रोहिणी व्रत जैन संप्रदाय का प्रमुख व्रत होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जैन समुदाय में मौजूद 27 नक्षत्रों में से एक नक्षत्र रोहिणी है। इसलिए जैन समुदाय के अनुयायी इनकी पूजा करते हैं। यह व्रत साल में कम से कम छह से सात बार आता है। लेकिन कई बार हर महीने में एक बार या फिर दो बार भी होता है। इस महीने यह व्रत 14 फरवरी, शुक्रवार को है। जैन धर्म दो भागों में बंटा हुआ है- दिगंबर और श्वेतांबर। एक वो जो सफेद कपड़े पहनते हैं और दूसरे वो जो निर्वस्त्र होते हैं। जो निर्वस्त्र होते हैं वह दिगंबर है। क्या आप जानते हैं कि दिगंबर जैन मौनी कपड़े क्यों नहीं पहनते हैं? यदि नहीं तो इसे जानते हैं।
दिगंबर जैन मुनियों का मानना है कि उनके मन-जीवन में खोट नहीं इसलिए तन पर कपड़े नहीं है। उनका मानना है आम लोग कपड़े पहनते हैं लेकिन दिगबंर मुनि चारों दिशाओं के कपड़ों के रूप में पहन लेते हैं। उनका कहना है दुनिया में नग्नता से बेहतर कोई पोशाक नहीं है। वस्त्र तो विकारों को ढकने के लिए होते हैं। जो विकारों से परे है, ऐसे शिशु और मुनि को वस्त्रों की क्या जरूरत है। इसके अलावा जब दिगंबर मुनि बूढ़े हो जाते हैं और खड़े होकर भोजन नहीं कर पाते हैं तो ऐसे में लोग अन्न-जल का त्याग कर देते हैं।
बता दें, इस धर्म में खाना खड़े होकर खाना इस धर्म की खासियत मानी जाती है। मान्यता ये भी है कि इस धर्म के लोग जमीन के नीचे उगने वाली सब्जियां नहीं खाते हैं। ये केवल उन्हीं सब्जियों का सेवन करते हैं जो जमीन के ऊपर उगती है। साथ ही दिगंबर जैन मुनि दीक्षा के लिए वस्त्रों का पूर्ण त्याग, दिन में एक ही बार शुद्ध जल और भोजन का सेवन, सर्दी में भी ओढ़ने-बिछाने के कपड़ों का त्याग का पालन किया जाता है। जैन धर्म में दीक्षा का अर्थ है समस्त कामनाओं की समाप्ति और आत्मा को परमात्मा बनाने के मार्ग पर चलना।