर पटक देना चाहा, वैसे ही कन्या आकाश में उड़ गई और उसने कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन पहुंच चुका है और वह जल्द ही तुझे दंड देगा।’ कंस ने कई बार भगवान श्री कृष्ण को मारने की कोशिश की, लेकिन वह इसमें नाकाम रहा। जब भगवान श्री कृष्ण युवा हुए तो उनका भगवान श्री कृष्ण से युद् हुआ और उन्होंने अपने मामा कंस का वध कर दिया।